लोकसभा चुनाव के बाद राष्ट्रपति से गुहार लगाने की योजना में है विपक्ष, जानें क्या होगी यह आखिरी रणनीति

लोकसभा चुनाव के पूरा होने में अभी दो चरण शेष हैं, मगर विपक्षी पार्टियों ने अभी से ही सरकार बनाने के लिए एक वैकल्पिक रणनीति तैयार कर ली है.

लोकसभा चुनाव के बाद राष्ट्रपति से गुहार लगाने की योजना में है विपक्ष, जानें क्या होगी यह आखिरी रणनीति

राष्ट्रपति भवन (फाइल फोटो)

खास बातें

  • सिंगल लार्जेस्ट पार्टी को रोकने के लिए विपक्ष चलेगा यह दांव
  • राष्ट्रपति से मिलकर विपक्ष समर्थन पत्र सौंपेगा.
  • 23 मई को लोकसभा चुनाव के नतीजे आएंगे.
नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Polls 2018) के पूरा होने में अभी दो चरण शेष हैं, मगर विपक्षी पार्टियों ने अभी से ही सरकार बनाने के लिए एक वैकल्पिक रणनीति तैयार कर ली है. सूत्रों की मानें तो लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद विपक्षी पार्टियां राष्ट्रपति से मिलने की योजना बना रही हैं. विपक्ष की योजना है कि वह लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद राष्ट्रपति से मिलेगा और उन्हें इस बात के लिए राजी करने की कोशिश करेगा कि अगर खण्डित जनादेश (पूर्ण बहुमत नहीं मिलना) मिलता है तो वे सबसे बड़े दल यानी सिंगल लार्जेस्ट पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित न करें.

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केंद्र में बीजेपी की सरकार का विरोध कर रहे 21 राजनीतिक दल एक समर्थन पत्र पर हस्ताक्षर करने की योजना बना रहे हैं. उनका कहना है कि लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद वे वैकल्पिक सरकार के गठन के लिए राष्ट्रपति को विपक्षी पार्टियों के समर्थन की पत्र देने को तैयार रहेंगे.

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सूत्रों ने कहा कि इस असामान्य कदम का कारण यह सुनिश्चित करना है ताकि राष्ट्रपति चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी किसी पार्टी को (सिंगल लार्जेस्ट पार्टी) को क्षेत्रीय दलों और गठबंधन को तोड़ने या तोड़ने का प्रयास करने का मौका न दें. यह कदम क्षेत्रीय दलों में फूट पड़ने से रोकने के लिए है. बता दें कि लोकसभा में 543 निर्वाचित सदस्य होते हैं, जिनमें बहुमत के लिए 274 सांसदों की जरूरत होती है. 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 282 सीटों के साथ बहुमत हासिल किया. वहीं, NDA की संयुक्त ताकत लोकसभा में 336 सीटें थीं.

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साल 1998 में राष्ट्रपति केआर नारायण ने सरकार बनाने से पहले और सदन में विश्वास मत हासिल करने से पहले अटल बिहारी वाजपेयी को समर्थन पत्र प्रस्तुत करने के लिए कहा था. उस वक्त बीजेपी ने 178 सीटें जीतीं थीं और गठबंधन के पास 252 सदस्य थे. बाहरी समर्थन से किसी तरह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बन गई थी, मगर 20 महीने बाद सरकार गिर गई, जब वह एक मत से विश्वास मत हार गई. 

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पिछले पांच वर्षों में मणिपुर, गोवा जैसे राज्यों में सरकार गठन पर बहुत विवाद हुआ है और हाल ही में कर्नाटक में ऐसा नजारा देखने को मिला था. कर्नाटक में बीजेपी ने भाजपा ने तब विरोध किया था, जब चुनाव के बाद कांग्रेस ने एचडी कुमारस्वामी की जनता दल सेक्युलर के साथ गठबंधन किया था. अंतिम समय तक राज्य भाजपा प्रमुख बीएस येदियुरप्पा ने जोर देकर कहा था कि उनकी पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए और यह विधानसभा के फर्श पर बहुमत साबित करेगी. मगर बाद में भाजपा द्वारा विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोपों के बीच पहल को रोक दिया गया. 

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लोकसभा चुनाव के लिए जबकि कोई औपचारिक गठबंधन नहीं हुआ है, बावजूद इसके 21 पार्टियां बीजेपी से मुकाबला करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक साथ हैं. इसके अलावा गैर-भाजपा और गैर कांग्रेस वाले तीसरे मोर्चे के गठन के भी संकेत हैं. इसके लिए तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं से लगातार मुलाकात कर रहे हैं. बता दें कि लोकसभा चुनाव का आखिरी चरण की वोटिंग 19 मई को होगी और 23 मई को वोटों की गिनती होगी. 

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