Ground Report: इलाहाबाद में आसान नहीं BJP उम्मीदवार रीता बहुगुणा जोशी की डगर, इनसे होगी टक्कर

BJP ने कभी कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रही रीता बहुगुणा जोशी (Rita Bahuguna Joshi) को मैदान में उतारा है तो वहीं कभी बीजेपी का झंडा थामकर चुनाव लड़ने वाले योगेश शुक्ला को कांग्रेस ने टिकट दिया है.

खास बातें

  • आसान नहीं रीता बहुगुणा जोशी की राह
  • कांग्रेस के योगेश शुक्ल से मुकबला
  • गठबंधन ने राजेंद्र पटेल को दिया टिकट
इलाहाबाद:

कभी कांग्रेस का गढ़ रही इलाहाबाद संसदीय सीट (Allahabad Lok Sabha Seat) अब बीजेपी (BJP) के लिए नाक का सवाल बनी हुई है. यहां बीजेपी ने कभी कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रही रीता बहुगुणा जोशी (Rita Bahuguna Joshi) को मैदान में उतारा है तो वहीं कभी बीजेपी का झंडा थामकर चुनाव लड़ने वाले योगेश शुक्ला को कांग्रेस ने टिकट दिया है. वहीं, गठबंधन की तरफ इस बार राजेंद्र पटेल दोनों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं. इलाहाबाद से करीब सत्तर किमी दूर कोरांव में केशव प्रसाद मौर्य का भाषण चल रहा था. जल चढ़ाने जाते थे तो अखिलेश के राज में परेशान किया जाता था कि नहीं...कुंभ में कभी फूलों की वर्षा हुई कि नहीं.

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बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बनी इलाहाबाद संसदीय सीट पर जीत हासिल करने के दिन में केशव प्रसाद मौर्य का भाषण इन्हीं बातों पर आधारित रहता है. तो शाम को फिल्म स्टार सनी देओल रीता बहुगुणा जोशी के लिए प्रचार करते दिख रहे हैं. यही नहीं खुद प्रधानमंत्री कौशांबी के बाद दूसरी बार इलाहाबाद रैली करने पहुंचे हैं. इसी के चलते इलाहाबाद की इस वीवीआईपी सीट पर कांग्रेस से बीजेपी में आई रीता बहुगुणा जोशी को चुनाव लड़ाने के लिए लखनऊ से इलाहाबाद बुलाया तो गया है, लेकिन इलाहाबाद से संसद भवन तक का रास्ता रीता बहुगुणा के लिए इतना आसान नहीं है.

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कचहरी चौराहे के पास उनकी पुश्तैनी कोठी में चहल पहल फिर से बढ़ गई है. कोठी के अंदर हेमवंती नंदन बहुगुणा की कई पुरानी फोटो के साथ अमित शाह और नरेंद्र मोदी की कई नई फोटो भी लग गई है. कोठी में विपक्षियों के बाहरी होने के आरोप से निपटने के लिए कार्यकर्ताओं को समझाती हैं कि मेरा घर कहां? इलाहाबाद...मैंने पढ़ाया कहां? इलाहाबाद विश्वविद्यालय... मैं मेयर कहां की? इलाहाबाद की तो जो मुझे बाहरी बता रहे हैं वो नालायक है. रीता बहुगुणा की कोठी पर मेरठ के पूर्व कांग्रेसी विधायक के बेटे मिले. वो कहते हैं कि व्यक्तिगत तौर पर रीता बहुगुणा जोशी के चुनाव प्रचार के लिए आए हैं, जबकि दिल से वो कांग्रेसी हैं.

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कांग्रेस प्रत्याशी योगेश शुक्ला भी बाइक रैली करके अपने चुनावी प्रचार को रफ्तार देने की कोशिश कर रहे हैं.

रीता बहुगुणा खुद 24 साल कांग्रेस में रही हैं...लेकिन अब बीजेपी उम्मीदवार बनकर इलाहाबाद लौटी हैं..बीजेपी की प्रत्याशी रीता बहुगुणा जोशी कहती हैं कि कांग्रेस क्षेत्रीय नेताओं को आगे बढ़ने नहीं देती है इसी वजह से उसका जनाधार लगातार कम हुआ है. अब कांग्रेस के पास केवल पांच फीसदी वोट है. उधर रीता बहुगुणा जोशी के हाई वोल्टेज चुनाव प्रचार के सामने कांग्रेस प्रत्याशी योगेश शुक्ला भी बाइक रैली करके अपने चुनावी प्रचार को रफ्तार देने की कोशिश कर रहे हैं. उनके साथ इलाहाबाद के बाबा अवस्थी जैसे तमाम वो कार्यकर्ता हैं जो कभी रीता बहुगुणा के साथ कांग्रेस में लंबे समय तक काम करते रहे हैं.

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अब बीजेपी में 25 साल से रहे योगेश शुक्ला कांग्रेस के टिकट से 24 साल कांग्रेस में रहने वाली बीजेपी उम्मीदवार रीता बहुगुणा को टक्कर दे रहे हैं. कांग्रेसी प्रत्याशी योगेश शुक्ला कहते हैं कि अगर हमारे पास पांच फीसदी वोट है तो बीजेपी घबराई क्यों है..प्रधानमंत्री को दोबारा इलाहाबाद में रैली क्यों करनी पड़ रही है?

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गठबंधन के पक्ष में जातीय समीकरण
इलाहाबाद के जातीय समीकरण को देखते हुए गठबंधन ने अपने दिग्गज नेता रेवती रमण सिंह को दरकिनार कर राजेंद्र पटेल को चुनावी मैदान में उतारा है. इलाहाबाद संसदीय सीट पर सवा लाख यादव, दो लाख मुस्लिम, ढ़ाई लाख दलित और दो लाख कुर्मी वोटों को हासिल करने के लिए राजेंद्र पटेल भी दिन रात एक कर रहे हैं. उनका चुनाव प्रचार बड़ी रैली और बड़े नेताओं के बिना ही चल रहा है. दारागंज के रहने वाले प्रमोद परेशान हैं. वो कहते हैं कि जिन लोगों के मकान तोड़े गए वो बीजेपी को कतई वोट नहीं देंगे. पिछली बार की तरह दलितों ने जिस तरह मोदी के नाम पर वोट दिया था वैसा उत्साह भी नहीं है. 2014 के चुनाव में कुंवर रेवती रमण सिंह को हार का सामना करना पड़ा था. भाजपा के टिकट पर श्यामाचरण गुप्ता को 313772 वोट मिले थे, जबकि सपा के रेवती रमण सिंह को 251763 वोट ही मिले. वहीं, बसपा से केशरी देवी पटेल 162073 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रही थी.

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लंबे समय से इलाहाबाद में पत्रकारिता कर रहे प्रवीण सिंह कहते हैं कि आसान नहीं है रीता बहुगुणा के लिए ये सीट जीतना. इलाहाबाद ने देश को पांच प्रधानमंत्री दिए, लेकिन अब बीजेपी और गठबंधन के दिग्गजों के चुनावी मैदान में होने से मुकाबला दिलचस्प है. बीजेपी जहां कुंभ की उपलब्धि और चेहरे पर वोट देने की अपील कर रही है, वहीं विपक्षी कुंभ के बाद फैली गंदगी और भ्रष्टाचार पर सवाल उठाकर वोट मांग रही है. ऊपर से दलित और कुर्मी वोटरों कि खामोशी नेताओं के लिए परेशानी का बायस बनी हुई है.