मां से बेइंतहां मुहब्बत करने वाले मुनव्वर राणा कहते कि अगर मैं अपनी शायरी से एक भी मां को ओल्ड एज होम से घर पर वापस ला सकूं तो मेरी शायरी कामयाब मानूंगा...
मुनव्वर राणा को सांस लेने में तकलीफ होने पर रविवार रात लगभग 11.30 बजे पीजीआई ले जाया गया, जहां उन्हें आईसीयू में स्थानांतरित कर दिया गया. उनकी स्थिति की गंभीरता को देखते हुए उन्हें जीवन रक्षक उपकरणों पर रखा गया है.
अब तक 150 से ज्यादा नाटकों में विविध भूमिकाएं निभा चुके और 25 नाटकों का निर्देशन करने वाले ओडिशा और दिल्ली के जाने-माने रंगकर्मी चितरंजन सतपथि ने नाटक 'घर और बाहर' का मंचन किया.
पाकिस्तानी लेखिका सबीन जावेरी न केवल राजनीतिक बल्कि सभी क्षेत्रों में महिला नेताओं से हमेशा से ही प्रभावित हुई हैं और उनका पहला उपन्यास ऐसा कोर्टरूम ड्रामा है जो बेनजीर भुट्टो के हत्याकांड से प्रेरित एक रहस्मयी कहानी को बयां करता है.
हिंदी सेवी सम्मान की शुरुआत आगरा स्थित केंद्रीय हिंदी संस्थान द्वारा साल 1989 में की गई थी. हिंदी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में विद्वानों को उनके योगदान के लिए 12 विभिन्न श्रेणियों में पुरस्कार दिए जाते हैं. पुरस्कृत विद्वानों को प्रशस्तिपत्र, दुशाला और पांच लाख रुपये नकद दिए जाते हैं.
कलाकार को किसके साथ होना चाहिए- विचार के साथ, व्यक्ति के साथ या कला के साथ? उसे अपने ऊपर पड़ रहे तमाम दबावों से कैसे निकलना चाहिए? एक कलाकार के भीतर कौन से संघर्ष चलते रहते हैं जिससे उसकी कला प्रभावित होती है? कला को रोकने वाली कौन सी बंदिशें है और उनसे कैसे पार पाना है? ऐसे कुछ सवालों पर गायन कला के माध्यम से नाट्य प्रस्तुति‘बंदिश 20 से 20,000 हर्ट्ज़’ अपना नजरिया प्रस्तुत करती है. प्रस्तुति में हिंदुस्तानी संगीत में पिछली डेढ़ सदी में हुए परिवर्तन, कलाकारों की स्थिति और भीतरी राजनीति के प्रश्न और बेचैनियां बहुत सूक्ष्मता से उभरते हैं. प्रस्तुति में अतीत के साथ समकालीनता की भी महीन बुनाई है.
इस नाटक में शायर के खिलाफ लगे आरोपों पर उन्हें एक अदालत में तलब किया जाता है. उनपर आरोप है कि उन्होंने अपनी शायरी के जरिए ‘‘धार्मिक भावनाओं को आहत किया है और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डाला है.
हिंदी के प्रमुख व्यंग्यकार शरद जोशी को हो सकता है, कम लोग जानते हों. यह भी संभव है कि नई पीढ़ी उनसे बिल्कुल अनजान हो, लेकिन उनकी व्यंग्यात्मक कहानियों पर आधारित धारावाहिक 'लापतागंज' से सभी वाकिफ होंगे, जिसका प्रसारण मनोरंजन चैनल 'सब' पर किया गया.
सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को अल्मोड़ा ज़िले के कौसानी गांव में हुआ. कहते हैं कि जन्म-भूमि के नैसर्गिक सौन्दर्य ने उनके भीतर के कवि को बाहर लाने का काम किया.