यह ख़बर 23 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

क्यों भूखे हैं बंदर? दिल्ली हाइकोर्ट ने चीफ सेक्रेटरी से मांगा जवाब

नई दिल्ली:

दिल्ली के असोला भाटी में बंदरों की बुरी हालत पर दिल्ली हाइकोर्ट ने दिल्ली के चीफ सेक्रेटरी डीएम सपोलिया से जवाब मांगा है।

हाइकोर्ट ने यह नोटिस एक एनजीओ की याचिका पर जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि हाइकोर्ट के आदेश के बावजूद बंदरों का ध्यान रखा नहीं जा रहा और भूख की वजह से बंदरों की मौत हो रही है। याचिका में इस संबंध में अदालत की अवमानना का मामला चलाने की मांग की गई है।

गौरतलब है कि दिल्ली हाइकोर्ट ने 2007 में आदेश किया था कि दिल्ली की आबादी में रहने वाले बंदरों को भाटी माइंस के पास जंगल में छोड़ा जाए और दिल्ली सरकार उनके खाने पीने का इंतजाम करे। वन विभाग को इसकी देखरेख के लिए कहा गया था।

कोर्ट ने इस मामले में एक सब कमेटी का गठन भी किया था और उम्मीद जताई थी कि सरकार दिल्ली वालों को 3 महीने के भीतर बंदरों के उत्पात से निजात दिलाएगी और भाटी इलाके में करीब 100 एकड़ में फैले क्षेत्र को बंदरों के रहने के लिए उपयुक्त बनाएगी। कोर्ट ने बकायदा बंदरों के खाने के लिए विभिन्न मंदिरों और जगहों पर काउंटर खोलने के आदेश भी दिए थे।

न्यू फ्रेंडस कॉलोनी के निवासियों की याचिका पर शुरुआत में दिल्ली से बंदरों को पकड़ कर मध्य प्रदेश भेजने के आदेश दिए गए थे, लेकिन बाद में मध्य प्रदेश ने इससे इनकार कर दिया था।

एनजीओ और इस सब कमेटी से जुड़ी सौम्या घोष ने हाइकोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा है कि भाटी में बंदरों की हालत खराब है और खाना न मिलने की वजह से काफी बंदरों की मौत हो चुकी है। यहां तक कि इंतजाम न होने की वजह से बंदर वापस आबादी की तरफ वापस लौट रहे हैं। इसके अलावा आदेश के तहत इलाके में वन विभाग ने फलदार पेड़ लगाने का भी काम नहीं किया। इसे लेकर कोर्ट की अवमानना का मामला चलाया जाना चाहिए।

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मामले की सुनवाई करते हुए हाइकोर्ट ने इस मामले में नोटिस जारी कर दिल्ली के चीफ सेक्रेटरी से जवाब मांगा है। इससे पहले केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी सरकार पर बंदरों के बजट में गड़बड़ी करने और लापरवाही बरतने का आरोप लगा चुकी हैं।