रंगों के त्‍योहार में कहीं भंग न डाल दें नकली रंग...

रंगों के त्‍योहार में कहीं भंग न डाल दें नकली रंग...

रंगों का त्‍योहार होली यानी नए साल के आगमन की खुशी में मनाया जाने वाला त्योहार, जिसमें लोग गिले-शिकवे भूल कर अबीर-गुलाल और रंगों से रंग जाते हैं...लेकिन इस रंगों के त्‍योहर में भंग उस समय पड़ता है, जब त्‍वचा पर एलर्जी या रंगों में मौजूद कैमिकलों की वजह से कोई और परेशानी होती है। आजकल मुनाफा कमाने की आड़ में होली के मौकों पर सजने वाले बाजारों में नकली और रासायनिक रंग और गुलाल छा गए हैं।

क्‍यों नुकसान करते हैं रंग
पटना के जाने-माने चर्म रोग के चिकित्सक डॉ़ रवि विक्रम सिंह की मानें तो इन रंगों में ऐसे रंगों का इस्तेमाल किया जाता है, जो कपड़ों के रंगने के काम आते हैं। इन रंगों का दुष्प्रभाव आंख, कान, त्वचा समेत शरीर के कई हिस्‍सों पर पड़ता है। परेशानी की बात तो यह है कि बाजार में मौजूद ज्‍यादातर रंग कृत्रिम ही होते हैं। होली के दौरान, अक्सर लोग उत्साह में सब भूल जाते हैं और बाद में उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में लोग कृत्रिम रंग के प्रयोग से त्वचा और बालों संबंधी समस्याओं से ग्रसित हो सकते हैं।

गुजरे जमाने की बातें...
बुजुर्गो के मुताबिक, पहले जहां एक खास तरह के पेड़ के छाल को पीस कर पाउडर बनाकर गुलाल बनाया जाता था, वहीं टेसू और पलाश के फूलों से शुद्ध रंग बनाया जाता था, लेकिन अब ये बातें केवल सुनने और कहानियों की तरह हो गई हैं।  बिहार में नील की खेती सबसे अधिक होती थी और उससे नीला रंग तैयार होता था। इस कारण होली के मौके पर भी इन नीले रंगों का खूब इस्तेमाल किया जाता था।

बताया जाता है कि टेसू मई-जून महीने में फूलता था, जिसे सुखा कर रख दिया जाता था। होली के दिनों में उन्हीं फूलों को पानी में उबाल कर रंग बनाया जाता था। जानकारों का कहना है कि आज के समय में जो गुलाल बाजार में उपलब्ध हैं, उसमें एसिड, स्कारलेट और कई तरह के खतरनाक रासायनिक पदार्थ मिलाए जाते हैं।

नया नहीं है ये बाजारवाद
कृत्रिम रंगों का प्रचलन कोई नया नहीं हैं। पहले बिहार में ऐसे रंग कम होते थे। होली के दिनों में अधिकांश रंग कपड़ा रंगने वाला होता है। बाजार में हर्बल गुलाल भी आ गए हैं, लेकिन महंगा होने के कारण लोग इसे कम खरीदते हैं। कई बार चेहरे पर रंग लगने से चिनचिनाहट होने लगती है और इन रंगों को धोने के बाद गाल की त्वचा पर लाल-लाल छाले निकल जाते हैं और इनमें खुजली होने लगती है। इन रंगों से आंखों को भी काफी नुकसान होने का डर बना रहता है।

कैसे बचें
होली खेलने के पूर्व चेहरे, हाथों और शरीर के खुले हिस्सों पर मॉश्च्युराइजर क्रीम या सनस्क्रीन लोशन अच्छे से लगाना चाहिए। क्रीम 10 मिनट तक त्वचा पर रगड़ें और कुछ देर सूखने दें। इससे आप होली के रंगों के कुप्रभाव से बच सकेंगे।

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)