आइए समझें दिल्ली सरकार के संसदीय सचिवों का मामला? अन्य राज्यों में क्या है हाल

आइए समझें दिल्ली सरकार के संसदीय सचिवों का मामला? अन्य राज्यों में क्या है हाल

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया (फाइल फोटो)

खास बातें

  • इस पूरे मामले पर दोनों ओर से काफी राजनीति हुई.
  • चुनाव आयोग भी अभी तक इस मामले में दिए गए जवाब से संतुष्ट नहीं है.
  • हाल ही में आयोग ने दिल्ली सरकार से कुछ साफ प्रश्नों में जवाब मांगा है.
नई दिल्ली:

दिल्ली सरकार के संसदीय सचिवों की नियुक्ति दिल्ली हाईकोर्ट ने एक लंबी सुनवाई के बाद रद्द कर दी. पिछले साल के मध्य में कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. तबसे इस मामले की सुनवाई जारी थी. इस पूरे मामले पर दोनों ओर से काफी राजनीति हुई और आप पार्टी के नेताओं ने कई आरोप लगाए. बता दें कि चुनाव आयोग भी अभी तक इस मामले में दिए गए जवाब से संतुष्ट नहीं है और हाल ही में आयोग ने दिल्ली सरकार से कुछ साफ प्रश्नों में जवाब मांगा है.

दिल्ली सरकार और विधानसभा अध्यक्ष पर उठे सवाल
इस मामले में दिल्ली सरकार और विधानसभा अध्यक्ष पर कई सवाल उठे. क्या दिल्ली में आम आदमी पार्टी के 21 विधायक दिल्ली सरकार में संसदीय सचिव होने के नाते लाभ के पद पर हैं? इन सवालों ने दिल्ली सरकार और दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष रामनिवास गोयल के दावे पर सवाल उठाए.

सामने आई एक सरकारी चिट्ठी जिसने खोली दावों की पोल
दिल्ली विधानसभा के केअरटेकिंग ब्रांच के डिप्टी सेक्रेटरी मंजीत सिंह की ओर से 23 फरवरी 2016 को एक चिट्ठी लिखकर उपराज्यपाल नजीब जंग के सचिव को सूचित किया कि 'दिल्ली सरकार के निवेदन पर संसदीय सचिवों को विधानसभा में कुछ कमरे और फर्नीचर देना निर्धारित किया गया है.' दिल्ली विधानसभा की तरफ से एलजी सचिवालय को इस चिट्ठी ने दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष रामनिवास गोयल के उस दावे पर सवाल उठाया जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्होंने विधानसभा के अंदर 21 संसदीय सचिवों को कमरे खुद अपनी तरफ से आवंटित किए थे, दिल्ली सरकार या संसदीय सचिवों के मांगने पर नहीं.

क्या दावा किया था विधानसभा अध्यक्ष गोयल ने
14 जून 2016 को रामनिवास गोयल ने एनडीटीवी से बात करते हुए दावा किया था कि 'ये कमरे मैंने ही आवंटित किए हैं और ऐसा करना विधानसभा अध्यक्ष के अधिकार में आता है. मुझे दिल्ली सरकार से इस बारे में कोई संदेश नहीं मिला, मैंने खुद ही दिल्ली के लोगों के लिए काम कर रहे विधायकों को ये कमरे विधानसभा में आवंटित किये हैं."

नियुक्ति के साथ नोटिफिकेशन में ये कहा गया था
इस चिट्ठी से दिल्ली सरकार के उस दावे पर भी सवाल उठे कि विधायकों को संसदीय सचिव होने के नाते लाभ नहीं मिला इसलिये ये लाभ के पद का मामला नहीं. क्योंकि मार्च 2015 में जिस नोटिफिकेशन के तहत 21 संसदीय सचिव बनाये गए उसमें साफ़ लिखा था कि जिस मंत्री के साथ संसदीय सचिव जुड़ा होगा उसके दफ़्तर में ही काम करने के लिए संसदीय सचिव को जगह मिलेगी, लेकिन विधानसभा में कमरे के लिए सरकार के निवेदन का मतलब है कि संसदीय सचिवों को अलग से कमरे दिए जाने को कहा गया, साथ फर्नीचर देने का मतलब है कि इसमें पैसा भी लगेगा.

चुनाव आयोग में शिकायत करने वाले प्रशांत पटेल का दावा
वैसे, चुनाव आयोग में 21 संसदीय सचिव की शिकायत करने वाले प्रशांत पटेल ने ये दस्तावेज चुनाव आयोग में जमा कर दिए हैं. प्रशांत पटेल का कहना था कि 'विधानसभा सचिवालय के खुद साफ़ शब्दों में ये स्वीकार कर लेने से दिल्ली सरकार के इस झूठ का पर्दाफाश हो गया है कि 21 संसदीय सचिवों को कोई सुविधा नहीं दी गई.

आरटीआई से सामने आई यह जानकारी
बीजेपी नेता और आरटीआई कार्यकर्ता विवेक गर्ग को आरटीआई से जो जवाब मिला है उसमें साफ़ लिखा हुआ है कि सभी 21 संसदीय सचिवों को विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल की तरफ से दफ्तर के लिए कमरे आवंटित किए गए थे।

बीजेपी नेता विवेक गर्ग का कहना है कि "इन 21 विधायकों ने चुनाव आयोग में गलत हलफनामा दिया है इसलिये हम गुरुवार को चुनाव आयोग में शिकायत करके इनके खिलाफ आपराधिक केस दर्ज कराने की मांग करेंगे।"

बीजेपी नेता विजेंद्र गुप्ता ने लगाए थे ये आरोप
बीजेपी नेता विजेंद्र गुप्ता ने आरोप लगाया है कि 21 'आप' विधायकों की संसदीय सचिव के तौर पर नियुक्ति गलत है। यही नहीं, उन्होंने दावा किया कि दिल्ली विधानसभा में इन 21 विधायकों के लिए कमरे बन रहे हैं जिसमे लाखों रुपये खर्च हो रहे हैं। गुप्ता ने कहा कि "21 संसदीय सचिव के लिए विधानसभा में कमरे तैयार करने में लाखों खर्च किये गए, इनकी नियुक्ति पहले की, कानून में संशोधन बाद में किया गया, जो अभी केंद्र से मंज़ूर नहीं हुआ है ऐसे में ये नियुक्ति गलत हैं। " दिल्ली सरकार के संसदीय सचिव और जंगपुरा के 'आप' विधायक प्रवीण कुमार ने कहा कि "हमको विधानसभा में कमरे संसदीय सचिव के तौर पर नहीं बल्कि एक विधायक के तौर पर मिलने की बात है, लेकिन ये अभी मिले नहीं हैं।"

संसदीय सचिवों के मामले को लेकर दूसरे राज्यों का हाल
मणिपुर और पश्चिम बंगाल
केजरीवाल सरकार पहली नहीं है, जिसने संसदीय सचिव के पद को ऑफिस ऑफ प्रॉफिट की परिभाषा से बाहर करने के लिए कानून में संशोधन करने की कोशिश की हो। इससे पहले कई सरकारों ने इस तरह के कदम उठाये हैं। सबसे ताज़ा मिसाल मणिपुर और पश्चिम बंगाल का है।

दोनों ही सरकारों ने 2012 में अपने अपने कानूनों में संशोधन कर संसदीय सचिव के पद को ऑफिस ऑफ प्रॉफिट से बाहर करने की कोशिश की और दोनों ही सरकारों के इस कदम को अदालत में चुनौती दी गई जहां मणिपुर के कानून को अदालत ने सही ठहराया वहीं पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया।

अरविंद केजरीवाल ने भी दिया दूसरे राज्यों का उदाहरण
अरविंद केजरीवाल ने अपने संसदीय सचिवों को बचाने के लिये कानून में जो संशोधन किया उसे केंद्र सरकार ने ही मंजूरी नहीं दी। अब आम आदमी पार्टी केंद्र पर निशाना साध कर दूसरे राज्यों की मिसाल दे रही है। सीएम अरविंद केजरीवाल का कहना है कि तमाम राज्यों में संसदीय सचिव हैं तो हमें क्यों निशाना बनाया जा रहा है।

पंजाब सरकार की वेबसाइट के मुताबिक वहां 19 संसदीय सचिव हैं
पंजाब सरकार की वेबसाइट बताती है कि वहां 19 संसदीय सचिव हैं। इसे अदालत में चुनौती दी गई। हरियाणा में भी 4 संसदीय सचिव हैं। इसे भी अदालत में चुनौती दी गई है, हालांकि इन राज्यों में इन पदों को सही ठहराने के लिये कानूनी प्रावधान भी है जिसके सही गलत होने का फैसला अदालत में होगा। उधर, पुदुच्चेरी में संसदीय सचिव का एक पद है, लेकिन पुदुच्चेरी का संसदीय सचिव कानून हो जो इस पद को जायज ठहराता है।

आम आदमी पार्टी के नेताओं की दलील ये कि उन्होंने संसदीय सचिव के पद पर रहते हुए कोई वेतन या सुविधा नहीं ली हालांकि स्पीकर ने मंगलवार को एनडीटीवी इंडिया से कहा कि विधायक होने के नाते कमरे 'आप' के एमएलए को दिये गये। जिनका इस्तेमाल नहीं किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसले में कही ये बात
उधर 2006 में जया बच्चन के मामले में दिया गया सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला कहता है कि अगर किसी सांसद या विधायक ने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का पद लिया है तो उसे सदस्यता गंवानी होगी चाहे वेतन या भत्ता लिया हो या नहीं। चुनाव आयोग के पूर्व सलाहकार के जे राव कहते हैं कि आप के विधायकों पर आखिरी फैसले का ऐलान चुनाव आयोग ही करेगा।

संसदीय सचिव पर पहले भी रहा विवाद

  • शीला सरकार तक 3 से ज़्यादा संसदीय सचिव नहीं रहे
  • साहेब सिंह वर्मा ने नंद किशोर गर्ग को संसदीय सचिव बनाया
  • अयोग्य करार दिए जाने की आशंका से गर्ग ने इस्तीफ़ा दिया
  • 1998-2003 के दौरान शीला सरकार में एक संसदीय सचिव
  • 2003-2008 और 2008-2013 में सिर्फ़ 3 संसदीय सचिव

अब तक किन पर गिर चुकी है गाज
  • सोनिया गांधी ने 2006 में विवाद के बाद अपने कई पदों से इस्तीफ़ा दिया
  • जया बच्चन की राज्यसभा सदस्यता रद्द की गई थी
  • यूपी के दो विधायकों की सदस्यता गई
  • 2015 में बजरंग बहादुर सिंह, उमाशंकर सिंह की सदस्यता रद्द

पहले भी संसदीय सचिव पर विवाद
पश्चिम बंगाल (टीएमसी सरकार)
दिसंबर 2012 : संसदीय सचिव बिल पास
जनवरी 2013 : 13 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया
जनवरी 2014 : 13 और विधायक संसदीय सचिव नियुक्त

संसदीय सचिवों को मंत्री का दर्जा प्राप्त
जून 2015: हाईकोर्ट ने बिल को असंवैधानिक बताया
धारा 164 (1A) के तहत असंवैधानिक ठहराया
धारा 164-(1A): कुल विधायकों के 15% से ज़्यादा मंत्री नहीं हो सकते

गोवा (कांग्रेस सरकार)
2007 : कांग्रेस सरकार ने 3 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया
तय संख्या से तीन ज़्यादा मंत्री बनाए गए
विवाद होने पर तीनों को कैबिनेट रैंक के साथ संसदीय सचिव बनाया
जनवरी 2009 : बॉम्बे हाइकोर्ट ने इसे संविधान का उल्लंघन बताया
मंत्रियों की संख्या कम करने के लिए ऐसा नहीं कर सकते : HC

हिमाचल प्रदेश (कांग्रेस सरकार)
2005 : 8 विधायकों को मुख्य संसदीय सचिव, 4 को संसदीय सचिव बनाया
नियुक्ति के लिए सरकार ने कोई व्यवस्था नहीं बनाई
CM के पास संसदीय सचिव नियुक्त करने का अधिकार नहीं: हाइकोर्ट
सभी 12 विधायकों की संसदीय सचिव पद से छुट्टी

कहां फंसा पेच?
मार्च 2015 : 21 विधायकों की संसदीय सचिव के तौर पर नियुक्ति
जून 2015 : सरकार ने बिल लाकर संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद से हटाया
सरकार ने संशोधित क़ानून को बैक डेट से लागू करने का प्रस्ताव किया
दिल्ली सरकार ने बिल को उपराज्यपाल के पास भेजा
उपराज्यपाल ने बिल को केंद्र और राष्ट्रपति के पास भेजा
दिल्ली सरकार के फ़ैसले को केंद्र से मंज़ूरी नहीं मिली
सवाल उठा, मार्च में की गई नियुक्तियां ग़लत नहीं तो जून में संशोधित बिल क्यों?
जून 2016: राष्ट्रपति ने इस संशोधित बिल को ख़ारिज कर दिया

AAP विधायकों की दलील
लाभ के पद का सवाल ही नहीं है
ना सरकार से कोई ऑफ़िस मिला, ना कोई ट्रांसपोर्ट
ना कोई गैजेट, नोटबुक या पेन मिला
विधानसभा में दफ़्तर संसदीय सचिव बनने की वजह से नहीं  

बचाव में उतरी AAP सरकार
विधायकों के बचाव में दिल्ली सरकार बिल लेकर आई
जून 2015 में दिल्ली विधानसभा सदस्य (आयोग्यता निवारण संशोधन) बिल
बिल में मंत्रियों को भी संसदीय सचिव रखने की छूट
संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद से अलग किया
संसदीय सचिवों को वेतन, भत्ता नहीं मिलेगा
ज़रूरत पड़ने पर वाहन और मंत्री के ऑफिस में बैठने की जगह
 
             क्या दोहरा पाएंगे जीत? ऐसी रही है इन विधायकों की जीत
विधायक           विधानसभा क्षेत्र                  जीत का अंतर
जरनैल सिंहरजौरी गार्डन10,036
जरनैल सिंहतिलक नगर19890     
नरेश यादव  मेहरौली          16951
अल्का लांबा   चांदनी चौक    18287
प्रवीण कुमार   जंगपुरा      20450
राजेश ऋषि          जनकपुरी                  25580
राजेश गुप्ता          वज़ीरपुर             22044
मदन लाल       कस्तूरबा नगर 15896
विजेंद्र गर्ग         राजेंद्र नगर                20051
अवतार सिंह    कालका जी             26444
शरद कुमार  नरेला               40292
सरिता सिंह     रोहताश नगर    7874
संजीव झा         बुराड़ी               67950
सोमदत्त            सदर बाज़ार   34315
शिवचरण गोयल    मोती नगर  15221
अनिल कुमार वाजपेयी    गांधी नगर    7482
मनोज कुमार        कोंडली             24759
नितिन त्यागी       लक्ष्मी नगर     4846
सुखबीर सिंह      मुंडका            40826
कैलाश गहलोत     नज़फ़गढ़      1555
आदर्श शास्त्री         द्वारका              39366

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