पढ़ें... आखिर कौन हैं कैराना का मुद्दा उठाने वाले 'दल-बदल' हुकुम सिंह...

पढ़ें... आखिर कौन हैं कैराना का मुद्दा उठाने वाले 'दल-बदल' हुकुम सिंह...

बीजेपी सांसद हुकुम सिंह (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के कैराना लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद हुकुम सिंह इन दिनों समाचारों की सुर्खियों में बने हुए हैं। उन्होंने एक लिस्ट जारी कर आरोप लगाया कि सांप्रदायिक ताकतों के चलते वहां बसे कई हिन्दू परिवारों को घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा है। बाद में हुकुम सिंह एनडीटीवी से बात करते हुए वह अपने बयान से पलट गए और उन्होंने कहा  कि यह मामला कानून व्यवस्था का है, सांप्रदायिकता का नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि सांप्रदायिक रंग देकर कुछ लोग इलाके के गुंडों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, कुछ लोगों ने इसे मीडिया में हुकुम सिंह का मामले में यू-टर्न करार दिया।

खैर, जो भी हो हुकुम सिंह खबरों में हैं और चर्चा में लगातार बने हुए हैं। कैराना पर सूची जारी करने के बाद उन्होंने कांधला तहसील की भी सूची जारी की और आरोप लगाया कि यहां के लोग भी पलायन को मजबूर हैं। बीजेपी के कुछ सांसद बुधवार को कैराना का दौरा कर रहे हैं ताकि वहां की स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार की जा सके। यानी राजनीति की जा सके।

आज कैराना देश की राजनीति का केंद्र-सा बनता जा रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अचानक यह गुम हो चुका नाम हुकुम सिंह जो हेडलाइन बन रहा है वे कौन हैं... एक नजर... (ये भी पढ़ें : हुकुम सिंह, मुनव्वर हसन, राजनीतिक लड़ाई और कैराना (मुजफ्फरनगर))

पढ़ाई में बेहद होशियार थे हुकुम सिंह
बीजेपी सांसद हुकुम सिंह मुजफ्फरनगर के कैराना के ही रहने वाले हैं। 5 अप्रैल 1938 को जन्मे बाबू हुकुम सिंह ने बचपन में शायद ही यह सोचा होगा कि वह राजनीति में जाएंगे। पढ़ाई में बचपन से  हुकुम सिंह काफी होशियार थे। कैराना में ही 12वीं तक की पढ़ाई के बाद परिजनों ने आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय भेजा। वहां पर हुकुम सिंह ने बीए और एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। इस बीच 13 जून 1958 को उनकी शादी रेवती सिंह से हो गई। उन्होंने वकालत का पेशा अपना लिया और प्रैक्टिस करने लगे। उस समय के जाने माने वकील ब्रह्म प्रकाश के साथ उन्होंने वकालत शुरू की।

जज की नौकरी छोड़ सेना में हुए शामिल
इसी दौरान उन्होंने जज बनने की परीक्षा पीसीएस (जे) भी पास की। जज की नौकरी शुरू करते, इससे पहले चीन ने भारत पर हमला कर दिया और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने युवाओं से देश सेवा के लिए सेना में भर्ती होने के आह्वान पर वो सेना में चले गए। 1963 में बाबू हुकुम सिंह भारतीय सेना में अधिकारी हो गए। हुकुम सिंह ने बतौर सैन्य अधिकारी 1965 में पाकिस्तान के हमले के समय अपनी टुकड़ी के साथ पाकिस्तानी सेना का सामना किया। इस समय कैप्टन हुकुम सिंह राजौरी के पूंछ सेक्टर में तैनात थे। जब लड़ाई समाप्त हो गई और सब सामान्य हो गया तब 1969 में हुकुम सिंह ने सेना से इस्तीफा दे दिया और वापस मुजफ्फरनगर आ गए और वकालत चालू कर दी।

कांग्रेस, लोकदल, कांग्रेस और फिर बीजेपी की राजनीति की
कुछ ही समय में वह अपने साथी वकीलों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए उनके कहने पर बार के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ लिया और 1970 में वह चुनाव जीत भी गए। उनकी इच्छा थी कि वह एक स्थापित वकील बने। लेकिन यहां से उनकी राजनीति की शुरुआत हो गई। 1974 तक उन्होंने इलाके के जन आंदलनों में हिस्सा लिया और लोकप्रिय होते चले गए। हालत ऐसे हो गए थे इस साल कांग्रेस और लोकदल दोनों ही बड़े राजनीतिक दलों ने उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए अपने-अपने टिकट देने की बात कही।

राजनीति की शुरुआत कांग्रेस के टिकट पर
काफी सोच विचार के बाद उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और चुनाव जीत भी गए। अब हुकुम सिंह उत्तर प्रदेश की विधानसभा के सदस्य बन चुके थे। 1980 में उन्होंने पार्टी बदली और लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ा और इस पार्टी से भी चुनाव जीत गए। तीसरी बार 1985 में भी उन्होंने लोकदल के टिकट पर ही चुनाव जीता और इस बार वीर बहादुर सिंह की सरकार में मंत्री भी बनाए गए। बाद में जब नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने हुकुम सिंह को राज्यमंत्री के दर्जे से उठाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया।

कल्याण सिंह के करीबी भी रहे
इसके अलावा 1981-82 में उन्हें लोकलेखा समिति का अध्यक्ष भी बनाया गया। 1975 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस समिति के महामंत्री भी बने। 1980 में लोकदल के अध्यक्ष भी बने। और 1984 में वह विधानसभा के उपाध्यक्ष भी रहे। 1995 में हुकुम सिंह ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा और चौथी बार विधायक बने। कल्याण सिंह और राम प्रकाश गुप्ता की सरकार में वह मंत्री रहे।

मुजफ्फरनगर दंगों का आरोप भी लगा
2007 में हुए चुनाव में भी वह विधानसभा पहुंचे। 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के आरोप भी हुकुम सिंह पर लगे। 2014 में बीजेपी के टिकट पर गुर्जर समाज के हुकुम सिंह ने कैराना सीट पर पार्टी को विजय दिलाई। इस लोकसभा चुनाव में पार्टी को यूपी में अभूतपूर्व सफलता मिली। उनको जानने वाले और उनको मानने वाले तो यह तक मान रहे थे कि नरेंद्र मोदी सरकार में उन्हें मंत्री पद भी मिलेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं...


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