Coronavirus Lockdown: हर वक्‍त कोरोना-कोरोना न करें, ग्‍लास आधा भरा भी तो है

Coronavirus Outbreak: मानसिक रोग विशेषज्ञों के अनुसार, लोगों को ऐसे समय में बेचैनी, तनाव, रोग भ्रम, घबराहट के दौरे जैसा अनुभव हो सकता है. सामाजिक दूरी शब्द अब रोजमर्रा की जिंदगी की एक ऐसी सच्‍चाई बन गई है.

Coronavirus Lockdown: हर वक्‍त कोरोना-कोरोना न करें, ग्‍लास आधा भरा भी तो है

Coronavirus Lockdown: घरों में बंद लोगों को सता रही है अनिष्‍ठ की आशंका

नई दिल्ली:

लोग घरों में कैद हैं.... बालकनी से बाहर झांकों तो चारों ओर सन्नाटा है.... सड़कें जिन्हें कभी बसों और कारों की भीड़ से सांस नहीं आती थी, आज सुनसान पड़ी हैं.... दूर-दूर तक जहां तक नजर दौड़ाओ विराना ही विराना है, दिनों को खामोशी निगल रही है और इस खामोशी में कुत्तों के रोने की आवाज डर को और गहरा कर जाती है.
 
ये किसी हालीवुड मूवी का सीन नहीं है बल्कि दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और हिन्‍दुस्‍तान के सारे छोटे-बड़े शहरों के हालात हैं. कोरोना वायरस का कहर जैसे-जैसे बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे लोगों के दिलों में खौफ भी बढ़ता जा रहा है. 

रितिका सिंह के घर में किसी भी दिन नया मेहमान आ सकता है. वह इसे लेकर बेहद खुश है लेकिन साथ ही कोरोना वायरस के कारण उनकी रातों की नींद उड़ गई है. उन्हें यह चिंता सता रही है कि कहीं उनके भीतर यह वायरस प्रवेश न कर चुका हो और अनजाने में ही उसका अजन्मा बच्चा भी इसकी चपेट में न आ जाए.
 
अगले तीन सप्ताह तक देश में करोड़ों लोगों को घरों में अकेले जिंदगी बितानी है. रितिका की तरह और भी लाखों लोग हैं जिन्हें अनिष्ठ की आशंका सता रही है.

लेकिन चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि दिमाग को डरावने सपनों से बाहर निकालने का एक ही रास्ता है कि लोग अपने रोजाना के रूटीन के अनुसार कामकाज करें. कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों और मौतों के सिलसिले से घबराएं नहीं और इस दौरान नियमित रूप से कसरत या योग आदि जरूर करें.
 
झांसी में सरकारी नौकरी कर रही रितिका ने अभी हाल फिलहाल ही मातृत्व अवकाश लिया है और वाराणसी में अपने माता-पिता के साथ रह रही हैं. वह कहती हैं, "दिन तो अक्सर बोरियत में बीत जाता है लेकिन रात बहुत डरावनी लगती है, दिमाग में उल्टे-पुल्टे विचार आते हैं, सारी डरावनी फिल्मों के सीन साकार होते लगते हैं."

रितिका ने फोन पर बताया, "रात में बिस्तर पर लेटती हूं तो सो नहीं पाती ....अगर मुझे संक्रमण हो गया तो क्या होगा? कहीं बच्चे को भी तो नहीं हो जाएगा? भगवान करे , ऐसा कुछ न हो लेकिन दिमाग इतना परेशान हो जाता है कि कुछ समझ नहीं आता."

मानसिक रोग विशेषज्ञों के अनुसार, लोगों को ऐसे समय में बेचैनी, तनाव, रोग भ्रम, घबराहट के दौरे जैसा अनुभव हो सकता है. सामाजिक दूरी शब्द अब रोजमर्रा की जिंदगी की एक ऐसी सच्‍चाई बन गई है.

सर गंगाराम अस्पताल के कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट राजीव मेहता कहते हैं, "हाइपोकोंड्रियासिस यानि भ्रम एक ऐसी सनक है जिसमें इंसान को लगता है कि उसे कोई गंभीर बीमारी हो गई है जिसका पता नहीं चल पा रहा है. मेरे क्लिनिक में ऐसे लोग आ रहे हैं जो बिना किसी लक्षण के भी कोरोना वायरस के टेस्ट के लिए जोर दे रहे हैं."
 
मुंबई के लीलावती अस्पताल के कंसलटेंट साइकियाट्रिस्ट विहांग एन वाहिया कहते हैं कि लोग असल में समझ नहीं रहे हैं कि सामाजिक दूरी है क्या. उनके मुताबिक, "ऐसे लोग जो अकेलापन बर्दाश्त नहीं कर पाते, या जिनके आसपास अपनी समस्याओं को साझा करने के लिए कोई नहीं है या बातचीत करने के लिए कोई नहीं है....वे इससे बुरी तरह प्रभावित होते हैं. ऐसे में टीवी सोशल मीडिया पर कोरोनावायरस के मरीजों और मृतकों को लेकर समाचार उनकी बेचैनी को और बढ़ा देते हैं."

उनकी ऐसे लोगों को सलाह है कि सोशल मीडिया पर चल रही खबरों को सही नहीं मानें और जिंदगी को "आधे खाली गिलास की बजाय आधे भरे गिलास की तरह देखना चाहिए."

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मुंबई की मनोचिकित्सक दीप्ति गाडा शाह कहती हैं, "कसरत करना और संगीत सुनना इससे निपटने के दो बेहद सरल उपाय हैं. अपने रूटीन का पालन करें. फोन और सोशल मीडिया के जरिए परिवार के सदस्यों और दोस्तों से जुड़े रहें लेकिन केवल कोरोनावायरस के बारे में ही बातें न करें."