जेलों में रचनात्मकता पर पहली कॉफी टेबल बुक 'तिनका-तिनका मध्यप्रदेश' का विमोचन

जेल सुधारक वर्तिका नंदा द्वारा रचित जेलों में उम्मीद और कारीगरी को दिखाती किताब अपने तरह का पहला प्रयोग, गृह राज्यमंत्री किरेन रिजीजू ने किया विमोचन

जेलों में रचनात्मकता पर पहली कॉफी टेबल बुक 'तिनका-तिनका मध्यप्रदेश' का विमोचन

केंद्रीय मंत्री किरेन रिजीजू ने वर्तिका नन्दा की किताब तिनका-तिनका मध्यप्रदेश का विमोचन किया.

नई दिल्ली:

जेलों में कला, रचनात्मकता और परिवर्तन का संगम है- तिनका-तिनका मध्य प्रदेश. इस किताब का विमोचन सोमवार को गृह राज्यमंत्री किरेन रिजीजू ने किया. जेल सुधारक वर्तिका नन्दा द्वारा लिखित यह पुस्तक 19 लोगों के जरिए जेल की कहानी कहती है.

किताब में मध्यप्रदेश की जेलों में बंद बारह पुरुषों, दो महिलाओं, चार बच्चों (अपनी मां के साथ जेल में बंद) और एक प्रहरी के जरिए जेल के हर पक्ष को इसमें सुंदर तस्वीरों और रंगों के साथ कहा गया है. सभी चार बच्चे छह साल से कम उम्र के हैं और उनमें से तीन का जन्म जेल में ही हुआ है. इसे पारंपरिक कॉफी टेबल बुक के लघु संस्करण के रूप में डिजाइन किया गया है. 160 पृष्ठों की इस किताब का मूल्य 995 रुपये है.

यह जेलों के सबसे सकारात्मक और रचनात्मक पक्ष को लाने का असाधारण और अपने तरह का पहला प्रयास है. यह पुस्तक वर्तिका नन्दा की मध्यप्रदेश की विभिन्न जेल यात्राओं पर आधारित है. इसको करीब दो साल की अवधि में रचा गया है. नौ अध्यायों में बंटी इस किताब में रंगों का अद्भुत बाइस्कोप है. यह किताब जेल के हर कोने को बंदियों की ही बनाई तस्वीरों से दिखाती है. इसका एक अध्याय 'बच्चे, जिनका पता है जेल',  जेलों में अपना मां या पिता के साथ आए बच्चों को समर्पित है. मुट्ठी में काश, सामने बड़ा आकाश- उन बंदियों पर है जिन्हें अपने अपराध पर पश्चाताप है और वे अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करना चाहते हैं. यह किताब जेल सुधार और मानवाधिकार की नजर से एक ऐसा अनूठा प्रयोग है जिसकी पहले किसी ने कल्पना नहीं की.

किताब का विमोचन करते हुए किरेन रिजीजू ने कहा कि जेलों पर इस तरह के काम से बंदियों में सुधार की गुंजाइश बढ़ेगी.

तिनका-तिनका फाउंडेशन जेलों, न्याय पालिका और समाज के बीच एक पुल है. यह दुनिया का पहला ऐसा प्रकाशक है जो जेलों के साहित्य को प्रकाशित करने के लिए पूरी तरह से समर्पित है. इस कड़ी में पहली किताब तिनका-तिनका तिहाड़ थी. इस किताब को वर्तिका नन्दा और विमला मेहरा, आईपीएस, पूर्व महानिदेशक, दिल्ली जेल ने लिखा था. अपने अनूठेपन के चलते 2015 में इसे लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में शामिल किया. इस कड़ी में दूसरी किताब तिनका-तिनका डासना थी जो देश की किसी जेल की अपनी तरह की पहली जीवंत रिपोर्टिंग है. तिनका-तिनका डासना का अंग्रेजी में अनुवाद नूपुर तलवार ने किया था. यह पहला मौका था जब किसी बंदी के साथ इतना अनूठा प्रयोग हुआ.

तिनका-तिनका मध्यप्रदेश, उन बच्चों को समर्पित है जो अपनी मां या पिता के साथ जेल में रहते हैं. भारत में 1800 बच्चे हैं जो जेलों में हैं. उन्हें 6 साल की उम्र तक जेलों में रहने की इजाजत है.

वर्तिका नन्दा जेलों पर तिनका-तिनका श्रृंखला की संस्थापक हैं. वर्तिका को राष्ट्रपति द्वारा स्त्रीशक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. यह भारत की महिलाओं को दिया जाने वाला देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है. जेलों पर वे तीन गाने भी लिख चुकी हैं. उनका नाम दो बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस में शामिल हुआ.


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