यह ख़बर 07 मार्च, 2014 को प्रकाशित हुई थी

दिल्ली में राष्ट्रपति शासन के बारे में भाजपा और कांग्रेस रुख साफ करें : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने आज बीजेपी और कांग्रेस से पूछा कि क्या वे दिल्ली में सरकार बनाने के लिए हाथ मिला सकते हैं। दिल्ली विधानसभा को एक साल तक निलंबित रखने और राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने के खिलाफ आम आदमी पार्टी (आप) की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी को अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'जनलोकपाल बिल पर बीजेपी और कांग्रेस, दोनों पार्टियां एक-साथ आई थीं। यह संकेत हैं कि बीजेपी और कांग्रेस साथ मिलकर सरकार भी बना सकती हैं। दिल्ली विधानसभा में जो हुआ, उससे साफ संकेत मिलता है कि कुछ भी असंभव नहीं। यहां तक कि किसी पर मंच पर एक-साथ नहीं आने वाली दो पार्टियां भी कुछ मुद्दों पर साथ आ सकती हैं। राजनीति में कोई भी स्थाई शत्रु नहीं होता। आज के दुश्मन कल दोस्त और सबसे अच्छे दोस्त भी हो सकते हैं।'

शीर्ष अदालत ने शुरू में इन दोनों राजनीतिक दलों को सुनवाई से अलग रखा था, लेकिन आज उसने इस मसले पर दोनों दलों को अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया। कोर्ट ने पाया कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस्तीफा देने के बाद सरकार बनाने के सवाल पर भाजपा और कांग्रेस ने अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की थी।

जस्टिस आरएम लोढा और जस्टिस एनवी रमण की पीठ ने कहा, 'हम भाजपा और कांग्रेस को इस मामले में तथ्यों के बारे में उनकी स्थिति जानने के लिये नोटिस जारी कर रहे हैं।' न्यायाधीशों ने कहा कि अगर उनकी स्थिति साफ हो जाएगी, तो उसे विधानसभा को निलंबित रखने के पीछे दल बदल के सहारे बहुमत हासिल करने की अटकल के सवाल पर गौर करने की जरूरत नहीं है।

कोर्ट ने दोनों राजनीतिक दलों से तीन सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। इस मामले में अब एक अप्रैल को आगे सुनवाई होगी।

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कोर्ट आप पार्टी और केंद्र सरकार की दलीलों पर गौर करने के बाद यह जानना चाहता था कि संविधान की दसवीं अनुसूची लागू होने के बाद क्या विधानसभा को निलंबित रखने के लिए दल बदल की संभावना उचित आधार होता है। कोर्ट यह समझने का प्रयास कर रहा था कि राष्ट्रपति का आदेश यह कैसे कह सकता है कि विधान सभा को एक साल के लिए निलंबित रखा जाए। (इंपुट भाषा से भी)