Elections 2019: बीजेपी के सामने मध्‍यप्रदेश में अपने 3 'मजबूत किलों' को बचाए रखने की चुनौती..

Elections 2019: मध्‍यप्रदेश की बात करें तो कांग्रेस यहां अपने पिछले प्रदर्शन में सुधार कर सकती है. देश का हृदय कहे जाने वाले इस राज्‍य में बीजेपी का गढ़ मानी जाने वाली तीन संसदीय सीटों पर भी मुकाबला कड़ा माना जा रहा है.

Elections 2019: बीजेपी के सामने मध्‍यप्रदेश में अपने 3 'मजबूत किलों'  को बचाए रखने की चुनौती..

MP की भोपाल, विदिशा और इंदौर सीट पर बीजेपी 1989 से चुनाव नहीं हारी है

Elections 2019: देश अब चुनावी मोड में है. चुनाव आयोग की ओर से लोकसभा चुनाव की वोटिंग की तारीखें घोषित किए जाने के साथ ही दिल्‍ली की गद्दी के लिए 'महासमर' की उल्‍टी गिनती शुरू हो चुकी है. चौराहों, पान की दुकानों और दूसरे स्‍थानों पर चुनावी चर्चा जोर पकड़ने लगी है. नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के नेतृत्‍व वाला एनडीए (NDA) फिर सत्‍ता पर काबिज होगा या राहुल गांधी की अगुवाई में यूपीए (UPA), इस बारे में अटकलों का दौर जारी है. हालांकि पाकिस्‍तान के खिलाफ एयर स्‍ट्राइक का फायदा सत्तारूढ़ पार्टी को मिलने की संभावना है लेकिन राजनीतिक विश्‍लेषक 'चुनावी रण' में बीजेपी (BJP) को इस बार कड़ा मुकाबला मिलने की उम्‍मीद जता रहे हैं. इसके पीछे कारण भी हैं,  इस बार 'मोदी लहर' 2014 के चुनावों की तरह पावरफुल नहीं है. तीन हिंदी बहुत राज्‍यों मध्‍यप्रदेश, राजस्‍थान और छत्‍तीसगढ़ में बीजेपी की हार से इसकी झलक मिल गई है. विपक्षी पार्टियों ने भी गठबंधन करते हुए एनडीए के अश्‍वमेघ यज्ञ पर 'लगाम' लगाने की रणनीति बनाई है. देश के सबसे बड़े राज्‍य यूपी में बीजेपी को सपा-बसपा के गठबंधन से कठिन चुनौती मिलती नजर आ रही है. मध्‍यप्रदेश ( Madhya Pradesh) की बात करें तो कांग्रेस (Congress) यहां अपने पिछले प्रदर्शन में सुधार कर सकती है. देश का हृदय कहे जाने वाले इस राज्‍य में बीजेपी का गढ़ मानी जाने वाली तीन संसदीय सीटों भोपाल, इंदौर और विदिशा पर भी मुकाबला कड़ा माना जा रहा है. राज्‍य के मुख्‍यमंत्री कमलनाथ भी कह चुके हैं कि बीजेपी के खिलाफ इन सीटों पर कांग्रेस के बड़े नेता को प्रत्‍याशी के तौर पर उतारा जाएगा. नजर डालते हैं इन तीनों संसदीय सीटों के सियासी माहौल पर...

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भोपाल: राजधानी में 1989 से नहीं हारी है बीजेपी
भोपाल (Bhopal) में बीजेपी (BJP)  का किस कदर वर्चस्‍व रहा है, यह इसी बात से समझा जा सकता है कि कांग्रेस ने यहां अपना आखिरी संसदीय चुनाव 1984 में जीता था. इसके बाद से यहां लगातार बीजेपी यहां जीत रही है. 1989 से रिटायर्ड आईएएस सुशील चंद्र वर्मा चार बार यहां से चुने गए, इसके बाद उमा भारती, कैलाश जोशी (दो बार) सांसद बने. इस समय बीजेपी के आलोक संजर यहां से सांसद हैं. विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद पूरे राज्‍य की तरह भोपाल में भी सियासत के समीकरण बदले हुए हैं. विधानसभा चुनाव में भोपाल की तीन सीटों, भोपाल सेंट्रल, भोपाल दक्षिण पश्चिम और भोपाल नार्थ पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. भोपाल से आठ विधानसभा सीटे हैं. बीजेपी का गढ़ बन चुकी इस सीट पर कड़ी टक्‍कर देने के लिए कांग्रेस ने तैयारी शुरू कर दी है, इसके तहत किसी 'बड़े नेता' को इस बार भोपाल से मैदान में उतारा जा सकता है. पूर्व मुख्‍यमंत्री दिग्विजय सिंह का नाम इस मामले में चर्चा में है. भोपाल संसदीय सीट पर कायस्‍थ, ब्राह्मण और मुस्लिम वोटरों की संख्‍या अच्‍छी खासी है. ऐसे में इसी वर्ग से यहां प्रत्‍याशी उतारा जा सकता है. पिछले चुनाव में मोदी लहर के कारण बीजेपी आलोक संजर यहां से चुनाव जीत गए थे लेकिन उन्‍हें दोहराए जाने की संभावना नहीं के बराबर है. राज्‍य के पूर्व मुख्‍यमंत्री बाबूलाल गौर और मंत्री उमाशंकर गुप्‍ता टिकट के दावेदार के रूप में सामने आए हैं. मीडिया में तो यहां तक चर्चा है कि पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराज चौहान यहां से वरिष्‍ठ बीजेपी नेता लालकृष्‍ण आडवाणी की बेटी प्रतिभा आडवाणी को प्रत्‍याशी बनाने के पक्ष में हैं. वैसे कहा जा सकता है कि कांग्रेस इस समय राज्‍य में सत्‍ता में काबिज है और यदि उसने एक होकर चुनाव लड़ा को बीजेपी के लिए जीत आसान नहीं होगी.

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विदिशा: जनसंघ के समय से ही है यहां रही भगवा लहर
विदिशा (Vidisha) संसदीय सीट को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सीट होने का गौरव हासिल है. पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी यहां से सांसद रहे हैं.वर्तमान में विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज (sushma swaraj) यहां से सांसद हैं. स्‍वास्‍थ्‍य कारणों से सुषमा लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं, ऐसे में बीजेपी के सामने यहां से सुषमा की जगह सशक्‍त प्रत्‍याशी को चुनने की चुनौती है. मध्‍यप्रदेश के पूर्व वित्त मंत्री राधव जी की बेटी ज्‍योति शाह का यहां से बीजेपी के लिए टिकट का दावा है. हालांकि ज्‍योति को टिकट मिलने की संभावना बेहद कम है. यह भी चर्चा है कि मध्‍यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद बीजेपी की राष्‍ट्रीय राजनीति में लाए गए शिवराज को यहां से प्रत्‍याशी बनाया जा सकता है. गौरतलब है कि विधानसभा चुनावों में इस बार बीजेपी को विदिशा सीट पर हार मिली है और कांग्रेस के शशांक भार्गव यहां से विधायक बने हैं. लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस विदिशा संसदीय सीट पर इसी तरह के परिणाम को दोहराने की उम्‍मीद लगाए हुए है. पार्टी ने इस बार किसी राष्‍ट्रीय स्‍तर के नेता को यहां से प्रत्‍याशी बनाया तो मुकाबला कांटे का हो सकता है. विदिशा सीट पर भी कांग्रेस आखिरी बार 1984 में चुनाव जीती थी तब इस पार्टी के प्रतापभानु शर्मा सांसद बने थे.

इंदौर: आपसी खींचतान कही बीजेपी को न पड़ जाए भारी
बीजेपी (BJP) के लिए मध्‍यप्रदेश में इस समय सबसे सुरक्षित सीट इंदौर (Indore) ही मानी जा सकती है. मराठी लोगों की बहुतायत वाले इंदौर में बीजेपी की अच्‍छी पैठ है. सुमित्रा महाजन (Sumitra Mahajan) यहां से आठ बार से सांसद हैं. लोकसभा अध्‍यक्ष सुमित्रा महाजन की छवि एक कुशल राजनेता की है, वे काफी लोकप्रिय भी हैं लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ इंदौर में नए प्रत्‍याशी लाने की बात जोर पकड़ रही है. महाजन 76 वर्ष की हैं. बीजेपी के संसदीय बोर्ड की बैठक ने 75+ के प्रत्‍याशियों को टिकट देने का रास्‍ता तो साफ कर दिया है. ऐसे में 'सुमित्रा ताई' को प्रत्‍याशी बनाया जाना लगभग तय है. सुमित्रा को हराने के लिए कांग्रेस ने अब तक कई प्रत्‍याशी आजमाए लेकिन उसके खाते में हार ही आई है. चर्चा है कि दिग्विजय सिंह को भोपाल या इंदौर से कांग्रेस प्रत्‍याशी बनाया जा सकता है. दिग्विजय सिंह इंदौर के मशहूर डेली कॉलेज से ही पढ़े हैं. मुख्‍यमंत्री रहते हुए वे इंदौर में विकास कार्यों के लिए काफी सक्रिय रहे हैं, ऐसे में उनके प्रत्‍याशी बनने की स्थिति में मुकाबला रोचक हो सकता है. सुमित्रा महाजन की जीत को यदि कोई बात मुश्किल बना सकती है तो वह भी बीजेपी की आपसी खींचतान. सुमित्रा ताई और इंदौर के बीजेपी के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय (kailash vijayvargiya) की प्रतिद्वंद्विता जगजाहिर हैं. यह आरोप तक लगाए जाते रहे हैं  कि विजयवर्गीय पहले भी चुनावों में सुमित्रा की राह में रुकावट डालते रहे हैं. खुद महाजन भी इसे लेकर परोक्ष रूप से नाराजगी जता चुकी हैं. बताया जाता है कि इस बार विजयवर्गीय भी इंदौर से प्रत्‍याशी बनने की दौड़ में हैं. बीजेपी में अंदरखाने यह चर्चा है कि ताई और भाई (कैलाश विजयवर्गीय) सियासी खींचतान कहीं इंदौर सीट पर बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी न कर दे.

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