लॉकडाउन का असर: शादियों में कम हुई बैंड, बाजे की जरूरत, सैनेटाइजर और मास्क की बढ़ी भूमिका

सात जन्म तक एक दूसरे का साथ निभाने की कसमें अब आलीशान बैंक्वेट हॉल या मैरिज गार्डन में नहीं बल्कि घर की छतों, घरों, मंदिर , चर्च या कहीं कहीं तो राज्य की सीमाओं पर खाई जा रही हैं.

लॉकडाउन का असर: शादियों में कम हुई बैंड, बाजे की जरूरत, सैनेटाइजर और मास्क की बढ़ी भूमिका

Coronavirus के बाद अब सादगी और मास्क को अहमियत दे रहे हैं लोग.

नई दिल्ली:

मेहंदी से लेकर संगीत तक कई रंग बिरंगे समारोह, दोस्तों और रिश्तेदारों के मजमे के बीच सात फेरे लेने का सपना कोरोना वायरस महामारी के चलते फिलहाल पूरा नहीं होता देख कई जोड़ों ने या तो शादी टाल दी है या बेहद सादे समारोह में परिणय सूत्र में बंधने का फैसला किया. कोरोना काल की इन शादियों में बैंड , बाजा , बारात की जगह मास्क, सेनिटाइजर्स और सामाजिक दूरी के नियमों ने ले ली है. कई जोड़ों का इरादा किसी बॉलीवुड सिनेमा की तरह भव्य शादी का था जिनमें सैकड़ों और कभी-कभी दो हजार तक अतिथियों की सूची पहुंच जाती है. कई समारोहों और डिजाइनर कपड़ों पर लाखों रुपये खर्च कर दिये जाते हैं. लेकिन महामारी के कारण अब कई शादियां बिल्कुल सादे स्तर पर हो रही है. 

सात जन्म तक एक दूसरे का साथ निभाने की कसमें अब आलीशान बैंक्वेट हॉल या मैरिज गार्डन में नहीं बल्कि घर की छतों, घरों, मंदिर , चर्च या कहीं कहीं तो राज्य की सीमाओं पर खाई जा रही हैं. इस पवित्र रस्म के साक्षी सिर्फ घर के लोग ही बन पा रहे हैं. ओडिशा के जगतसिंहपुर जिले में एक दुल्हन ने कहा, ''हमारे पास एक भव्य जुलूस, सजावट, पटाखे, दावत और रिश्तेदार नहीं थे, लेकिन यह वास्तव में हमारे जीवन का सबसे यादगार अनुभव था.'' जिले में इरसामा ब्लॉक निवासी एक दूल्हे ज्योति रंजन स्वैन ने कहा, ''हमने पहले एक भव्य समारोह की व्यवस्था की थी. लेकिन लॉकडाउन ने कामों में रूकावट पैदा की. इसलिए हमने शादी के लिए बचाए गए धन का एक हिस्सा दान करने का फैसला किया ताकि राज्य को महामारी से निपटने में मदद मिल सके.'' 

माता-पिता के अलावा इरसामा पुलिस थाने के एक निरीक्षक और खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) शादी में शामिल हुए. बीडीओ कार्तिक चंद्र बेहरा ने कहा, ''शादी में ज्यादा लोग नहीं थे. दंपत्ति ने समारोह के बाद मिठाइयां बांटी. यह एक सादा समारोह था.'' पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी के ओम प्रकाश शा के पिछले सप्ताह असम के धुबरी में काजोल से शादी करने की. एक राज्य से दूसरे राज्य में आवाजाही पर प्रतिबंध और अनिवार्य रूप से पृथक-वास में रहने के मद्देनजर दोनों के परिवारों ने अनुमति के लिए दोनों जिलों के प्रशासन से संपर्क किया था. विचार विमर्श के बाद अधिकारियों ने धुबरी-जलपाईगुड़ी ‘सीमा' पर शादी कराने का फैसला किया. तौफीक हुसैन और अबेदा बेगम ने भी लॉकडाउन के बावजूद अपनी शादी को आगे बढ़ाने का फैसला किया. 

उन्होंने पिछले महीने असम के गोलपाडा में घर में शादी की, जिसमें केवल आठ परिवार के सदस्य मौजूद थे. हुसैन ने कहा, ''यह वह तरीका है जिसके तहत ही विवाह हमेशा किया जाना चाहिए ... ज्यादा भीड़ एकत्र करने और पैसा खर्च करने के बजाय करीबी रिश्तेदारों के बीच शादी करना ज्यादा मायने रखता है.'' तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में के शक्तिवेल ने पिछले महीने अपने घर की छत पर शादी की. एसी मैकेनिक शक्तिवेल ने कहा, ''ऐसा करने से कुछ लाख रुपये के नियोजित व्यय में कम से कम 75 प्रतिशत की बचत हुई.'' शादी में परिवार के केवल 10 सदस्य शामिल हुए लेकिन शक्तिवेल संतुष्ट थे. पड़ोसी केरल में रेबिन विंसेंट ग्रेलान और सीला लोना ने भी सादगी के साथ शादी की. उन्होंने 15 अप्रैल को पावारटी में सेंट जोसेफ में शादी की और इस मौके पर परिवार के केवल 10 सदस्य मौजूद थे. 

ग्रेलान ने कहा, ''शादी की तारीख पहले ही तय हो गई थी ... हम दोनों ने सभी को उसी तारीख पर शादी करने के लिए मना लिया और एक सादे समारोह में शादी हुई.'' एर्नाकुलम में एक व्यवसायी एलेक्स पॉल ने कहा कि महामारी के समाप्त होने का इंतजार करने का कोई मतलब नहीं है और वह 15 जून को शादी करने के लिए पूरी तरह तैयार है. उन्होंने कहा, ''हमारी एक साल पहले सगाई हो गई और व्यापक स्तर पर समारोह का आयोजन कर शादी करने की योजना बनाई थी. लेकिन इसके बाद कोरोना वायरस और लॉकडाउन आ गया. अब शादी की तारीख तय कर दी गई है क्योंकि यह लगभग तय है कि यह महामारी जल्द ही खत्म होने वाली नहीं है.'' 

कर्नाटक के मांड्या जिले के एक मंदिर में एक छोटे से समारोह में विवाह करने वाले 30 वर्षीय रवि गौड़ा को कोई शिकायत नहीं हैं. उन्होंने 20 अप्रैल को शादी कर ली क्योंकि उन्होंने एक योजना बनाई थी, और यह सब मायने रखता है. उन्होंने कहा, ''मैंने बेंगलुरु के राजराजेश्वरी नगर में एक विवाह हॉल में 20 अप्रैल को शादी करने के लिए लगभग 2,000-2,500 लोगों को आमंत्रित किया था...हमने मांड्या में गांव के मंदिर में उसी तिथि को शादी की.'' उन्होंने कहा कि उन्होंने बेंगलुरु में व्यवस्थाओं के लिए लगभग 10 लाख रुपये खर्च किए, लेकिन अभी तक पैसा वापस नहीं मिला है. छत्तीसगढ़ में दुर्ग जिले की श्रद्धा पटेल ने कहा कि हालांकि हर कोई परिवार और दोस्तों के बिना शादी नहीं करना चाहता. 

उन्होंने कहा कि उसकी शादी 17 मई को होने वाली थी लेकिन इसे टाल दिया गया है. 24 वर्षीय शिक्षिका ने कहा, ''मैं सैकड़ों मेहमानों के साथ एक भव्य शादी नहीं करना चाहती, लेकिन कम से कम मैं चाहती हूं कि मेरे करीबी दोस्त और रिश्तेदार इस मौके पर वहां मौजूद हों। हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि शादी कब होगी.'' पटना के एक व्यवसायी ने अपनी तीन बेटियों में से सबसे बड़ी बेटी की शादी करने के लिए लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार करने के बजाय मंदिर में शादी करने का फैसला किया. लड़की के पिता ने कहा, ''सब कुछ तय हो गया था. यहां तक कि सगाई और ‘तिलक' के कार्य लॉकडाउन से पहले किए गए थे, इसलिए मैंने अपनी बेटी की शादी एक मंदिर में करने का फैसला किया.'' 

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नागपुर में एक मां स्नेहा अनिल महाजन ने अपनी बेटी की शादी आठ मई को की. उन्होंने कहा कि परिवार ने शादी को स्थगित नहीं किया क्योंकि जिस दिन शादी होनी थी वह शुभ तारीख थी. उन्होंने कहा, ''केवल लगभग 45 से 50 अतिथि इसमें शामिल हुए. अतिथियों की हमारी सूची एक हजार से अधिक लोगों की थी लेकिन स्वास्थ्य कारणों से सभी को बुलाना संभव नहीं था. हमने सबके लिये मास्क और सेनिटाइजर्स रखे थे. यह अनूठी शादी थी जिसमें लड़की अपने बचपन की तमाम यादों के बीच उसी घर से विदा हुई, जहां वह पैदा हुई और पली बढी.'' 



(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)