पुस्तक समीक्षाः जीवन के साथ विसंगतियों से रू-ब-रू कराती हैं ‘पिघली हुई लड़की’ की कहानियां

आकांक्षा पारे हिन्दी की युवा लेकिन चर्चित रचनाकार हैं. उनके दो कहानी संग्रह-तीन सहेलियां, तीन प्रेमी और बहत्तर धड़कनें तिहत्तर अरमान प्रकाशित हो चुके हैं.

पुस्तक समीक्षाः जीवन के साथ विसंगतियों से रू-ब-रू कराती हैं ‘पिघली हुई लड़की’ की कहानियां

आकांक्षा पारे काशिव का कहानी संग्रह है 'पिघली हुई लड़की'

नई दिल्ली:

आकांक्षा पारे हिन्दी की युवा लेकिन चर्चित रचनाकार हैं. उनके दो कहानी संग्रह-तीन सहेलियां, तीन प्रेमी और बहत्तर धड़कनें तिहत्तर अरमान प्रकाशित हो चुके हैं. कंट्रोल+अल्ट+शिफ्ट = डिलीट जैसी कहानियां लिखकर वह गंभीर कहानीकार के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं. हाल ही में उनके संग्रह आया है पिघली हुई लड़की. इस संग्रह में बारह कहानियां हैं. ये कहानियां बताती हैं कि आकांक्षा अपने आसपास के समाज से कितने गहरे जुड़ी हुई हैं. हर घटना को देखने का उनके पास एक अलग नजरिया है. अपनी कहानियों में वह प्राप्त सूचनाओं को जस का तस नहीं रखतीं. बल्कि वह अपनी कल्पनाशीलता से नए अंदाज में ट्रीट करती हैं. उनकी अधिकांश कहानियां एक तरफ जीवन की विसंगतियों को चित्रित करती हैं तो दूसरी तरफ वे अपनी कहानियों में उम्मीद और आशा खोजती हैं. लेकिन उनकी यह खोज किसी आरोपित अंत तक पाठक को नहीं पहुंचाती. ये खोज उनके भीतर एक बेहतर दुनिया को देखने की कोशिश है. 

पिघली हुई लड़की कहानी समाज में आए दिन होने वाले एसिड अटैक के मद्देनज़र लिखी गई है. आकांक्षा ने दो किशोरियों के माध्यम से अपनी कहानी कही है. कहानी की सरल और सहज भाषा में एसिड अटैक पीड़िता के दुखों की कहानी है यह. आकांक्षा की एक अन्य कहानी है सुरक्षा चक्र. इसमें वह अपने शिल्प में बदलाव करती हैं. अलग-अलग दृश्यों में लिखी गई यह कहानी लड़कियों के लिए कोई ऐसा सुरक्षा चक्र तलाश रही है, जिससे उन्हें बलात्कार से बचाया जा सके. कहानी के अंत में आकांक्षा बड़े सलीके से अपने भीतर के आशावाद को जगह देती हैं. वह लिखती हैः मैंने चीख-चीख कर पूछना चाहा, किसी माता पिता के पास वह सॉफ्टवेयर नहीं है क्या कि वे अपने बेटे में वह प्रोग्रामिंग कर सकें कि लड़की को इज्ज़त की नज़र से देखो. कोई परिवार लड़कों के दिमाग में वह चिप नहीं लगा पाया है, जिसमें लड़की के प्रति विद्रोह के बदले स्नेह उपजे. मेरे पास सुरक्षा के उपाय थे, बस नहीं था तो विश्वास पता करने का कोई एप्लीकेशन. वह तो अभी तक बना ही नहीं है ना.'

आकांक्षा का अवचेतन लगातार ऐसे सॉफ्टवेयर की तलाश में है. आकांक्षा की कहानियों की एक और ख़ास बात है कि वे लाउड नहीं हैं. विमर्श उनकी कहानियां में से पैदा होता है. किसी भी विमर्श के लिए वह कहानी से समझौता नहीं करतीं. एक बात कहूं कहानी एकदम सरल शब्दों में प्रेम कहानी कही जा सकती है. नायक एक कवि सम्मेलन में एक युवती की कविता सुनता है और बेहद प्रभावित होता हैय कहानी छोटी छोटी मुलाकातों से आगे बढ़ती है. जल्दी ही नायक को यह पता चल जाता है कि लड़की दलित है. इसके बाद एक गोष्ठी में दोनों के बीच संवाद होते हैं. नायिका कहती है, जिसे सुबह-सुबह बिना नहाए, बिना ब्रश किए देखने पर भी अच्छा महसूस हो वह असली जीवनसाथी है. तैयार होकर तो सभी अच्छे लगते हैं. नायक कहता है, मैं उससे कैसे कहता कि मेरे अंदर बैठे मिश्रा की परेशानी दूसरी है. दलित विमर्श पर यह एक ख़ूबसूरत कहानी है.

आकांक्षा अपनी कहानियों को बड़ा बनाने के लिए विषय बड़ा नहीं चुनतीं. वह छोटा सी घटना को अहम कहानी में बदल देती हैं. आज के इस दौर में हम सभी अपने अपने स्तर पर अकेलेपन को भोग रहे हैं. लेफ्ट ओवर, हर शाख को हरियाली का हक़ है, एम ई एक्सप्रेस इसी अकेलपन को समेटती कहानियां हैं. प्रेम आकांक्षा की कहानियों में किसी अलग अध्याय में दिखाई नहीं पड़ता. बल्कि वे जीवन के धूप छांव में ही प्रेम को तलाश कर लेती हैँ. कुछ इश्क था, कुछ हम थे कुछ थी यायावरी ऐसी ही कहानी है. हर लेखक की तरह आकांक्षा भी स्मृतियों के मोह से परे नहीं हैं. पुराने मित्र, पुरानी यादें भी अक्सर उनकी कहानियों में एक नयी कथा में ढलकर आती हैं. तुम्हारे जवाब के इंतजार में कहानी ऐसी है जिसमें नायिका अपने एक पुराने साथ को याद करती है. वास्तव में ये कहानी पाठक को यह भी बताती है कि आप अपने मौज़ूदा हालात (अगर वे ख़राब हैं तो) से कैसे उबर कर अपने रास्ते तय कर सकते हैं. भ्रष्टाचार पर उनकी कहानी ठेकेदार की आत्मकथा, भ्रष्टाचार को देखने की एक नई नजर देती है. पिघली हुई लड़की इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संग्रह हमें जीवन की विसंगतियों से जीवन में रहते हुए रूबरू कराता है. यहां कुछ भी जीवन से परे नहीं है.

किताबः पिघली हुई लड़की
लेखिकाः आकांक्षा पारे काशिव
प्रकाशकः राजपाल ऐंड संस
कीमतः 175 रुपये

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(समीक्षकः सुधांशु गुप्त)