भाजपा की सियासी यात्रा का दस्तावेज है 'बीजेपी : कल, आज और कल'

वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी की हालिया किताब 'बीजेपी : कल, आज और कल' भाजपा की इसी सियासी यात्रा का दस्तावेज है.

भाजपा की सियासी यात्रा का दस्तावेज है 'बीजेपी : कल, आज और कल'

वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी की हालिया किताब 'बीजेपी : कल, आज और कल'.

नई दिल्ली :

2014 का लोकसभा चुनाव सिर पर था. राजनीतिक पंडित सियासी नफा-नुकसान के आकलन में जुटे थे. इस आकलन के केंद्र बिंदु में जो शख़्स था वह दिल्ली के 'पावर सेंटर' से कोसों दूर गुजरात में बैठा था. चुनावी पारा चढ़ने के साथ ही बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम भी काफी तेजी से चर्चा में आया. हालांकि उस वक्त बीजेपी में एक गुट था जिसका मानना था कि चुनावों में पार्टी को 160 से 180 सीटें ही मिलेंगी, जो बहुमत से कम हैं. ऐसी स्थिति में पार्टी को सहयोगी दलों की जरूरत पड़ेगी और जाहिर तौर पर सहयोगी दलों को नरेंद्र मोदी का नाम स्वीकार नहीं होगा. अगर ऐसी स्थिति बनी तो पार्टी को किसी सेक्युलर चेहरे की जरूरत पड़ेगी जैसी स्थिति 1998-99 में बनी थी.

इस चर्चा के बीच प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए 3 नाम सामने आए. पहला नाम था सुषमा स्वराज का, जिन्हें आडवाणी और उनके सहयोगियों का समर्थन हासिल था. आडवाणी को लगता था कि उनके नाम पर सहमति नहीं होने पर सुषमा स्वराज के साथ उनका काम चल जाएगा. दूसरा नाम था नितिन गडकरी का, जो संघ के अंदर अच्छी पैठ रखते थे और संघ की पसंद के तौर पर ही बीजेपी के अध्यक्ष बने थे. हालांकि बाद में संघ के समर्थन और बीजेपी के संविधान में बदलाव के बावजूद भी दोबारा पार्टी के अध्यक्ष नहीं बन पाए. इस कड़ी में तीसरा नाम था बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह का जिनके के समर्थक लगभग मानकर चल रहे थे कि सिंह साहब का पीएम बनना तय है. उस वक्त इस बात की भी कानाफूसी थी कि भले ही तीनों नेता प्रधानमंत्री पद की दावेदारी जता रहे हों और एक दूसरे को पसंद भी ना करते हों, लेकिन नरेंद्र मोदी के विरोध के तौर पर तीनों में आपसी सहमति थी.

हालांकि जब चुनाव नतीजे आए तो तीनों नेताओं के मंसूबे धरे के धरे रह गए. बीजेपी ने वह कर दिखाया जो किसी पॉलीटिकल पंडित ने सोचा नहीं था. सारे आंकड़े पलट गए. प्रचंड जीत के बाद नरेंद्र मोदी गुजरात से दिल्ली पहुंचे, प्रधानमंत्री पद की गद्दी संभालने. हालिया लोकसभा चुनाव में तो बीजेपी ने 2014 का भी अपना रिकॉर्ड तोड़ दिया. इस बार नरेंद्र मोदी ने पिछली बार के मुकाबले कहीं ज्यादा सीटों के साथ पीएम की गद्दी संभाली. पार्टी ने पश्चिम बंगाल और उड़ीसा जैसे राज्यों में करिश्मा कर दिया. 2014 के लोकसभा चुनावों से बीजेपी की जीत का जो सिलसिला शुरू हुआ, उसके केंद्र बिंदु में पीएम नरेंद्र मोदी तो हैं ही, लेकिन पार्टी के अध्यक्ष और प्रधानमंत्री मोदी के गुजरात से दिल्ली तक के सफर के सबसे भरोसेमंद साथी अमित शाह की भूमिका और महत्वपूर्ण है.

मोदी और शाह की जोड़ी ने सारे नंबर गेम पलट डाले. चुनाव दर चुनाव आंकड़ों को धता बताया. सियासी पंडित जहां भी बीजेपी को 'चुका' हुआ मान रहे थे इस जोड़ी ने वहीं सबसे बड़ा उलटफेर किया. 1984 के लोकसभा चुनाव में महज 2 सीटें हासिल करने वाली बीजेपी ने 2019 में अकेले 303 सीटों पर कब्जा जमा लिया. वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी की हालिया किताब 'बीजेपी : कल, आज और कल' भाजपा की इसी सियासी यात्रा का दस्तावेज है. उन्होंने अपनी किताब में जनसंघ से लेकर बीजेपी तक की यात्रा का तो विस्तार से वर्णन किया ही है. साथ ही इस यात्रा के हर प्रमुख पड़ाव पर बारीकी से नजर डाली है. किताब में रोचक किस्से हैं, मज़ेदार वाकये हैं और विश्लेषण भी. चुनावों और ख़ासकर बीजेपी में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए यह यह किताब एक दस्तावेज की तरह है. 

किताब : बीजेपी : कल, आज और कल 
लेखक : विजय त्रिवेदी
प्रकाशक : एका (वेस्टलैंड बुक्स)
मूल्य : 250 रुपये (पेपरबैक)

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