मुगल बादशाह अकबर की मन:स्थितियों को उकेरता उपन्यास ‘अकबर’

मुगल बादशाह अकबर की मन:स्थितियों को उकेरता उपन्यास ‘अकबर’

नयी दिल्‍ली:

इतिहास की किताबों में भले ही मन:स्थितियों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती हो लेकिन साहित्य इसे ही कसौटी पर कसता है. साहित्य की किताबों में मनुष्य के आचार विचार पर बेहद ध्यान दिया जाता है, फिर चाहे किताब किसी आम आदमी पर आधारित हो या ऐतिहासिक हस्ती पर. यही बात शाजी जमां के उपन्यास ’‘अकबर’’ को मुगल बादशाह पर लिखी गई बाकी किताबों से अलग करती है. इस किताब में लेखक ने अकबर से जुड़ी घटनाओं की पड़ताल उनकी मन:स्थितियों की रौशनी में की है.

शाजी जमां ने किताब के उद्घाटन के मौके पर इसकी विषयवस्तु, इसके किरदारों पर विस्तार से बात की. उन्होंने बताया कि यह किताब अकबर पर लिखी गई अन्य किताबों और उन पर बनी फिल्मों और धारावाहिकों से कैसे अलग है.

उन्होंने बताया कि इतिहास घटनाओं को दर्ज करता है, मन:स्थितियों को नहीं और ‘अकबर’ उपन्यास के माध्यम से उन्होंने बादशाह की मन:स्थितियों को उनकी जिंदगी में घटी घटनाओं को जोड़कर बताने की कोशिश की है.

शाजी जमां ने किताब में बयां की गई अकबर की मन:स्थिति का जिक्र कार्यक्रम में भी किया. इस मन:स्थिति को अकबर के दरबारियों ने हालत-ए-अजीब बताया था. इस हालत-ए-अजीब को समझने के लिए जमां ने ऑक्सफोर्ड के डॉक्टरों का सहारा लिया जिन्होंने बताया कि अकबर एक तरह से मानसिक विसंगति के शिकार थे.

अकबर की मानसिक हालत के अलावा इस किताब में अकबर के दिल में दबी ख्वाहिशों का भी जिक्र है. उन्होंने बताया कि अकबर इस बात का खास ध्यान रखते थे कि लोग उन्हें कैसे जानें. हर शासक की तरह अकबर भी अपनी खास छवि बनाना चाहते थे और इसके लिए वह उस दौर में बनाए जाने वाले चित्रों पर अपना नियंत्रण रखना चाहते थे. अकबर इन लघु चित्रों की हर बारिकी का अध्ययन गौर से करते थे.

लेखक ने किताब में अकबर द्वारा चलाए गए सुलह-ए-कुल और दीन-ए-इलाही पर भी प्रकाश डाला है. उन्होंने बताया कि अकबर का एक तरह से अपने समय में मौजूद धार्मिक पंडितों और उलेमाओं से टकराव हो गया था और बार-बार अकबर को यह विश्वास हो रहा था कि इस देश में धार्मिक सत्ता उनकी सत्ता से भी बड़ी है. उपन्यास की ऐतिहासिकता और प्रमाणिकता से जुड़े सवाल के जवाब में जमां ने बताया कि जो हिस्सा प्रमाणिक रूप से ऐतिहासिक है उसके साथ किताब में छेड़छाड़ नहीं की गई है.

इस किताब को लिखने के लिए जमां ने 20 वषरें तक शोध किया और दुनिया भर में अकबर के बारे में मौजूद चीजों का अध्ययन किया.


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