Rajasthan Election Result 2019 : राजस्‍थान को भाया केंद्र में नरेंद्र मोदी का 'राज', कांग्रेस की हार के 4 कारण..

Election Result 2019: करीब पांच माह में ही स्थिति बदल चुकी हैं. राजस्‍थान की 25 लोकसभा सीटों में चमकदार प्रदर्शन के बाद बीजेपी (BJP) इतरा रही है जबकि कांग्रेस पार्टी सकते की सी हालत में है.

Rajasthan Election Result 2019 : राजस्‍थान को भाया केंद्र में नरेंद्र मोदी का 'राज', कांग्रेस की हार के 4 कारण..

Election Result 2019: राजस्‍थान के लोकसभा चुनाव के परिणाम सीएम अशोक गहलोत के लिए बड़ा झटका हैं

राजस्‍थान के चुनाव परिणाम (Rajasthan Election Result 2019) कांग्रेस पार्टी के लिए निराशाजनक रहे हैं. बीजेपी (BJP) राज्‍य में अपने वर्ष 2014 के प्रदर्शन को लगभग दोहराती नजर आ रही है, दूसरी ओर अभी तक के रुझान के हिसाब से कांग्रेस पार्टी (Congress) दो-तीन सीटों पर सिमटती नजर आ रही है. राज्‍य के लोगों की ओर ये दिया गया यह जनादेश वाकई हैरानी भरा है. पिछले साल दिसंबर में ही राज्‍य में हुए विधानसभा चुनाव में इस 'मरु' प्रदेश के लोगों ने कांग्रेस के प्रति बढ़-चढ़कर समर्थन जताया था. कांग्रेस पार्टी यहां बहुमत के अंक तक पहुंच गई थी और अशोक गहलोत (Ashok Gehlot)के मुख्‍यमंत्री बनने का रास्‍ता साफ हुआ था.  राजस्‍थान में कांग्रेस की इस जीत के साथ ही वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje)के नेतृत्‍व वाली बीजेपी सरकार को मुंह की खानी पड़ी थी. बहरहाल करीब पांच माह में ही स्थिति बदल चुकी हैं. राज्‍य की 25 लोकसभा सीटों में अपने चमकदार प्रदर्शन के बाद बीजेपी (BJP) इतरा रही है जबकि कांग्रेस पार्टी सकते की सी हालत में है. राज्‍य में कांग्रेस की हार के लिए ये चार कारण जिम्‍मेदार रहे..

1. मोदीजी से बैर नहीं..
राजस्‍थान में दिसंबर 2019 के चुनाव के दौरान एक नारा बेहद लोकप्रिय हुआ था-मोदीजी से बैर नहीं, वसुंधरा की खैर नहीं. इस नारे में ही बीजेपी के लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन का सार छुपा हुआ है. राज्‍य के लोगों की नाराजगी केंद्र में काबिज नरेंद्र मोदी सरकार (Narendra Modi Government)के प्रति नहीं बल्कि राज्‍य की वसुंधरा राजे सिंधिया सरकार को लेकर थी. लोगों का मानना था कि वसुंधरा (Vasundhara Raje) अपने को कुछ खास लोगों तक ही सीमित किए हैं और इस कारण आमजनों की बात उन तक नहीं पहुंच पाती. ऐसे में उन्‍होंने वसुंधरा को तो बाहर का रास्‍ता दिखा दिया लेकिन जब लोकसभा चुनाव की बारी आई तो पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और बीजेपी के प्रति खुलकर समर्थन में आए. पाकिस्‍तान की सीमा से लगे होने और वीर जवानों की भूमि कहे जाने वाले राजस्‍थान के वोटरों को बालाकोट एयरस्‍ट्राइक (BalaKot Air Strike)ने भी काफी लुभाया. मोदी सरकार की ओर से चलाई गईं उज्‍जवला, जनधन, स्‍वच्‍छ भारत और प्रधानमंत्री आवास योजना को भी लोगों ने पसंद किया.

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2. अलवर गैंगरेप मामला कांग्रेस को पड़ा भारी
देश में लोकसभा चुनाव के दौरान ही अलवर में दलित युवती से गैंगरेप (Alwar Gang Rape)मामले ने हर किसी का ध्‍यान अपनी ओर खींचा. इस मामले में अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) को तीखी आलोचना का शिकार होना पड़ा. आरोप यहां तक लगे कि चुनावी बेला में यह मामला उछल न पाए, इसलिए कुछ दिन तक FIR भी दर्ज नहीं की गई. पुलिस प्रशासन की लापरवाही भी इस मामले में सामने आई. स्‍वाभाविक है कि यह मामला चुनाव के समय बहुत बड़ा मुद्दा बना. बीजेपी ने इस मुद्दे को खूब उछाला और गहलोत सरकार में कानून व्‍यवस्‍था की खराब स्थिति  की ओर लोगों का ध्‍यान खींचा. अलवर के इस मामले ने भी कांग्रेस को काफी नुकसान पहुंचाया.

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3.प्रदेश के सियासत में आपसी खींचतान
राज्‍य में कांग्रेस के सत्‍ता में आने के बाद सीएम पद के लिए अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) और सचिन पायलट (Sachin Pilot)के बीच काफी रस्‍साकशी देखने को मिली थी. युवा तुर्क सचिन के समर्थकों ने उन्‍हें सीएम बनाने के लिए पूरा जोर लगाया था लेकिन अनुभव के कारण आला नेतृत्‍व ने गहलोत के पक्ष में निर्णय दिया था. स्‍वाभाविक है. सचिन को डिप्‍टी सीएम के पद से संतोष करना पड़ा था. इस निर्णय के बाद सचिन  (Sachin Pilot) के समर्थकों में निराशा थी. उन्‍होंने फैसले को भारी मन से स्‍वीकार किया था. ऐसे में गहलोत और सचिन के खेमे में बीच दरार खींचने का काम किया था. यह तय माना जा रहा था कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी अपने विधानसभा चुनाव की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर सकती है, ऐसे में राज्‍य के दो मठाधीश नेताओं की आपसी खींचतान भी कांग्रेस के लिए इस बार भारी पड़ी. राज्‍य में लोकसभा चुनाव गहलोत के सीएम रहते लड़े गए, ऐसे में खराब प्रदर्शन का ठीकरा भी उनके सिर ही फूटेगा.

4. जाति समीकरण को नहीं साध सकी
राजस्‍थान की सियासत जाति समीकरण के मामले में काफी उलझी हुई है. यह तक कहा जाता है कि जिस पार्टी ने जाति समीकरण को अच्‍छी तरह से साध लिया, सत्‍ता उसी के पक्ष में आती है. कांग्रेस की तुलना में बीजेपी ने मीणा और गुर्जर समुदाय को बेहतर तरीके से साधा. धनश्‍याम तिवारी के अलग मोर्चा बनाने के बाद बीजेपी ने बड़ा दांव खेला और जनाधार वाले आरएलपी के हनुमान बेनीवाल (Hanuman Beniwal)को नागौर सीट से समर्थन दिया. गुर्जर लीडर किरोड़ी सिंह बैसला (Kirori Singh Bainsla)अप्रैल में पार्टी में शामिल हो गए, इससे पार्टी का जनाधार बढ़ा. किरोड़ी लाल मीणा (Kirodi Lal Meena) के कारण बीजेपी को मीणा समाज का समर्थन मिला. गुर्जुरों और मीणा का समर्थन मिलने से बीजेपी की राह रोकना कांग्रेस के लिए आसान हो गया.

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