Delhi Election Results: दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने स्वीकारी हार, जानिए इस शिकस्त के 7 कारण

Delhi Election Results: दिल्ली की सात सीटों में नई दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली, चांदनी चौक, उत्तर पश्चिम दिल्ली, उत्तर पूर्वी दिल्ली शामिल हैं.

Delhi Election Results: दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने स्वीकारी हार, जानिए इस शिकस्त के 7 कारण

Delhi Election Results: दिल्ली में आम आदमी पार्टी खाता भी नहींं खोल पाई.

Delhi Election Results: लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Election 2019) में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आम आदमी पार्टी (Aam Admi Party) की करारी हार हुई है. यहां सभी सात सीटों पर अब तक आए रुझानों में लगातार बीजेपी (BJP) बढ़त बनाए है. आप की यहां हार तय है. आतिशी जैसे दिग्गज उम्मीदवार भी इस चुनाव में आम आदमी पार्टी की लाज नहीं बचा सके. जाहिर है आम आदमी पार्टी ने इतनी बुरी हार इससे पहले नहीं देखी थी. फिलहाल बीजेपी को मिली निर्णायक बढ़त के आधार पर आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को बधाई दी है. आप की ओर से कहा गया है कि प्रजातंत्र में जनादेश सबसे पवित्र माना जाता है और पार्टी इसका सम्मान करती है. आप के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने चुनाव परिणाम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा, ‘‘मैं अपनी पार्टी की तरफ से बीजेप को बधाई देता हूं. हम नरेन्द्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनने की शुभकामनायें भी देते हैं.’’ लेकिन यहां उन कारणों की पड़ताल करना भी जरूरी है कि आखिर क्यों आम आदमी पार्टी इतनी बुरी तरह से लोकसभा चुनाव हार गई.

आम आदमी पार्टी की हार केे 7 कारण

  1. चुनाव में भूमिका तय नहीं- आम आदमी पार्टी कि लोकसभा चुनाव 2019 में क्या भूमिका होगी यह बात तय नहीं थी. यानी अगर मतदाता आम आदमी पार्टी को वोट देगा तो वह क्या सोच कर देगा और इससे कौन पीएम बनेगा? 
     
    उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि दिल्ली का मतदाता अगर नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाना चाहेगा तो बीजेपी को वोट देगा या राहुल गांधी को प्रधानमंत्री देखना चाहेगा तो कांग्रेस को वोट देगा. लेकिन आम आदमी पार्टी को वोट देने पर किसी भी सूरत में अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी का कोई भी अन्य दूसरे नेता प्रधानमंत्री नहीं बनने वाला था ऐसे में आम आदमी पार्टी को जनता ने ज़्यादा तवज्जो नहीं दी. 
     

  2. पीएम-सीएम अलग वोटिंग- दिल्ली ने पिछले कुछ सालों में दिखाया है कि जब प्रधानमंत्री के लिए चुनाव होते हैं तब वह अलग तरीके से वोट करती है और जब मुख्यमंत्री चुनने के लिए चुनाव होते हैं तो वह अलग तरीके से वोट करती है. उदाहरण के लिए मई 2014 में दिल्ली की 7 लोकसभा सीटें बीजेपी ने जीत ली और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने लेकिन कुछ ही महीनों बाद फरवरी 2015 में हुए चुनावों में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीती और अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने. यानी लोकसभा चुनाव में पहले से ही यह बात तय थी यह दिल्ली वाले आम आदमी पार्टी से किनारा कर सकते हैं क्योंकि चुनाव पीएम बनाने के थे ना कि सीएम बनाने के. 
     

  3. गठबंधन की कोशिश फेल- आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों ही इस बात को अच्छी तरह समझती थी कि अकेले दम पर वह दिल्ली में बीजेपी का मुकाबला नहीं कर पाएंगे इसलिए गठबंधन की चर्चा बहुत दिनों तक चली. आम आदमी पार्टी ने गठबंधन के लिए बहुत तत्परता भी दिखाई लेकिन अंत में गठबंधन हो ना सका. हालांकि गठबंधन होने से बीजेपी को यह दोनों दल हरा ही देते यह निश्चित नहीं था लेकिन एक अच्छा मुकाबला जरूर किया जा सकता था. 
     

  4. नए चेहरे- आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की सभी 7 सीटों पर जो उम्मीदवार उतारे वह सभी पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे. कुछ चेहरे जाने पहचाने थे तो कुछ अनजाने भी थे लेकिन बीजेपी और कांग्रेस के नामी-गिरामी नेताओं के सामने वह शुरू से हल्के दिखाई दिए, जिसका नतीजा अंत में नतीजों में भी दिखाई दिया.
     

  5. टूटफूट, असंतोष और गुटबाज़ी- दिल्ली हो या पंजाब आम आदमी पार्टी टूट-फूट असंतोष और गुटबाजी की भारी शिकार रही. पंजाब में तो काफी समय से आम आदमी पार्टी में असंतोष दिखाई दे रहा था जिसके गुटबाज़ी खूब हावी रही. सबसे पहले नेता प्रतिपक्ष बने एचएस फूलका पार्टी छोड़ गए उसके बाद नेता विपक्ष बनाए गए सुखपाल सिंह खैरा को नेता विपक्ष पद से हटाया गया फिर पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में उन को निलंबित किया गया और आखिर में उन्होंने पार्टी छोड़ दी. चुनाव के दौरान ही आम आदमी पार्टी के दो विधायक कांग्रेस ज्वाइन कर गए. दिल्ली में भी चुनावों के दौरान आम आदमी पार्टी के 2 विधायकों ने बीजेपी ज्वाइन कर ली. जाहिर है इस सब का असर पार्टी के प्रदर्शन पर तो पड़ना ही था.
     

  6. नहीं चला पूर्ण राज्य का मुद्दा- आम आदमी पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2019 पूरी तरह से दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के मुद्दे पर लड़ा था. लेकिन आम आदमी पार्टी दिल्ली के लोगों को यह बात समझाने में नाकाम रही कि अगर वह आम आदमी पार्टी को वोट देंगे तो कैसे दिल्ली पूर्ण राज्य बन जाएगी और कैसे उम्र राज्य होना दिल्ली के लोगों के लिए फायदेमंद है. दिल्ली के लोगों के लिए पूर्ण राज्य कोई मुद्दा नहीं बन सका लिहाजा आम आदमी पार्टी को वोट क्यों दिया जाए यह आखिर तक संभाल बना रहा. 
     

  7. AAP भी दूसरों जैसी- आम आदमी पार्टी का जन्म एक अलग तरह की राजनीति के वादे के साथ हुआ था. एक ऐसी राजनीति जिसमें पुरानी राजनीतिक पार्टियों को नकार कर एक नई तरह की राजनीति का वादा किया गया था. आम आदमी पार्टी का जन्म 2012 में कांग्रेस विरोध के नाम पर हुआ था. आम आदमी पार्टी के नेताओं ने कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के कितने आरोप लगाए थे कि कांग्रेस ऐसी बदनाम हुई कि 2014 में लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के इतिहास का सबसे खराब प्रदर्शन हुआ. लेकिन इन लोकसभा चुनावों में जिस तरह से अरविंद केजरीवाल कांग्रेस से गठबंधन करने को लालायित दिखे उससे यह बात साफ हो गई कि आम आदमी पार्टी कोई नई तरह की राजनीति नहीं कर रही बल्कि जैसी राजनीति पहले चलती आ रही है उसी लीक पर आम आदमी पार्टी भी चल रही है. तो जब आम आदमी पार्टी कुछ अलग राजनीति कर ही नहीं रही तो जनता कुछ अलग सोचकर उसको वोट कैसे दे देते?