यह ख़बर 19 मार्च, 2012 को प्रकाशित हुई थी

संप्रग का संकट टला, सहयोगियों का हो भला

खास बातें

  • प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के लिए सोमवार का दिन संकट वाला था और दोनों ही इनसे पार पाने में सफल रहे।
नई दिल्ली:

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के लिए सोमवार का दिन संकट वाला था और दोनों ही इनसे पार पाने में सफल रहे। इसके लिए हालांकि सरकार को संसद के बाहर अपने सहयोगियों के सामने मजबूरन झुकना पड़ा तो सहयोगियों ने संसद में साथ देकर संकट टालने में मदद की।

सोमवार को दिन भर चले घटनाक्रमों से तय हो गया है कि संप्रग सरकार को फिलहाल कोई खतरा नहीं है। यह भी स्पष्ट हो गया कि तृणमूल कांग्रेस केंद्र सरकार में बनी रहेगी और सरकार को यदि उससे कोई खतरा पैदा हुआ तो समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) उसका समर्थन करने से पीछे नहीं हटेंगे।

इन राजनीतिक दलों के रुख से यह भी साफ हो गया है कि देश के अगले रेल मंत्री मुकुल रॉय होंगे, मुख्यमंत्रियों की बैठक से पहले सरकार नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर (एनसीटीसी) पर आगे नहीं बढ़ेगी और श्रीलंका मसले पर संयुक्त राष्ट्र में लाए जाने वाले अमेरिका के प्रस्ताव के समर्थन में भारत मतदान करेगा।

राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब देते हुए दरअसल, मनमोहन सिंह ने तृणमूल और डीएमके की मांगों को स्वीकार करते हुए सरकार के लिए पैदा संकट को तात्कालिक तौर पर टालने में सफलता हासिल की।

प्रधानमंत्री ने लोकसभा में जहां एक तरफ रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी का इस्तीफा मिलने और मंजूरी के लिए उसे राष्ट्रपति के पास भेजने की बात कही, वहीं उन्होंने तमिलों के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यूएनएचआरसी) में श्रीलंका के खिलाफ मतदान करने की सरकार की मंशा जाहिर की। उन्होंने यह भी कहा कि प्रस्तावित नेशनल काउंटर टेरोरिज्म सेंटर (एनसीटीसी) को लेकर मतभेद हो सकते हैं लेकिन बातचीत के माध्यम से सहमति बनाई जा सकती।

मुकुल होंगे रेल मंत्री

ममता बनर्जी आखिर जिस मकसद से रविवार को दिल्ली पहुंची थी उसमें सोमवार को कामयाब हो ही गईं। पहले तो उन्होंने रेल मंत्री पद से दिनेश त्रिवेदी की छुट्टी करने और अपने करीबी मुकुल रॉय को रेल मंत्री की नई जिम्मेदारी सौंपने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मजबूर किया। अब वह यात्री किराया वापस लेने के लिए सरकार पर दबाव बना रही हैं।

मुकुल रॉय मंगलवार को सुबह 10 बजे बतौर केंद्रीय मंत्री शपथ लेंगे। उन्हें ही रेल मंत्रालय का जिम्मा सौंपा जाएगा। अभी तक वह जहाजरानी राज्य मंत्री हैं। वह रेल मंत्रालय में भी राज्यमंत्री रह चुके हैं।

प्रधानमंत्री ने लोकसभा में कहा कि उन्हें त्रिवेदी के पद छोड़ने का खेद है। उन्होंने कहा कि उन्हें त्रिवेदी का इस्तीफा रविवार देर शाम मिल गया था। उसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया है। त्रिवेदी ने विजन-2020 को आगे ले जाने के वादे के साथ रेल बजट पेश किया था, जिसे उनकी पूर्ववर्ती ममता बनर्जी ने निर्धारित किया था।

ममता ने प्रधानमंत्री से मुलाकात भी और उसके बाद संवाददाताओं से कहा, "यह अच्छी मुलाकात रही.. रेल यात्री किराए में वृद्धि वापस लेने और मुकुल रॉय को नया रेल मंत्री बनाने का मुद्दा प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है।"

ममता ने कहा कि किराया बढ़ने से आम आदमी पर दबाव बढ़ेगा। उन्होंने कहा, "हम आम आदमी को प्रभावित नहीं करेंगे।"

एनसीटीसी पर सरकार की जीत, भाजपा चित

एनसीटीसी के गठन के मुद्दे पर सहयोगी दलों के साथ-साथ गैर कांग्रेस शासित राज्यों का विरोध झेल रही केंद्र सरकार को उस वक्त राहत मिली जब भाजपा सहित अन्य विपक्षी दलों की ओर से इस मसले पर पेश किए संशोधन प्रस्ताव गिर गए।

तृणमूल कांग्रेस ने इस प्रस्ताव पर हुए मत विभाजन का बहिष्कार कर सरकार का अपरोक्ष समर्थन किया वहीं सपा ने अपना संशोधन प्रस्ताव वापस लेकर सरकार के पक्ष में और प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया।

बसपा के सदस्य इस मौके पर गैरहाजिर रहे।

भाजपा की ओर से पेश प्रस्ताव के पक्ष में 141 मत पड़े जबकि इसके विरोध में 226। एक सदस्य ने मत विभाजन में हिस्सा नहीं लिया।

राष्ट्रपति के अभिभाषण में एनसीटीसी का जिक्र किए जाने पर भाजपा की ओर से विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की ओर से बसुदेव आचार्या और बीजू जनता दल (बीजद) की तरफ से भतृहरि महताब ने अपने-अपने संशोधन प्रस्तावों पर मतविभाजन की मांग की थी।

सुषमा ने कहा, "एनसीटीसी संघीय ढांचे पर प्रहार है। यदि केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम यह आश्वासन दें कि जब तक मुख्यमंत्रियों की बैठक में एनसीटीसी पर विवाद को सुलझा नहीं लिया जाता तब तक वह इस मुद्दे पर आगे नहीं बढ़ेंगे तो मैं अपने संशोधन प्रस्ताव को वापस ले लूंगी।"

इससे पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई बहस का जवाब देते हुए कहा कि एनसीटीसी के मसले पर राज्य सरकारों के साथ बातचीत जारी रहेगी और 16 अप्रैल को मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक से पहले इसे लागू नहीं किया जाएगा।

दूसरा संशोधन प्रस्ताव मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के बासुदेव आचार्य ने रखा। उसका भी वही हस्र हुआ। ओडिशा की सत्ताधारी पार्टी बीजद ने तीसरा संशोधन प्रस्ताव रखा। वह भी गिर गया।

एनसीटीसी का गठन एक मार्च को किया जाना था, लेकिन इसमें देरी की गई, क्योंकि सभी गैर-कांग्रेस शासित राज्यों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इसका विरोध किया है।

श्रीलंका मुद्दे पर डीएमके को साधा

प्रधानमंत्री एक तरफ ममता बनर्जी के आगे झुके तो उन्हें दूसरी ओर डीएमके के भारी दबाव के आगे भी झुकना पड़ा। उन्हें संसद को आश्वस्त करना पड़ा कि भारत श्रीलंका के युद्ध अपराधों पर संयुक्त राष्ट्र में लाए जाने वाले प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करना चाहेगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि ऐसा किए जाने से तमिलों के लिए बराबरी, न्याय और आत्मसम्मान हासिल करना सुनिश्चित हो सकेगा। डीएमके अध्यक्ष एम. करूणानिधि ने प्रधानमंत्री के इस आश्वासन का स्वागत करते हुए इसे श्रीलंकाई संघर्ष के लिए जीत करार दिया।

राष्ट्रपति के अभिभषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने लोकसभा में कहा कि जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में लाया जाने वाला प्रस्ताव, श्रीलंका में तमिलों का भविष्य सुनिश्चित कराने के भारत के उद्दश्यों को पूरा करने वाला होना चाहिए।

सिंह ने कहा, "हम यूएनएचआरसी में प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने का इरादा रखते हैं। हम संसद सदस्यों की चिंताओं में खुद को साझा करते हैं।"

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मनमोहन ने कहा, "हम अभी प्रस्ताव के अंतिम मसौदे का इंतजार कर रहे हैं.. हमने श्रीलंका से कहा है कि वह सत्ता के अर्थपूर्ण बंटवारे पर जोर दे।"