'महाबली': इति‍हास का वो 'क‍िस्सा', जो असगर वजाहत की कल्पना के हि‍स्से आया...

Book Review: कोई भी नाटक देखने या पढ़ने से पहले हम सभी को उसका एक छोटा सा 'ट्रेलर' चाहि‍ए होता है. तो चलिए हम द‍िखाते हैं आपको असगर वजाहत के नए नाटक महाबली का ये 'ट्रेलर'... तो अपनी कल्पना शक्ति की पेटी बांध लीजि‍ए और सुन‍िए- 

'महाबली': इति‍हास का वो 'क‍िस्सा', जो असगर वजाहत की कल्पना के हि‍स्से आया...

Mahabali by Asghar Wajahat: संभावना को आधार बनाकर असगर वजाहत ने पूरा नाटक बुना है. 

कोई भी नाटक देखने या पढ़ने से पहले हम सभी को उसका एक छोटा सा 'ट्रेलर' चाहि‍ए होता है. तो चलिए हम द‍िखाते हैं आपको असगर वजाहत के नए नाटक महाबली का ये 'ट्रेलर'... तो अपनी कल्पना शक्ति की पेटी बांध लीजि‍ए और सुन‍िए- 

...एक रात की बात है. एक कल्पना का कलाकार था वह दीवारों पर इतिहास को कल्प‍ित कर रहा था क‍ि इत‍िहास ने उसे पुकार लिया. जब उसने पूछा क‍ि 'तुमने मुझे क्यों पुकारा? ' तो दीवार पर दौड़ती इत‍िहास के क‍िस्सों से एक कल्पना उभर कर बाहर आ गई. उसने मुखर हो कहा ''मैं खुद नहीं जानती क‍ि मैं मात्र तुम्हारी कल्पना हूं या सचमुच इत‍िहास का वो भाग जो अनदेखा, अनकहा और अनसुना ही रह गया..., क्या अपनी कल्पनाओं में ही सही, तुम मुझे जीवंत करोगे...'' बस फ‍िर क्या था कल्पनाओं, वास्तव‍िकता और संभावनाओं का ये कलाकार लग गया महाबली ल‍िखने में... ये तो थी मेरी कल्पना. अब बात करते हैं महाबली के कथानक यानी कहानी के बारे में. 

क‍िताब की भूम‍िका में असगर वजाहत ल‍िखते हैं -''इसमें कोई संदेह नहीं क‍ि तुलसीदास के समाकालीन मुगल सम्राट अकबर (1542-1605) को तुलसीदास के बारे में पूरी जानकारी थी.'' '' ऐसी स्थति में सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता है क‍ि सम्राट अकबर ने महाकव‍ि तुलसीदास को अपने दरबार में बुलाने की कोशि‍‍श की होगी. इति‍हास में इसका कोई प्रमाण नहीं म‍िलता, लेकि‍न इसकी संभावना से इनकार नहीं क‍िया जा सकता.''

बस इसी न इनकार की जाने वाली संभावना को आधार बनाकर असगर वजाहत ने पूरा नाटक बुना है. 

महाबली नाटक सत्ता और कला के बीच के संबंधों पर आधारित है. नाटक के लक्ष्य को स्पष्ट करता है इसका अंतिम भाग. जहां मुगल सम्राट अकबर और तुलसीदास के संवाद हैं. सपने में की गई यह बातचीत सत्ता और कला के संबंधों को दिखाती है. इस बातचीत में तुलसीदास सम्राट अकबर को महाबली कह कर पुकारते हैं. इस नाम से उन्हें अब्दुल रहीम खानखाना पुकारते हैं. वहीं, अकबर तुलसी को गोस्वामी कह कर पुकारते हैं और उनसे सीकरी न आने की वजह जानना चाहते हैं. यहां सत्ता संस्कृति पर व्यंग्य प्रहार साफ देखा जा सकता है. इसी अंश में सत्ता और कला के संबंध को दि‍खाया गया. नाटक में पात्रों का च‍ित्रण और चयन इस तरह से कि‍या गया है क‍ि आप इसे आज के समय से आसानी से जोड़ सकेंगे. 

नाटक क‍िसे नहीं पसंद और अगर वह आपकी अपनी भाषा में हो तो क्या कहने. नाटक में जान फूंकते हैं उसके चरित्र, संवाद और कथानक यानी कहानी या स्टोरी लाइन. और तो और अगर उस नाटक को लि‍खा हो श्रेष्ठ नाटककार असगर वजाहत ने,तो क्या कहने.

'रंगी लौट आये, इन्ना की आवाज़, जिन लाहौर नईं वेख्या ओ जम्याइ नईं, अकी, गोडसे@गांधी.कॉम और सबसे सस्ता गोश्त, जैसे नाटकों के सृजन के बाद असगर वजाहत लेकर आएं हैं अपना एक नया नाटक महाबली. असगर वजाहत के नाटक महाबली को पढ़ते हुए आपको यह ब‍िलकुल नहीं लगने वाला क‍ि आप इसे पढ़ रहे हैं. यकीन मान‍िए यह आपकी कल्पनाशीलता को नए पंख लगाने वाला साब‍ित होगा. जब बात मंच के वातावरण, आसान शब्दों में कहें तो दृश्य की हो, तो ऐसा लगेगा जैसे आप खुद बनारस के घट पर खड़े होकर उस पल के साक्षी बन रहे हैं, ज‍िसका जि‍क्र क‍िया जा रहा है. 

नाटक में अगर भाषा पर ध्यान दें तो असगर वजाहत के 'महाबली' की भाषा पात्रों के चर‍ित्र से न्याय करती है. कहीं भी कोई भी चरित्र अपनी भाषा की पर‍िधी को पार नहीं करता और न ही उससे पीछे रहता. चरित्रों और पात्रों को जीवंत बनाने में भाषा पूरी तरह से खरी उतरी है. संवादों को और भी प्रभावी बनाने के ल‍िए लोकोक्त‍ियों का सटीक इस्तेमाल भी क‍िया गया है. 


असगर वजाहत के तुलसी- 

'जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी' तुलसीदास की रामायण से ली यह चौपाई अगर असगर वजाहत के लि‍ए भी कही जाए तो गलत न होगा. लेखक का नाटक महाबली पढ़ कर आपको तुलसीदास से नेह हो सकता है. उनके लिए आदर और सम्मान का भाव तो सबके मन में है ही, लेक‍िन असगर वजाहत के तुलसी के आप प्रेम में पड़ सकते हैं. क्योंक‍ि उन्होंने जि‍स तरह से तुलसी के चरि‍त्र को उकेरा है वह आपको प्रभावि‍त करे बिना नहीं रहेगा. एक सामान्य व्यक्त‍ित्व जो ज्ञान का भंडार है, लेक‍िन लेश मात्र भी दंभ नहीं. अपने पथ पर बि‍ना भय और संदेह के अग्रसर. वे महाबली यानी अकबर के प्रस्ताव को अस्वीकार करते हैं. और अंत में स्वयं महाबली यानी अकबर को उनके पास आना पड़ता है. इसके बाद जो संवाद इन दोनों के बीच होता है वह अकबर के महाबली होने पर संदेह पैदा कर देता है. और प्रश्न उठता है क‍ि असल में महाबली कौन है... 

लेखक के बारे में - 

5 जुलाई, 1946 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में जन्में असग़र वजाहत बहुआयामी व्यक्ति‍त्व हैं. उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से हिन्दी में एमए और इसके बाद पीएचडी की. इसके बाद असगर वजाहत ने लंबे अरसे तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया में अध्यापन किया. हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में असगर वजाहत साठोत्तरी पीढ़ी के बाद के महत्त्वपूर्ण कहानीकार हैं. इन्होंने नाटक, यात्रा-वृत्तांत, कहानी, उपन्यास, फिल्म और चित्रकला जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण रचनात्मक काम किया है.  असगर वजाहत को साहित्य क्षेत्र में उनके योगदान के लिए कई सम्मान दिए गए. साल 2009-10 में उन्हें हिन्दी अकादमी द्वारा 'श्रेष्ठ नाटककार' सम्मान द‍िया गया. इसके बाद 2012 में 'आचार्य निरंजननाथ सम्मान', साल 2014 में संगीत नाटक अकादमी सम्मान तो 2016 में हिन्दी अकादमी का सर्वोच्च शलाका सम्मान द‍िया गया.

क‍िताब के बारे में- 

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क‍िताब का नाम- महाबली
प्रकाशक - राजपाल एंड संस
कीमत- 215 रुपये