आखिर क्यों दूसरा बच्चा नहीं चाहतीं 35 फीसदी औरतें, ये रही वजह

‘’हम एक हमारा एक’’. जी हां, भले आज भी सास या खुद युवा महिला की मां उसे दो बच्चों के लिए कहे, लेकिन भारत में कामकाजी महिलाओं को अब एक ही बच्चा पसंद है. दूसरे बच्चेक के बारे में वे नहीं सोचती... 

आखिर क्यों दूसरा बच्चा नहीं चाहतीं 35 फीसदी औरतें, ये रही वजह

बदलती जीवनशैली के साथ ही बदल है हमारी सोच भी. यह सोच परिवार और बच्चों को लेकर भी बदली है. पहले परिवार नियोजन को जहां अहमियत नहीं दी जाती थी, वहीं आज इसे बहुत जरूरी माना जाता है. एक पुराना स्लोगन है- ‘’ हम दो हमारे दो.’’ अब यह स्लोगन कामकाजी महिलाओं ने बदल दिया है. उनका कहना है- ‘’हम एक हमारा एक’’. जी हां, भले आज भी सास या खुद युवा महिला की मां उसे दो बच्चों के लिए कहे, लेकिन भारत में कामकाजी महिलाओं को अब एक ही बच्चा पसंद है. दूसरे बच्चे के बारे में वे नहीं सोचती... 

दूसरा बच्चा...
हाल ही में हुए सर्वेक्षण में खुलासा किया गया कि देश में शहरी क्षेत्र की 35 फीसदी कामकाजी माएं दूसरा बच्चा नहीं चाहती हैं. इसकी वजह बच्चों के ज्यादा समय देने की जरूरत और दूसरे खर्चो को माना गया है. मदर्स डे (14 मई) से पहले औद्योगिक संगठन एसोचैम की सामाजिक विकास शाखा द्वारा किए गए सर्वेक्षण में कहा गया, "आधुनिक विवाह के तनाव, रोजगार के दबाव और बच्चों को पालने में होने वाले खर्च की वजह से कई माताएं पहले बच्चे के बाद दूसरा बच्चा नहीं चाहती हैं और अपने परिवार को नहीं बढ़ाने का फैसला करती हैं."

मेट्रो शहरों का चलन
यह सर्वेक्षण 1500 कामकाजी माताओं पर किया गया. सर्वेक्षण 10 शहरों में किया गया. इसमें अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली-एनसीआर, हैदराबाद, इंदौर, कोलकाता, जयपुर, लखनऊ और मुंबई शामिल हैं. इसमें बीते एक महीने में कामकाजी माताओं ने अपने बच्चों को कितना समय दिया, उनकी दूसरे बच्चे के होने या नहीं होने की योजनाएं और इसके कारणों के बारे में पूछा गया.

ये रही वजह
इस सर्वेक्षण में भाग लेने वाली करीब 500 प्रतिभागियों ने कहा कि वे दूसरा बच्चा नहीं चाहतीं. कई ने कहा कि दूसरा मातृत्व अवकाश लेने से उनकी नौकरी/पदोन्नति खतरे में पड़ने की आशंका के कारण वे दूसरे बच्चे को लेकर हिचकती हैं.

पति नहीं हैं सहमत
किसी एक बच्चे के प्रति झुकाव एक दूसरा महत्वपूर्ण कारण रहा जिसके कारण कई प्रतिभागियों ने कहा कि वे दूसरा बच्चा नहीं चाहतीं ताकि उनका ध्यान नहीं बंटे. कईयों ने कहा कि वे बच्चा या बच्ची के लिंग के आधार पर भी इस बारे में फैसला करती हैं. अधिकांश प्रतिभागियों ने कहा कि एक ही बच्चा होने की सोच से उनके पति सहमत नहीं होते.

दो की भी है चाह
करीब दो तिहाई (65 फीसदी) ने साथ ही यह भी कहा कि वे नहीं चाहतीं कि उनकी औलाद एकाकी जीवन जिए और वह चीजों को दूसरों के साथ बांटने की खुशी, अपने छोटे-भाई बहन से स्नेह की खुशी से वंचित रहे. लेकिन, जीवन की अन्य जरूरतें और स्थितियां उनकी इस चाह के रास्ते में बाधक बन जाती हैं.

इनपुट एजेंसी से

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)


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