गाजियाबाद में नाले की गैस से बन रही है चाय, हिट हुआ पीएम मोदी का फॉर्मूला, देखें- VIDEO

दिल्ली से सटे ग़ाज़ियाबाद में नाले किनारे चाय बना कर गुज़ारा करने वाले रामू इन दिनों एक अहम प्रयोग का हिस्सा हैं. वो नाले की गैस से चाय बनाने में जुटे हैं.

गाजियाबाद में नाले की गैस से बन रही है चाय, हिट हुआ पीएम मोदी का फॉर्मूला, देखें- VIDEO

कॉलेज का दावा है कि पीएम मोदी ने अपने भाषण में उन्हीं की तकनीक का जिक्र किया था.

खास बातें

  • पीएम मोदी के नाले की गैस से चाय बनाने के दावे के बाद बने थे चुटकुले
  • गाजियाबाद में नाले की गैस से बनाई जा रही है चाय
  • कॉलेज का दावा है कि पीएम मोदी ने अपने भाषण में उन्हीं का जिक्र किया था
नई दिल्ली :

पिछले दिनों जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक शख़्स का ज़िक्र किया जो नाले से निकलने वाली गैस से चाय बनाता था तो सोशल मीडिया पर इसको लेकर खूब चुटकुले चल पड़े, लेकिन क्या सच मे ऐसा संभव है कि नाले से कोई गैस निकले, जिससे चाय बनाई जा सके या खाना पकाया जा सके? गाज़ियाबाद में ऐसी ही एक कोशिश हो रही है. दिल्ली से सटे ग़ाज़ियाबाद के साहिबाबाद में नाले किनारे चाय बना कर गुज़ारा करने वाले रामू इन दिनों एक अहम प्रयोग का हिस्सा हैं. वो नाले की गैस से चाय बनाने में जुटे हैं. ये गैस उन्हें  पीछे बह रहे नाले से मिल रही है. उन्हें उम्मीद है कि अगर ये तरीका कारगर रहा तो हर महीने अच्छी ख़ासी बचत हो जाएगी.

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दरअसल साहिबाबाद के इंद्रप्रस्थ इंजीनियरिंग कॉलेज के एक छात्र ने नाले से गैस निकालने की तकनीक का पायलट प्रोजेक्ट तैयार किया है. इस तकनीक में 200 लीटर के उल्टे ड्रम नाले में डाले गए हैं, जो नाले में बह रही मीथेन गैस को पकड़ते हैं. ड्रम में भरी गैस को पाइप के सहारे निकालकर ज़रूरत की जगह ले जाया जाता है. ड्रम कहीं इधर उधर ना हो इसके लिए लोहे का पिंजड़ा ड्रम के इर्द गिर्द लगाया जाता है. कॉलेज का दावा है कि पीएम मोदी ने हाल में उन्हीं का ज़िक्र किया था क्योंकि 2014 में उन्होंने इस तकनीक के सहारे एक चायवाले को गैस की सप्लाई दी थी. 

VIDEO: गाजियाबाद में नाले की गैस से बन रही है चाय

कॉलेज के मुताबिक उस वक़्त नगर निगम ने इनके प्रोजेक्ट को बंद करवा दिया था. अब पीएम मोदी के बयान के बाद फिर
शुरू किया गया है. इस तकनीक को डेवलप करने वाले अभिषेक वर्मा के मुताबिक एक ड्रम वाला ये गैस सिस्टम लगाने में करीब 5 हज़ार का खर्चा आता है और मेंटेनेंस पर खर्च ज़्यादा नहीं है, क्योंकि सब प्राकृतिक रूप से बनता है. ये अभी शुरुआती दौर है लेकिन वाकई अगर ये तकनीक ठीक से विकसित हो जाये तो हम अपनी एक समस्या को इंधन में बदल पाएंगे. 

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