Coronavirus ने बदल दी कटहल की किस्‍मत, अब चिकेन के बदले लोग मांग रहे हैं Jackfruit

सामान्य रूप से कटहल का वजन कम से कम 5 किलोग्राम होता है. इसका रंग अंदर से हल्का पीला होता है. कटहल का इस्तेमाल केक, आइसक्रीम और जूस बनाने के लिए किया जाता है. 

Coronavirus ने बदल दी कटहल की किस्‍मत, अब चिकेन के बदले लोग मांग रहे हैं Jackfruit

मीट के विकल्प के रूप में कटहल लोगों का पसंदीदा खाना बन गया है.

नई दिल्ली:

कटहल, भारत के दक्षिणी तटों पर पाया जाने वाला एक फल है, जिसे शाकाहारी और वेगन लोग खाना काफी पसंद करते हैं. हालांकि, सदियों से दक्षिण एशिया में खाया जाने वाला कटहल इतनी प्रचुर मात्रा में उपलब्‍ध था कि हर साल इसमें से कई टन बेकार चला जाता था. अब भारत कटहल का सबसे बड़ा उत्पादक है और इसे मांसाहार के एक विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है. 

केरल के त्रिशूर जिले में रहने वाले वर्गीज थरकानक ने बताया, "विदेश से कटहल को लेकर बहुत सारी जानकारी ली जा रही है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कटहल में दिलचस्पी कई गुना बढ़ गई है." बता दें, सामान्य रूप से कटहल का वजन कम से कम 5 किलोग्राम होता है. इसका रंग अंदर से हल्का पीला होता है. कटहल का इस्तेमाल केक, आइसक्रीम और जूस बनाने के लिए किया जाता है. 

पश्चिम देशों में, कटा हुआ कटहल पोर्क की जगह एक लोकप्रिय विकल्प बन गया है और यहां तक कि इसे पिज्जा टॉपिंग के रूप में भी उपयोग किया जाता है. यूएस और भारत में कई रेस्टोरेंट चलाने वाले अनु भांबरी का कहना है कि लोगों को कहटल काफी पसंद आता है. 

कटहल से बनाए गए टाको खाना लोग काफी पसंद करते हैं. इसके अलावा कटहल के कटलेट भी लोगों के पसंदीदा खाने में से एक है. माइक्रोसॉफ्ट में काम करने वाले जेम्स जोसेफ ने कटहल में दिलचस्पी उत्पन्न होने के बाद अपनी नौकरी छोड़ दी. उन्हें लगता है कि कटहल वेगन है और मीट का सबसे अच्छा विकल्प है. 

कोविड-19 महामारी के बारे में बात करते हुए जोसेफ ने कहा कि, इसकी वजह से लोग चिकन खाने से डर रहे हैं और ऐसे में लोग कटहल खाने लगे हैं. केरल में लॉकडाउन के बाद से कटहल की डिमांड बढ़ गई है. वहीं दुनियाभर में लॉकडाउन से पहले लोगों के वेगन बनने की शुरुआत हो गई थी. 

ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ने के कारण फसलों पर मांसाहार का नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगा है. ऐसे में कटहल एक अच्छा विकल्प है क्योंकि इसमें बहुत से पोषक तत्व होते हैं और इसके उत्पादन के लिए अधिक मेंटेनेंस की जरूरत भी नहीं है. थरकारन ने जब से अपनी जमीन में कटहल का उत्पादन शुरू किया उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वह अपनी जमीन पर सालभर में अलग-अलग चीजों का उत्पादन करने लगा है. 

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सिर्फ तमिलनाडु और केरल में ही हर रोज ही 100 मेट्रिक टन कटहल की डिमांड की जाती है. साथ ही हर साल का इसका टर्नओवर 19..8 मिलियन डॉलर से अधिक है. लेकिन धीरे-धीरे अब कटहल के उत्पादन में कॉम्पिटिशन बढ़ता जा रहा है क्योंकि बांगलादेश और थाइलैंड जैसे देशों में भी इसका उत्पादन शुरू कर दिया गया है. 



(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)