मानव भावनाओं का सागर है राघवेन्‍द्र 'विकल' की 'प्‍यास ने कहा...'

मानव भावनाओं का सागर है राघवेन्‍द्र 'विकल' की 'प्‍यास ने कहा...'

अंधेरे में लोचन नहीं देख सकते
चरण किंतु बढ़ते हुए अब न रुकते.
कभी ज्‍योति से ज्‍योति भी भेंट लेगी,
हुई शक्तियां क्षीण, साहस न थकते.


ये साहस और कभी न थकने का संदेश देती पक्तियां है राघवेंद्र विकल की कविता 'कभी विष पिया है' की. वरिष्‍ठ कवि राघवेन्‍द्र 'विकल' ने कई कविताएं लिखी हैं. उनकी कविताओं का संग्रह 'प्‍यास ने कहा...' में साहस, प्रेम जैसे कई मानव भावों के अतिरिक्‍त बाजारवाद, रिश्‍तों में आते मतभेद को केंद्र में रखकर भी कविताएं हैं.

डॉक्‍टर कुंवर बैचेने ने राघवेन्‍द्र 'विकल' के काव्‍य संग्रह प्‍यार ने कहा... के बारे में कहा है- 'इस पुस्‍तक को पढ़कर इस बता की पुष्टि होती है कि आज का बाजारावाद चाहे कलाओं को कितना ही आकर्षित करे किन्‍तु कविता और उस जैसी कलाएं अभी भी इस चकाचौंध से दूर रहकर अपने संयत और मर्यादित रूप में रहना चाती हैं कि विता रूपी सीता को सोने की लंका की चकाचौंध पसंद नही उसे तो पर्णकुटी वाली अशोक वाटिका ही पसंद है.'

वाकई इस पुस्‍तक में आप देश सकते हैं कि आज इस बाजारवाद में, जब इसका असर लेखन पर भी है, गीत-रचना के प्रति समर्पित रहे. राघवेन्‍द्र 'विकल' तकरीबन 40 साल से भी अधिक समय से हिंदी मे लेखन और अपनी कृतियों का सृजन कर रहे हैं. राघवेन्‍द्र 'विकल' के काव्‍य में व्‍यक्ति की गरिमा, समाज के हालात, रिश्‍तों के अनेक पहलु स्‍पष्‍ट दिखाई देते हैं.

राघवेन्‍द्र 'विकल' की एक कविता की कुछ पक्तियां-

तुम कभी तो पूछ लेते आखिर मैं क्‍यों किवकल हूं
कितना सफल हुआ हूं, कितना हुआ विफल हूं.


अपने काव्‍य संग्रह प्‍यास ने कहा के बारे में खुद राघवेन्‍द्र 'विकल' ने कहा है- ' इसे पढ़कर ही आप जान जाएंगे कि क्‍या-क्‍या कहा है. पता नहीं कब तक जीवन चलता है और कलम साथ देती है. अनवरत सेवा करते रहने की अभिलाषा है.'

राघवेन्‍द्र 'विकल' की प्रकाशित कृतियां
मिली मोरपंखी चुभन (गीत संग्रह )
दूसरा किनारा ( काव्‍य संग्रह)
धरती की बेटी ( काव्‍य संग्रह)

प्रकाशन-प्रसारण: अनेक संग्रहों एवं विभिन्‍न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित. आकाशवाणी दिल्‍ली, मथुरा, वृंदावन, आगरा और ग्‍वालियर से प्रसारण.
सम्‍मान: अनेक साहित्यिक संस्‍थाओं द्वारा सम्‍म‍ानित.

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