आम सैनिटरी नैपकिन नहीं आपकी सेहत के लिए बेस्‍ट हैं बायोडिग्रेडेबल पैड, दीया मिर्जा भी करती हैं इस्‍तेमाल

2011 में हुई एक रिचर्स के मुताबिक भारत में हर महीने 9000 टन मेंस्ट्रुअल वेस्ट उत्पन्न होता है, जो सबसे ज़्यादा सैनेटरी नैपकिन्स से आता है. इतना नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरा हर महीने जमीनों के अंदर धसा जा रहा है जिससे पर्यावरण को बहुत ज़्यादा नुकसान पहुंचता है. 

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खास बातें

  • केले के पेड़ के रेशे से बनाएं जाते हैं ये पैड्स
  • नहीं होता कैंसर और इंफेक्शन होने का खतरा
  • यूएन की एनवायरनमेंट गुडविल एम्बेसडर हैं दिया मिर्जा
नई दिल्ली:

अक्षय कुमार की फिल्म 'पैडमैन' 25 जनवरी को रिलीज़ होने वाली है. सैनिटरी नैपकीन पर आधारित इस फिल्म में बताया जा रहा है कि महिलाओं के लिए महीने के उन चार से सात दिनों के दौरान सैनिटरी नैपकीन कितना ज़रूरी है. इस फिल्म की स्टोरी अरुणाचलम मुरुगनथम की जीवन की कहानी से प्रेरित है, जिन्होंने कम लागत वाले सैनिटरी पैड बनाने की मशीन का आविष्कार किया था. मुरुगनानथम ने एक ऐसी मशीन बनाई जो सैनिटरी नैपकिन्स सस्ते दाम में उत्पादित करती थी. उनको इस आविष्कार के लिए पद्म श्री से भी नवाजा गया था. 

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आज यहां आपको सैनिटरी नैपकीन से जुड़ी बातों को बता रहे हैं जिन्हें हर महिला का जानना ज़रूरी है. यहां जानिए बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स के बारे में, कि क्यों ये बाज़ारों में मिलने वाले नैपकिन्स से अलग हैं और कैसे आप इसे इस्तेमाल कर पर्यावरण को दूषित होने से बचा सकती हैं. आपको बता दें इन बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स को एक्ट्रेस दिया मिर्जा भी इस्तेमाल करती हैं.

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बायोडिग्रेडेबल का अर्थ होता है ऐसा पदार्थ या चीज़ जो किसी बैक्टिरिया या जीव जंतु से नष्ट की जा सके. इसी तकनीक से बायोडिग्रेडेबल पदार्थ नष्ट किए जा सकते हैं और भविष्य में यह किसी भी प्रकार से पर्यावरण को दूषित नहीं कर पाते.

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ऐसे ही बनाया गया बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स, जो इस्तेमाल करने के बाद बैक्टिरिया या जीव जंतु से नष्ट किया जा सकते हैं. क्योंकि मार्केट में मिलने वाले सिंथेटिक फाइबर जैसे प्लास्टिक से बनने वाले पैड्स से जमा होने वाला कचरा पर्यावरण को बहुत दूषित करता है.  
 

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आपको बता दें कि एक महिला द्वारा पूरे मेंस्ट्रुअल पीरियड के दौरान इस्तेमाल किए गए सैनेटरी नैपकिन्स से करीब 125 किलो नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरा बनता है. 2011 में हुई एक रिचर्स के मुताबिक भारत में हर महीने 9000 टन मेंस्ट्रुअल वेस्ट उत्पन्न होता है, जो सबसे ज़्यादा सैनेटरी नैपकिन्स से आता है. इतना नॉन-बायोडिग्रेडेबल कचरा हर महीने जमीनों के अंदर धसा जा रहा है जिससे पर्यावरण को बहुत ज़्यादा नुकसान पहुंचता है. 

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कैसे बनाए जाते हैं बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स?
ये नैपकिन्स Banana Fiber यानी केले के पेड़ के रेशे से बनाए जाते हैं. ये आसानी से इस्तेमाल के बाद नष्ट हो जाते हैं, सबसे खास बात नष्ट होते ही ये खाद और बायोगैस की तरह उपयोग में आ जाते हैं. इससे वायु में कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा नहीं बढ़ती. वहीं, इससे उलट बाज़ार से महंगे दामों में मिलने वाले पैड्स प्लास्टिक फाइबर से बने होते हैं जो खुद नष्ट नहीं होते और अगर इन्हें जलाया जाए तो इनमें मौजूद कच्चा तेल (प्लास्टिक को जलाने पर निकलने वाला तरल) से हवा में कार्बन डाइ ऑक्साइड फैलती है, जिससे वायु दूषित होती है. 

वहीं, बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स इस्तेमाल करने में भी बहुत मुलायम होते हैं और इनके इस्तेमाल से कैंसर और इंफेक्शन होने का खतरा भी नहीं होता. 

यूएन की एनवायरनमेंट गुडविल एम्बेसडर बनीं दिया मिर्जा ने भी बताया कि वह पीरियड्स के दौरान सैनिटरी नैपकिन्स का इस्तेमाल नहीं करती हैं. क्योंकि पर्यावरण को ये बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. वह बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स का इस्तेमाल करती हैं, जो कि सौ प्रतिशत नैचुरल है. इसी वजह से उन्होंने कभी सैनिटरी नैपकिन्स का विज्ञापन नहीं किया.
 
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आपको बता दें भारत में हर साल 12 लाख एकड़ जमीन पर केले के पेड़ों की खेती होती है. इस पेड़ को बड़ा करने के लिए बहुत ही कम पानी और खाद की आवश्यकता पड़ती है. पहले केले के पेड़ों के तनों का कोई खास इस्तेमाल नहीं था, लेकिन बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स बनाने की वजह से अब इन्हें बखूबी प्रयोग किया जा रहा है और किसानों को अतिरिक्त आमदनी के मौके मिल रहे हैं. 

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कहां मिलेगा बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स?
इन्हें बनाने की शुरूआत 'साथी पैड्स' ने की. आपको ये ऑनलाइन आसानी से मिल जाएगा. ये पैड्स इस्तेमाल होने के बाद 6 महीनों के अंदर खुद ब खुद नष्ट हो जाते हैं. इसके अलावा 'आनंदी' और 'इकोफेम' ऑर्गनाइज़ेशन भी बायोडिग्रेडेबल नैपकिन्स बनाती हैं. 

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