श्मशान छोड़कर कुंभ में क्यों पहुंचे हैं अघोरी?

आमतौर पर अघोरी साधु कुंभ में नहीं आते हैं, वो श्मशान में रहते हैं लाशों के साथ खेलते है...मांस खाते हैं और रात को तांत्रिक क्रियाएं करते हैं. लेकिन इस बार अघोरियों ने कुंभ मेले में जानिए कैसे डेरा डाल रखा है?

श्मशान छोड़कर कुंभ में क्यों पहुंचे हैं अघोरी?

कुंभ में इस बार अघोरी भी पहुंचे हैं.

प्रयागराज:

कुंभ में अघोरी नहीं आते हैं...वो श्मशान में रहते हैं लाशों के साथ खेलते है...मांस खाते हैं और रात को तांत्रिक क्रियाएं करते हैं. लेकिन श्मशान छोड़कर अघोरियों ने कुंभ मेले में कैसे डेरा डाल रखा है. मेरे मन में सहज ये बात उस वक्त आई जब मेरे एक मित्र सतेंद्र सिंह ने मुझे अघोरी आश्रम के बारे में बताई तो उनको लेकर उत्सुकता जागी क्योंकि टीवी पर कपाल और शराब पीते काले कपड़ों में डरावने नजर आने वाले कई अघोरियों को देख चुका था.अघोरियों के बारे में यही धारणा नागा साधू से लेकर आम लोगों के बीच में है....क्योंकि श्मशान घाट में तांत्रिक क्रियाएं करते अघोरियों को टीवी पर दिखाया गया..अघोरियों की पूजा रात को शुरु होती है..लिहाजा कुंभ मेले में रात को हम विश्व अघोर न्यास परिषद के कैंप पहुंचे.

मुंबई से कुंभ मेले पहुंते अघोरियों से एक आश्रम में मुलाकात हुई इनके गुरुअघोरी आशीष हैं....अघोरी जहां पूजा कर रहे थे वहां गणेश जी और गौतम बुद्ध की मूर्ति के हाथों में मुंड है..सफेद कपड़ों में अघोरी आशीष की पूजा चल रही है.अघोरियों की पूजा में कंकाल और खोपड़ी क्यों आवश्यक होती है..वो इस बात से खासे नाराज दिखे कि अघोरियों को केवल श्मशान में मांस खाते शराब पीते हुए मीडिया दिखाती है.


विश्व अघोरी न्यास परिषद के आशीष अघोरी बताते हैं टीवी ने ये फैला दिया गया अघोरी मुर्दा खाने वाले और शराब पीने वाले होते हैं लेकिन अघोरी का मतलब है सरलता है. मांस खाना मुर्दों के बीच रहना इसके कुछ तत्व है श्मशान में वो इसीलिए रहता था कि जहां सम स्थान हो...राजा मरा तो वो भी राख..चोर मरा तो वो राख और साधू मरा तो वो भी राख जहां समभाव हो..खोपड़ी रखने का क्या मतलब है ये किसी और की खोपड़ी नहीं बल्कि मेरी है...इसका मतलब है कि हमने बहुत चलाई अब हमने अपना दिमाग गुरु के हाथ में सौंप दिया..इसलिए यहां खोपड़ी रखी है..खोपड़ी के अहंकार  को हमने अपने गुरु के हाथों में रख दिया ये संकेत है गणेश जी की मूर्ति के हाथों में भी खोपड़ी है और महात्मा बुद्ध के हाथों में भी खोपड़ी है...अघोरी कहते हैं कि ये दोनों ज्ञान के अवतार है लिहाजा हमने अपना अहंकार इन गुरुओं के हाथ में दे दिया है....

रात में क्यों करते हैं अघोरी पूजा
विश्व अघोरी न्यास परिषद आशीष अघोरी बताते हैं कि रात में पूजा करने के पीछे दो कारण है. पहली नींद सबसे प्यारी होती है हम इसका कुछ हिस्सा ईश्वर को देते हैं दूसरा है भारतीय अर्थव्यवस्था को हम दिन में पूजा करके डिस्टर्ब नहीं करना चाहते हैं कि दिन में पूजा करेंगे तो काम कब करेंगे देश कैसे तरक्की करेगा.

चिता की अधजली लकड़ी से बनता खाना
अघोरी आश्रम की यज्ञ की आग भी चिता में बची लकड़ी से होता है और चिता की ही लकड़ी से खाना भी पकाया जाता है...लेकिन चिता की लकड़ी जलाने के पीछे भी कोई तंत्र मंत्र नहीं है बल्कि चिता की बची लकड़ियां बरबाद न होने पाए, इसके चलते उसका अघोरी उपयोग करते हैं. अघोरी की प्राथमिक अवस्था श्मशान घाट में रहना है ताकि जीवन मृत्यु का डर खत्म हो जाए लेकिन कुछ लोगों ने इसे ही अघोर समझ लिया.जबकि अघोर का मतलब जो घोर न होकर सरल हो.हम सबके बीच का हो. अघोरी काम करता है पूजा करता लेकिन आडंबर नहीं करता है. अघोरी आशीष कहते हैं कि वो कोढ़ियों की सेवा करते हैं और गलीब बच्चियों की शादी कराते हैं समाज में सकारात्मक भूमिका निभाते हैं लेकिन मीडिया कुछ भिखारी टाइप के अघोरियों को पैसा देकर शराब मांस खिलवा कर खबर बना देती है. जिससे हम लोग बहुत दुखी हैं.

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