नीतीश ने आरसीपी सिंह को अध्यक्ष बनाकर भाजपा को क्या संदेश दिया है?

हालांकि सरकार अभी भी भाजपा के साथ चल रही है लेकिन नीतीश कुमार जानते हैं कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व जब भी अनुकूल राजनीतिक माहौल मिलेगा तब कभी भी उन्हें चलता कर देगा.

पटना:

जनता दल यूनाइटेड (JDU) के सुप्रीमो नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने राज्यसभा में संसदीय दल के नेता रामचन्द्र प्रसाद सिंह (RCP Singh) को अपनी जगह पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत किया है. हालांकि दो हफ़्ते पूर्व नीतीश कुमार ने पटना के पार्टी दफ़्तर में साफ़ कर दिया था कि उनके बाद पार्टी में आरसीपी सिंह ही हैं लेकिन किसी को अंदाज़ा नहीं था कि पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में नीतीश अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर देंगे.

अब सवाल यह किया जा रहा है कि आख़िर नीतीश ने आरसीपी को क्यों चुना क्योंकि उनका कुल जमा संसदीय इतिहास मात्र दस वर्षों का हैं और पार्टी में कई नेता उनसे काफ़ी वरिष्ठ है. लेकिन इसका एक ही कारण है, वो ना केवल नीतीश कुमार के स्वजातीय कुर्मी जाति से हैं बल्कि नीतीश का उनके ऊपर ‘भरोसा और विश्वास' होना है. इसलिए आरसीपी, वो चाहे 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार हो या इस बार विधानसभा चुनाव में दुर्गति या इससे पूर्व एक मार्च को पार्टी रैली का फ़्लॉप हो जाना, नीतीश उनकी हर ख़ामी या विफलता पर आगे आकर ख़ुद ज़िम्मेवारी ले लेते हैं. इसका कारण है कि वो उनके साथ वर्षों से काम कर रहे हैं और आईएएस भी रहे हैं जो नीतीश कुमार के पसंद के लिए सर्वोत्तम गुण है.

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लेकिन आरसीपी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर नीतीश ने अब भाजपा से अपनी दूरी बनायी है क्योंकि विधानसभा चुनाव में जो कुछ हुआ और उनकी पार्टी अधिकारिक रूप से जो भी कहे लेकिन सच्चाई यही है कि नीतीश जानते हैं कि वो सब भाजपा के गेमप्लान के तहत हुआ. और वो हर मुद्दे पर अब बिहार भाजपा के नेताओं से मुख्यमंत्री आवास में पंचायती से बचना चाहते हैं.

हालांकि सरकार अभी भी भाजपा के साथ चल रही है लेकिन नीतीश कुमार जानते हैं कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व जब भी अनुकूल राजनीतिक माहौल मिलेगा तब कभी भी उन्हें चलता कर देगा. नीतीश ये भी जानते हैं कि आरसीपी के भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से मधुर सम्बंध रहे हैं और वो हमेशा भाजपा के साथ अच्छे सम्बंध रखने के पक्षधर रहे हैं.

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लेकिन अब साफ़ हो गया कि नीतीश के बाद पार्टी में नंबर दो आरसीपी ही हैं और रहेंगे. ये बात अलग है कि वो पार्टी के कार्यकर्ताओं या नेताओं में बहुत लोकप्रिय नहीं. यहां तक कि नालंदा की राजनीति में उनके पार्टी के संस्थापक में से एक पूर्व मंत्री श्रवण कुमार से छत्तीस का आंकड़ा रहा है. हालाँकि पार्टी में अभी भी होगा वही जो नीतीश चाहेंगे.