कम हो रही है पृथ्वी की चुंबकीय क्षमता, प्रभावित हो रहे हैं सैटेलाइट, वैज्ञानिकों का दावा

एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि पृथ्वी का एक उत्तरी ध्रुव कनाडा में अपने मूल स्थान से रूस में साइबेरिया की ओर प्रति वर्ष 50-60 किमी की शीर्ष गति से स्थानांतरित हो रहा है.

कम हो रही है पृथ्वी की चुंबकीय क्षमता, प्रभावित हो रहे हैं सैटेलाइट, वैज्ञानिकों का दावा

1970 और 2020 के बीच अनोमली की क्षमता में 8 प्रतिशत की कमी आई है.

नई दिल्ली:

वैज्ञानिकों को पता चला है कि अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के बीच पृथ्वी की चुंबकीय क्षमता कम होती जा रही है, जिससे सैटेलाइट और स्पेस क्राफ्ट पर प्रभाव पड़ रहा है. द इंडिपेंडेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसका अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने देखा कि हाल के वर्षों में दक्षिण अटलांटिक अनोमली के रूप में जाना जाने वाला क्षेत्र काफी बढ़ गया है. हालांकि, अब तक इसका कारण स्पष्ट नहीं हो पाया है. 

इसके लिए वैज्ञानिकों ने यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) के डेटा का इस्तेमाल किया और पाया कि 1970 और 2020 के बीच अनोमली की क्षमता में 8 प्रतिशत की कमी आई है. दक्षिण अटलांटिक में नई अनोमली पिछले दशक में ही दिखाई दी है और हाल ही के वर्षों में तेजी से विकसित हुई है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, "हमारे पास ऑर्बिट में स्वार्म सैटेलाइट है, जो दक्षिण अटलांटिक में विकसित हो रही अनोमली की जांच करने में मदद कर रही है." 

जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसिंक्स के वैज्ञानिक के अनुसार ज्यूरन मैत्ज़का ने कहा कि स्वतंत्र रूप से पृथ्वी के मुख्य ड्राइविंग थिसिस परिवर्तनों में होने वाली प्रक्रियाओं को समझना अब चुनौती है. ईएसए के अनुसार, ''कमजोर पड़ने वाला क्षेत्र इस बात का संकेत हो सकता है कि पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र उल्टा होने वाला है''. इससे पहले एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि पृथ्वी का एक उत्तरी ध्रुव कनाडा में अपने मूल स्थान से रूस में साइबेरिया की ओर प्रति वर्ष 50-60 किमी की शीर्ष गति से स्थानांतरित हो रहा है.

रिपोर्ट के मुताबिक, ''पिछली बार जियोमैग्नेटिक रिवर्सल 7,80,000 साल पहले हुआ था''. इस तरह के आयोजन के नतीजे अहम हो सकते हैं, क्योंकि पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र अन्य भूमिकाओं को निभाने के साथ ही सौर हवाओं और हानिकारक ब्रह्मांडीय विकिरण से ग्रह की रक्षा करता है.

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ईएसए के मुताबिक, दक्षिण अटलांटिक अनोमली के कारण पृथ्वी की परिक्रमा करने वाली सैटेलाइट्स के साथ समस्या पैदा हो रही है. एजेंसी के अनुसार, इस वजह से क्षेत्र में उड़ान में भरने वाले अंतरिक्ष यान भी तकनीकी खराबी का सामना कर सकते हैं.