राजनीति में अपराधीकरण रोकने के लिए 'उच्च एंटीबॉयोटिक' जरूरी : सुप्रीम कोर्ट

चीफ जस्टिस ने कहा कि भ्रष्टाचार एक संज्ञा है, जब यह राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है तो यह एंटीबायोटिक्स के लिए एक क्रिया प्रतिरोधी बन जाता है

राजनीति में अपराधीकरण रोकने के लिए 'उच्च एंटीबॉयोटिक' जरूरी : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट.

खास बातें

  • दागी लोगों के चुनाव लड़ने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
  • विधायिका नजरअंदाज नहीं कर सकती अपराधीकरण को हटाने का मामला
  • CJI ने कहा, संसद का कर्तव्य है कि संविधान के अनुच्छेद 102 में संशोधन करे
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि राजनीति में अपराधीकरण एक गंभीर मुद्दा है और इसे रोकने के लिए कानून में बदलाव करना संसद का कर्तव्य है. CJI दीपक मिश्रा ने कहा कि यह राष्ट्रीय सोच है कि राजनीति से अपराधीकरण को हटाने के लिए  कदम उठाने चाहिए और इसे विधायिका नजरअंदाज नहीं कर सकती. यह चुनाव में पवित्रता के लिए समाज की जरूरत है. 

CJI ने AG केके वेणुगोपाल से कहा हमें संसद को इन गंभीर हालात के बारे में याद दिलाना होगा. संसद का संविधान के अनुच्छेद 102 में संशोधन करना कर्तव्य है. हम ये इसलिए कह रहे हैं कि हम संविधान की आत्मा के पहरेदार हैं. चीफ जस्टिस ने पुराने जजमेंट का हवाला देते हुए कहा कि भ्रष्टाचार एक संज्ञा है. लेकिन जब यह राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है तो यह एंटीबायोटिक्स के लिए एक क्रिया प्रतिरोधी बन जाता है.  उन्होंने AG से कहा कि आप कोई उच्च एंटीबॉयोटिक सुझाइए. सवाल ये है कि क्या कोर्ट कोई कानून बना सकता है. 

AG वेणुगोपाल ने कहा कि अब वक्त आ गया है कि संसद उन हालात की समीक्षा करे. लेकिन ये कोर्ट का काम नहीं है, बल्कि संसद का काम है. संविधान के अनुच्छेद 21 में जीने के अधिकार के ब्यौरे में ये भी साफ है कि किसी अपराध में दोष सिद्ध होने तक सज़ा नहीं हो सकती. यहां तो चार्ज फ्रेम होने पर ही सज़ा देने की बात ही रही है.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारी एक अपनी लक्ष्मणरेखा है. हम कानून की व्याख्या करते हैं न कि कानून बनाते हैं. कानून तो संसद बनाती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप कह रहे हैं कि हम कानून बनाएं, ये कैसे हो पाएगा. हमारा भी एक दायरा है.

दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगाने के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे काफी गंभीर मानते हुए कहा कि यह संसद की जिम्मेदारी है कि वह कानून में संशोधन करे. वैसे कोर्ट ने इसे जल्दी निपटाने के संकेत दिए. संविधान पीठ ने ये भी संकेत दिया कि संगीन अपराधों में जिन नेताओं के खिलाफ चार्ज फ्रेम हो जाएं उनको चुनाव लड़ने से रोका जाए. साथ ही दागी नेताओं के खिलाफ गंभीर अपराधों में मामले की सुनवाई फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट के जरिए कराई जाए. 

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गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कई गंभीर टिप्पणियां कीं.  सुनवाई के बीच सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जनप्रतिनिधि कानून में बदलाव किए बिना दोषी करार होने से पहले किसी को भी चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता. कोर्ट ने कहा कि गंभीर अपराधों के मामलों में फ़ास्ट ट्रैक के जरिए मामले का जल्द निपटारा करने पर विचार किया जा सकता है. सुनवाई 14 अगस्त को जारी रहेगी. 

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गुरुवार को उस याचिका पर सुनवाई शुरू की जिसमें मांग की गई है कि गंभीर अपराधों में, जिसमें सज़ा पांच साल से ज्यादा हो, अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ आरोप तय होते हैं तो उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए. अगर कोई सांसद या विधायक है तो उसकी सदस्यता रद्द होनी चाहिए. 

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दरसअल मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था. इस मामले में अश्विनी कुमार उपाध्याय के अलावा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह और एक अन्य एनजीओ की याचिकाएं भी लंबित हैं. याचिका में कहा गया है कि इस समय देश में 33 फीसद नेता ऐसे हैं जिन पर गंभीर अपराध में कोर्ट आरोप तय कर चुका है. याचिका में यह भी कहा गया है कि कई विशेषज्ञ समितियां, जिसमें गोस्वामी समिति, वोहरा समिति, कृष्णामचारी समिति, इंद्रजीत गुप्ता समिति, जस्टिस जीवनरेड्डी कमीशन, जस्टिस वेंकेटचलैया कमीशन, चुनाव आयोग और विधि आयोग राजनीति के अपराधीकरण पर चिंता जता चुके हैं, लेकिन सरकार ने आज तक उनकी सिफारिशें लागू नहीं कीं.


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