ताई-भाई के 'टकराव' में कहीं बीजेपी से छिन न जाए 'इंदौर की चाबी'

इस बार कांग्रेस उनसे 'इंदौर की चाबी' छीनने के लिए दम भर ही रही है, खुद भाजपा के अंदर भी आवाज उठने लगी है.

ताई-भाई के 'टकराव' में कहीं बीजेपी से छिन न जाए 'इंदौर की चाबी'

सुमित्रा महाजन (Sumitra Mahajan) के सामने दोतरफा चुनौती है.

खास बातें

  • इंदौर सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है
  • एक तरफ कांग्रेस इस सीट पर दम भर रही है
  • तो दूसरी तरफ, कैलाश विजयवर्गीय भी दावेदारी जताते दिख रहे हैं
नई दिल्ली :

साल 1989. लोकसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी थी. मध्य प्रदेश की इंदौर सीट पर मुकाबला करीबन एकतरफा माना जा रहा था, क्योंकि एक तरफ राज्य के मुख्यमंत्री और देश के गृहमंत्री रहे कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रकाशचंद्र सेठी मैदान में थे, तो दूसरी तरफ बीजेपी ने युवा सुमित्रा महाजन (Sumitra Mahajan)  को मैदान में उतारा था. 46 साल की सुमित्रा महाजन (Sumitra Mahajan) के पास सियासत का कोई ख़ास तजुर्बा नहीं था, लेकिन वे जानती थीं कि लोगों को अपने पक्ष में कैसे करना है. जब चुनाव के नतीजे आए तो सभी दंग रह गए. दरअसल, 1989 के लोकसभा चुनाव में सुमित्रा महाजन (Sumitra Mahajan) ने स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा जोर-शोर से उठाया. उन्होंने कहा, मैं इंदौर की बहू हूं इसलिये 'इंदौर की चाबी' मुझे मिलनी चाहिए.

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1989 में प्रकाशचंद्र सेठी को हराने के बाद से 75 वर्षीय सुमित्रा महाजन लगातार इंदौर की नुमाइंदगी करती आ रही हैं, लेकिन इस बार कांग्रेस उनसे 'इंदौर की चाबी' छीनने के लिए दम भर ही रही है, खुद भाजपा के अंदर भी आवाज उठने लगी है. एक तरह कांग्रेस कह रही है कि, 'इतिहास इस बात का गवाह है कि अगर कोई बुजुर्ग चाबी छोड़ने को तैयार नहीं होता है, तो उसके नाती-पोते उससे चाबी छीन लेते हैं'. तो दूसरी तरफ, मध्य प्रदेश में बीजेपी के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya) खुद इंदौर सीट से ताल ठोंकते दिख रहे हैं. यानी सुमित्रा महाजन की राह कठिन दिख रही है.

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सुमित्रा महाजन को देनी पड़ी सफाई 
'ताई' के नाम से मशहूर सुमित्रा महाजन (Sumitra Mahajan) ने पिछले दिनों कहा था कि, 'इंदौर की चाबी उचित व्यक्ति को सही समय पर मिल जायेगी. अभी तो मैं यह चाबी अपने पास ही रखने जा रही हूं. मैं अच्छे से चल-फिर और देख पा रही हूं तथा ठीक तरह सब संभाल रही हूं'. उनके इस बयान पर विवाद बढ़ गया. कहा तो यह भी गया कि बीजेपी के तमाम नेताओं ने ही इस पर नाराजगी जताई. इसके बाद सुमित्रा महाजन (Sumitra Mahajan) को सफाई देनी पड़ी. पिछले दिनों सुमित्रा महाजन ने अपने बयान का जिक्र करते हुए कहा, "मैं स्पष्ट कर रही हूं कि भाजपा में संगठन ही तय करता है कि कौन नेता चुनाव लड़ेगा और कौन नहीं. हम भाजपा नेताओं के लिये हमारी पार्टी और इसका चुनाव चिन्ह कमल का फूल सर्वोपरि है". 

विधानसभा चुनाव में दिख चुका है टकराव 
इंदौर सीट को लेकर सुमित्रा महाजन (Sumitra Mahajan) और सियासी गलियारों में 'भाई' कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya) पहली बार आमने-सामने नहीं है. पिछले दिनों विधानसभा चुनाव में भी टकराव देखने को मिला था. कहा जा रहा था कि सुमित्रा महाजन अपने बेटे मंदार और विजयवर्गीय अपने बेटे आकाश को इंदौर से चुनाव लड़वाना चाह रहे थे. इस वजह से प्रत्याशियों की लिस्ट जारी करने में भी देरी हुई थी.  

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