इतिहास में आज : पढ़िए, 'वीरता की रानी' लक्ष्मीबाई की पूरी कहानी, अंग्रेज जनरल भी था कायल

इतिहास में आज : पढ़िए, 'वीरता की रानी' लक्ष्मीबाई की पूरी कहानी, अंग्रेज जनरल भी था कायल

फोटो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ट्विटर पेज से साभार

महिला सशक्तिकरण के इस दौर में भला युवतियों और महिलाओं के लिए रानी लक्ष्मीबाई से अधिक बड़ा प्रेरणास्रोत कौन हो सकता है, जिन्होंने पुरुषों के वर्चस्व वाले काल में महज 23 साल की आयु में ही अपने राज्य की कमान संभालते हुए अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे। हम देश की इस अद्भुत वीरांगना की चर्चा इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि आज उनका जन्मदिन है। उनका जन्म 19 नवंबर, 1835 को हुआ था। रानी लक्ष्मीबाई ने अपने जीते जी अंग्रेजों को झांसी पर कब्जा नहीं करने दिया।

लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी जिले के भदैनी में हुआ था। उनके बचपन का नाम मणिकर्णिका था। प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था। उनकी मां का नाम भागीरथीबाई तथा पिता का नाम मोरोपन्त तांबे था। मोरोपन्त एक मराठी थे और मराठा बाजीराव की सेवा में थे। मनु जब चार वर्ष की थीं, तभी उनकी मां की मृत्यु हो गई। इसके बाद उनके पिता उनको अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले गए, जहां चंचल एवं सुन्दर मनु ने सबका प्रभावित कर दिया।

ऐसे बनीं झांसी की रानी
सन् 1842 में उनका विवाह झांसी के मराठा शासक राजा गंगाधर राव निम्बालकर के साथ हुआ। इसी के साथ वे झांसी की रानी कहलाने लगीं। विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया पर चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गई। सन् 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्हें दत्तक पुत्र लेने की सलाह दी गई। पुत्र गोद लेने के बाद 21 नवंबर, 1853 को राजा गंगाधर राव की भी मृत्यु हो गई। लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा गया।
 


झांसी को कमजोर होता देख 1857 में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने आक्रमण कर दिया, लेकिन रानी ने इसे विफल कर दिया। 1858 के जनवरी माह में ब्रिटेन की सेना ने झांसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया।

तात्या टोपे के साथ मिलकर लड़ीं
झांसी के किले में रसद व युद्ध सामग्री खत्म होते देख रानी ने समर्पण की जगह जंग को जारी रखने के लिए दामोदर राव के साथ कालपी की ओर कूच किया। वहां बिठूर से भागे नाना साहब पेशवा और तात्या टोपे के नेतृत्व में बागियों की फौज ने किले पर कब्जा कर डेरा डाल लिया था। वहां से विद्रोहियों ने ग्वालियर आकर वहां के नाबालिग सिंधिया राजा से धन व दूसरे युद्ध संसाधन वसूलकर अंग्रेजों से जंग की तैयारी कर ली।

तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया। 17 जून, 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते रानी लक्ष्मीबाई ने वीरगति हासिल की।

'सबसे खतरनाक थीं रानी लक्ष्मीबाई'
इस लड़ाई को लेकर ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज ने टिप्पणी की थी, कि रानी लक्ष्मीबाई अपनी सुंदरता, चालाकी और दृढ़ता के लिए तो उल्लेखनीय थीं ही, विद्रोही नेताओं में सबसे अधिक खतरनाक भी थीं। दरअसल रानी लक्ष्मीबाई झांसी से कालपी होते हुए दूसरे विद्रोहियों के साथ ग्वालियर आ गई थीं, लेकिन कैप्टन ह्यूरोज की युद्ध योजना के चलते ही वे घिर गईं।

ऑस्ट्रेलियाई वकील ने लड़ा था लक्ष्मीबाई का केस
ऑस्ट्रेलिया के जॉन लैंग ने 8 जून, 1854 को झांसी की रानी लक्ष्‍मीबाई की ओर से गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी को डॉक्‍टरिन ऑफ लैप्‍स को लेकर एक याचिका प्रस्‍तुत की थी।

साल 2014 में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गए पीएम नरेंद्र मोदी ने रानी लक्ष्मीबाई के वकील जॉन लैंग की याद वहां के पीएम टोनी एबॉट दिलाई थी। इतना ही नहीं पीएम मोदी ने जॉन लैंग से संबंधित दस्तावेज भी उन्हें भेंट किए थे। मोदी ने इस दौरान ऑस्ट्रेलियाई वकील जॉन लैंग के झांसी और वाराणसी कनेक्शन की भी जानकारी दी थी।

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कौन हैं जॉन लैंग
जॉन लैंग का जन्म साल 1816 में सिडनी में हुआ था। वे न केवल वकील थे बल्कि उन्हें पत्रकार और साहित्यकार के रूप में भी जाना जाता है। उन्हें देश-दुनिया की सैर करना पसंद था। साल 1842 में समुद्री रास्ते भारत पहुंचे थे और यहां अपना नया घर बना लिया। अपने भारत पहुंचने के तीन साल बाद ही 1845 में उन्होंने यूपी के मेरठ से एक अखबार ‘द मुफस्सीलाइट’ का प्रकाशन शुरू किया।