
नेपाल त्रासदी के नाम पर कोर्ट की कार्यवाही को टालने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि सरकार बार-बार मामले को टाल रही है।
यह भी पढ़ें
विजय माल्या अवमानना केस: सरकार ने SC में बताया, 'ब्रिटेन में कानूनी जटिलताओं के कारण प्रत्यर्पण में हो रही देर'
चार धाम प्रोजेक्ट: सरकार का SC में हलफनामा, परियोजना के लिए सड़क की चौड़ाई 10 मी. रखने का लिया पक्ष
पालघर मामले की जांच पूरी, पुलिसकर्मियों पर की गई कार्रवाई : महाराष्ट्र सरकार ने SC को दी जानकारी
सरकार को अदालती कामकाज के बारे में भी सोचना चाहिए क्योंकि ये भी जरूरी काम हैं और त्रासदी के नाम पर कार्रवाई को टालने की मांग कतई जायज नहीं ठहराई जा सकती। सुप्रीम कोर्ट कोलकाता की एक कंपनी की अर्जी पर सुनवाई कर रहा है।
बुधवार की सुनवाई में केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि इस मामले में कुछ वक्त चाहिए क्योंकि केबिनेट सचिव अचानक नेपाल में आए भूकंप की वजह से व्यस्त हो गए। इस वजह से वो जवाब तैयार नहीं कर पाए। इस दौरान जस्टिस एआर दवे की अगुवाई वाली बेंच ने सरकार को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि सरकार कैसे बार-बार कोर्ट से सुनवाई टालने के लिए कह सकती है।
नेपाल में हुई त्रासदी पर के नाम पर सुनवाई टालने की मांग को कैसे सही ठहराया जा सकता है। सरकार क्या ये नहीं जानती कि अदालती कामकाज भी जरूरी हैं। सरकार किसी दूसरे काम का हवाला देकर कोर्ट कार्रवाई को लंबित नहीं रख सकती। क्या सरकार इस मसले को सुलझाना नहीं चाहती।
कोलकाता की एक कंपनी ने कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा है कि सोने के गहने एक्सपोर्ट करने के लिए एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी कारपोरेशन ऑफ इंडिया से करार किया था। लेकिन विदेशी खरीदारों से उसके करीब 500 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं हुआ। जब कंपनी ने क्लेम मांगा तो मना कर दिया गया। कंपनी ने इसके खिलाफ नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमिशन में अर्जी दाखिल की लेकिन 2014 में सुनवाई के बाद उसकी अर्जी खारिज कर दी गई।
कमिशन ने आदेश में कहा कि वो किसी सिविल फोरम में मामला दाखिल करे क्योंकि ये साफ नहीं है कि कंपनी इस मामले में उपभोक्ता है। इसके बाद कंपनी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और कहा है कि कमिशन इस तरह मामले को खारिज नहीं कर सकता क्योंकि कमिशन खुद ही सिविल फोरम है। इस मामले में कोर्ट ने सरकार से उसका पक्ष पूछा था।