आदर्श ग्राम : ...जब भूखे-प्यासे गांव में मंत्री जी ने देख डाला जिम का सपना

पालदेव ग्रामपंचायत के बंसीपुर में कुछ साल पहले तक प्राथमिक स्कूल पेड़ के नीचे लगता था बच्चे यहीं पढ़ने आते थे. लेकिन अब यह बिल्डिंग बन गई है, रंग रोगन हो गया है.

आदर्श ग्राम : ...जब भूखे-प्यासे गांव में मंत्री जी ने देख डाला जिम का सपना

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के आदर्श ग्राम का हाल

भोपाल:

प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना में सांसदों को अपने-अपने क्षेत्र के कम से कम एक गांव को 2016 तक और दूसरे गांव को 2019 तक पूरी तरह विकसित करने का लक्ष्य दिया था.  इसी के तहत केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मध्यप्रदेश के सतना ज़िले में उत्तर प्रदेश की सीमा पर बसे गांव पालदेव को गोद लिया था.  इस गांव में 5000 के करीब लोग रहते हैं जिसमें 75 फीसद अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग से आते हैं. गोद लिये गए इस आदर्श गांव में क्या कुछ बदला है. यही जानने के लिए एनडीटीवी की टीम इस गांव पहुंची. सतना के स्थानीय अख़बारों को खंगालने पर उस वक्त प्रकाश जावड़ेकर के आने-जाने, बैठक, उद्घाटन की खबरें खूब छपीं. इस योजना के तहत जनभागीदारी से विकास, सांसद निधि से भी राशि का प्रावधान, अंत्योदय का पालन, सरकारी योजनाओं का सफल क्रियान्वन, लैंगिक समानता और महिलाओं का सम्मान, सामाजिक न्याय की गारंटी, प्रकृति का संरक्षण, स्थानीय सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण और प्रोत्साहन जैसी बातें भी थीं. जब टीम गांव पहुंची तो दिखा सबसे पहले सामुदायिक भवन, यहीं बगल में पंचायत का दफ्तर भी चलता है. लेकिन दिन में तकरीबन 12 बजे सब पर ताला जड़ा था. यह देश के मानव संसाधन विकास मंत्री का गोद लिया था गांव इसलिए टीम सबसे पहले इलाके का प्राथमिक विद्यालय पहुंची. 5वीं तक के इस स्कूल में 13-14 बच्चे पढ़ते हैं, एक नियमित शिक्षक सबको पढ़ाते हैं. स्कूल खुला था लेकिन छात्र नदारद थे.  

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पालदेव ग्रामपंचायत के बंसीपुर में कुछ साल पहले तक प्राथमिक स्कूल पेड़ के नीचे लगता था बच्चे यहीं पढ़ने आते थे. लेकिन अब यह बिल्डिंग बन गई है, रंग रोगन हो गया है. स्थानीय साथी ज्ञान शुक्ल ने बताया कि कैसे पिछले कुछ दिनों में बिल्डिंग बनी और रंग-रोगन हुआ. स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक मोहन लाल अनुरागी ने बताया इस साल 14 बच्चों का दाखिला हुआ. हमने पूछा उन्हें मिड डे मील कैसे मिलता है तो उन्होंने एक टूटे चूल्हे की तरफ इशारा किया जहां दो कुत्ते लेटे थे. मास्टर जी का दावा था उस चूल्हे में एक दिन पहले ही खाना बना था. स्कूल में बिजली, कुर्सी, टेबल किसी भी चीज की व्यवस्था नहीं थी. हालांकि मंत्री जी ने अपनी वेबसाइट पर गांव की पढ़ाई का रिपोर्ट कार्ड 2016 तक कुछ ऐसा बताया है कि 

  • 10 वीं कक्षा के परिणामों में सुधार आया ये 2014 में 28% से 2015 में 51% और 2016 में 62% हो गया. 
  • 12 वीं कक्षा के परिणामों में सुधार आया यह 2014 में 28% से 2015 में 82% हो गया और 2016 में 78% पर स्थिर हो गया. 

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(केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर)

मतलब नवंबर में उनके गोद लेते ही, 4-5 महीने में परिणाम सीधे दोगुना हो गए. बहरहाल इस परिणाम को ज़मीन पर परखने हम रामदयाल पटेल के घर पहुंचे वे अपनी नातिनों को निजी स्कूल भेजते हैं, सरकारी नहीं. उनका कहना है कि सरकारी स्कूल में शिक्षा का स्तर ठीक नहीं है. रामदयाल के बेटे अवधेश तो खासे नाराज हैं उनका कहना है कि न सड़क बनी और न अस्पताल. अवधेश ने कहा, 'जब मंत्री जी ने गोद लिया था लगा था कि इसे स्वर्ग बना देंगे लेकिन नर्क बना दिया'. अवधेश का कहना था कि उम्मीद थी कि अस्पताल, खेल का मैदान, खेती से संबंधित जानकारी मिलेगी. आज भी वही हालात हैं. टीम गांव में जहां-जहां गई लोग मनरेगा, रोज़गार से लेकर शौचालय के निर्माण से लेकर सवाल उठाते नजर आए. संपतिया और उनके पति कुम्हार हैं उनकी अपनी शिकायत हैं. वे कहते हैं मिट्टी नहीं मिलती, बच्चों के पास रोज़गार नहीं है.  कुछ लोगों का कहना था कि शौचालय नहीं बनवाए गए सिर्फ एक बार 6 हजार रुपया दे दिया गया. मनरेगा में काम नहीं मिलता है. इस गांव के हालात अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 5000 लोगों की आबादी में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र तक नहीं खुल पाया है. गांव में झोलाछाप डॉक्टरों की चांदी है, या फिर चित्रकूट, सतना जाकर इलाज का विकल्प क्योंकि यहां जो कंपाउंडर हैं वो भी घड़ी देखकर दवाखाना बंद कर देते हैं. 

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कुछ ग्रामीण यह भी बताते हैं कि जावड़ेकर ने 13 लाख की लागत से पालदेव से ब्रजपुरा की सड़क और 15 लाख रुपए में पालदेव से बरगदहा पूर्वा का काम करवाया है. पंचायत नए भवन में शिफ्ट हो चुकी है. स्कूल की बिल्डिंग बनी, हायर सेकंडरी बनाकर नया भवन दिया.  आदर्श गांव घोषित होने के बाद 10 लाख रुपए साफ-सफाई पर खर्च किए गए हैं.  स्कूल बिल्डिंग, जिम, तालाब वगैरह सुंदर बनाने के नाम पर मंत्रीजी ने 81.96 लाख खर्च कर दिये.  कच्ची सड़कों तक के किनारे नालियां बनाई गईं. लेकिन उसकी हालत आप देख सकते हैं. गांव में पानी की किल्लत है, महीनों पहले पाइप आ गये लेकिन सरपंच के आंगन में रखे हुए हैं. भूखे प्यासे गांव में मंत्रीजी ने जिम का भी सपना भी देखा था. सरकारी वेबसाइट पर कुछ तस्वीरों के साथ ब्लॉग भी लिखा. लेकिन जब हमने उस दंपत्ति के बारे में जानना चाहे जो ट्रेनिंग लेकर आए थे तो पता लगा वो दिल्ली के थे. पालदेव के बाद छिंदवाड़ा के गांव गये. वहां से दिल्ली चले गए. व्यायामशाला बन गई फिर उसमें ताला लग गया और जिम का सामान स्कूल की बिल्डिंग में बंद हैं.

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रवीश की रिपोर्ट : प्रकाश जावड़ेकर के गोद लिए गांव की कहानी​