बढ़ते प्रदूषण और बदलती लाइफस्टाइल की वजह से बच्चे अस्थमा के शिकार हो रहे हैं
खास बातें
- एलर्जी के खतरे को कम करने के लिए बच्चों के खान-पान पर ध्यान देना जरूरी
- बादाम, मछली और सोयाबीन में मौजूद तत्व अस्थमा से दूर रखते हैं
- बढ़ते प्रदूषण और बदलती लाइफस्टाइल से एलर्जी का खतरा बढ़ गया है
नई दिल्ली : बढ़ते प्रदूषण और बदलती लाइफस्टाइल की वजह से ज्यादातर बच्चे एलर्जी से परेशान रहते हैं. ऐसे बच्चे ज्यादातर एंटी बायोटिक्स पर रहते हैं और कई बार उनकी हालत इतनी बिगड़ जाती है कि उन्हें स्टेरॉयड तक देने पड़ते हैं. इस लिहाज से बच्चों के खान-पान में ध्यान देना बेहद जरूरी है. आपको अपने बच्चों के खाने में उन चीजों को शामिल करना चाहिए जो न सिर्फ एलर्जी से लड़ने में उनकी मदद करें, बल्कि उनके शरीर की इम्यूनिटी भी बढ़ाएं. बादाम, मछली जैसे सैलमॉन, पटसन के बीज और सोयाबीन तेल में मौजूद जरूरी पॉलीअनसेचुरेटेड फैट अम्ल आपके बच्चों के खाने में शामिल होकर उन्हें एलर्जी संबंधी बीमारियों से दूर रखते हैं. इनका सेवन आपके बच्चे को खास तौर से अस्थमा और नाक में जलन के खतरे को रोकने में कारगर होगा. अस्थमा और नाक की एलर्जी संबंधी बीमारियों से बच्चों के बचपन पर असर पड़ता है.
शोध के परिणाम बताते हैं कि पॉलीअनसेचुरेटेड फैट अम्लों की खून में बढ़ी मात्रा बच्चों में एलर्जी संबंधी बीमारियों के खतरे को कम करने से जुड़ी हुई है. पॉलीअनसेचुरेड फैट अम्ल में ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटअम्ल आते हैं, जिन्हें एराकिडोनिक अम्ल कहते हैं.
ऐसे बच्चों में, जिनमें आठ साल की उम्र में ओमेगा 3 का हाई ब्लड लेवल होता है, उनमें 16 साल की उम्र में अस्थमा, नाक में जलन और श्लेष्मा झिल्ली में एलर्जी होने का खतरा कम रहता है. ओमेगा-6 फैट अम्ल (इसे एराकिडोनिक अम्ल कहते हैं) 16 साल की उम्र में अस्थमा के खतरे को कम करते हैं.
स्वीडेन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट की शोधकर्ता एना बर्गस्ट्रोम ने कहा, 'चूंकि एलर्जी की अक्सर शुरुआत बचपन के दौरान होती है, ऐसे में इस शोध का मकसद पर्यावरण और लाइफस्टाइल का एलर्जी संबंधी बीमारियों पर असर देखना था.'
VIDEO: जानिए क्यों होता है अस्थमा? Input: IANS