यह ख़बर 17 मई, 2013 को प्रकाशित हुई थी

'बलात्कार के मामलों में महिला का चरित्र नहीं हो सकता बचाव का आधार'

खास बातें

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि बलात्कार के मामलों में महिला का चरित्र अप्रासंगिक हैं और कोई भी बलात्कारी इसे अपने जघन्य कृत्य में बचाव का आधार नहीं बना सकता। न्यायालय ने कहा कि स्वच्छंद विचारों वाली महिला को भी जीवन जीने का अधिकार है।
नई दिल्ली:

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि बलात्कार के मामलों में महिला का चरित्र अप्रासंगिक हैं और कोई भी बलात्कारी इसे अपने जघन्य कृत्य में बचाव का आधार नहीं बना सकता। न्यायालय ने कहा कि स्वच्छंद विचारों वाली महिला को भी जीवन जीने का अधिकार है।

न्यायालय ने कहा कि बलात्कार न केवल एक महिला बल्कि पूरे समाज के खिलाफ अपराध है। न्यायालय ने कहा कि अदालतों को ऐसे मामलों में सख्ती और कठोरता से निपटना चाहिए।

न्यायमूर्ति बीएस चौहान और एमएम आई कलीफुल्ला की एक पीठ ने कहा, ‘‘पीड़िता का यदि पहले ही कौमार्य भंग हो चुका हो तो भी इससे किसी व्यक्ति को उससे बलात्कार करने का लाइसेंस नहीं मिल जाता। वह पीड़िता नहीं बल्कि आरोपी था जिसके खिलाफ सुनवाई चल रही थी। इसलिए बलात्कार के मामले में पीड़िता के चरित्र का मुद्दा पूरी तरह से अप्रासंगिक है।’’

पीठ ने यह आदेश बलात्कार के एक आरोपी द्वारा दाखिल एक याचिका की सुनवाई करते हुए दिया जिसमें उसने स्वयं की दोषसिद्धि को इस आधार पर चुनौती दी थी कि पीड़िता स्वच्छंद चरित्र वाली थी और उसे यौन संबंधों की आदत थी।

न्यायालय ने आरोपी को यह कहते हुए राहत देने से इनकार कर दिया कि यह महत्वपूर्ण नहीं कि बलात्कार पीड़िता यौन संबंध बनाने की आदी थी।

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

पीठ ने कहा, ‘‘स्वच्छंद विचारों वाली महिला को भी किसी और सभी के साथ यौन संबंध बनाने से इनकार करने का अधिकार है क्योंकि वह किसी या सभी के साथ यौन सम्बंध बनाने के लिए कोई आसान शिकार नहीं।’’