कटघरे में खड़े ‘राष्ट्र-विरोधी’ मिर्जा गालिब...

इस नाटक में शायर के खिलाफ लगे आरोपों पर उन्हें एक अदालत में तलब किया जाता है. उनपर आरोप है कि उन्होंने अपनी शायरी के जरिए ‘‘धार्मिक भावनाओं को आहत किया है और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाला है.

कटघरे में खड़े ‘राष्ट्र-विरोधी’ मिर्जा गालिब...

आतंकवाद के इस दौर में मिर्जा गालिब?..19वीं सदी के इस शायर को खुद पर लगे राष्ट्रवाद-विरोधी आरोपों से बचाव के लिए आज की अदालत में दलीलें देनी पड़ रही हैं. एक नए नाटक में कुछ ऐसा ही किया गया है. इसमें 19वीं सदी के शायर को इतिहास से निकाल कर समकालीन दौर में लाकर खड़ा कर दिया गया है.

हाल ही में यहां ‘एंटी-नेशनल गालिब’ नामक नाटक का मंचन किया गया. इस नाटक में शायर के खिलाफ लगे आरोपों पर उन्हें एक अदालत में तलब किया जाता है. उनपर आरोप है कि उन्होंने अपनी शायरी के जरिए ‘‘धार्मिक भावनाओं को आहत किया है और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाला है.’’ 

नाटक के लेखक और निर्देशक दानिश इकबाल ने बताया कि आखिर ऐसी कौन सी बात थी, जिसने उन्हें लिखने और मंचन करने को प्रेरित किया. उन्होंने कहा, ‘‘इन दिनों लोग बिना सिर-पैर की दलीलें बनाने की कोशिश कर रहे हैं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘बेकार के मुकदमों का चलन बढ़ रहा है.’’

यह नाटक एक ऐसे फिल्मकार के इर्द-गिर्द बुना गया है, जो अपने प्रतिद्वंद्वी की फिल्म के प्रदर्शन की तारीख टलवाने पर तुला हुआ है. यह फिल्मकार आरोप लगाता है कि प्रतिद्वंद्वी की फिल्म में जो बोल लिए गए हैं, वे गालिब ने लिखे हैं और आक्रामक हैं.

इस पूरे विवाद के केंद्र में गालिब की मशहूर पंक्तियां हैं, जो कहती हैं, ‘‘ना सुनो गर बुरा कहे कोई, न कहो गर बुरा करे कोई’’ और ‘‘इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई, मेरे दुख की दवा करे कोई’’ इब्न-ए-मरियम से गालिब का मुराद ईसा मसीह से है.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)


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