लोकसभा चुनाव के बीच में पड़ रहे रमजान को लेकर हुए विवाद पर क्‍या कहते हैं मुस्लिम विद्वान

रमजान (Ramadan) के महीने में मतदान (Lok Sabha Election 2019) होने के फैसले के विरोध के बीच चुनाव आयोग (Election Commission) ने इस पर प्रतिक्रिया दी है. चुनाव आयोग ने कहा कि किसी भी शुक्रवार या त्योहार के दिन मतदान नहीं हैं.

नई दिल्‍ली:

रमजान (Ramadan) के महीने में मतदान (Lok Sabha Election 2019) होने के फैसले के विरोध के बीच चुनाव आयोग (Election Commission) ने इस पर प्रतिक्रिया दी है. चुनाव आयोग ने कहा कि किसी भी शुक्रवार या त्योहार के दिन मतदान नहीं हैं. चुनाव आयोग ने रमज़ान के महीने में चुनाव कराने के फ़ैसले पर उठ रहे सवालों को नकारते हुए कहा कि चुनाव कार्यक्रम में मुख्य त्योहार और शुक्रवार का ध्यान रखा गया है. मामले में आयोग की ओर से कहा गया कि रमज़ान के दौरान पूरे महीने के लिए चुनाव प्रक्रिया को रोका नहीं जा सकता. आयोग ने स्पष्ट किया कि इस दौरान ईद के मुख्य त्योहार और शुक्रवार का ध्यान रखा गया है. बता दें कि 'आप' और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने रमज़ान के दौरान चुनाव कराने को लेकर आयोग की मंशा पर सवाल उठाते हुए जानबूझ कर ऐसा चुनाव कार्यक्रम बनाने का आरोप लगाया था.

लोकसभा चुनावों के बीच में पड़ रहे रमजान को लेकर मौलानाओं ने चुनाव की तिथियों में बदलाव की मांग की है. वहीं कई मौलानाओं ने इस चुनाव को चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए बढ़ चढ़ कर वोट डालने की अपील की है. इस पूरे विषय पर एनडीटीवी ने देश के मुस्लिम विद्वानों से बात की.

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दिल्ली जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने एनडीटीवी से कहा, 'हमें अफ़सोस है कि रमजान को ध्यान में रखते हुए ये फैसला नहीं लिया गया. अब चुनाव आयोग की तरफ से कोई तबदीली भी होती नज़र नहीं आ रही है. उन्होंने मुसलमानों से अपील करते हुए आगे कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए कि वोट डालने के लिए लोग कम जाएं, बल्कि लोकतंत्र को मज़बूत करने के लिए ज्‍यादा से ज्‍यादा तादाद में वोट का इस्तेमाल करना चाहिए.

प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान मौलाना डॉक्टर कल्बे रुशैद रिज़वी ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि लोकतंत्र में भी अगर मज़हबी आज़ादी नहीं होगी तो कहां होगी? अल्लाह के पाक महीने में रोज़ा रख के धूप में लाइन में खड़ा रहना आसान तो नहीं.

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इस्लामिक स्कॉलर, लखनऊ ईदगाह के इमाम व शहरकाजी मौलाना खालिद रशीद फि‍रंगी महली ने 6 मई से 19 मई के बीच होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर कड़ी नाराजगी जताई है. मौलाना फि‍रंगी महली ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि 5 मई को मुसलमानों के सबसे पवित्र महीने माहे रमजान का चांद देखा जाएगा. अगर चांद दिख जाता है तो 6 मई से रोजा शुरू होंगे. रोजे के दौरान देश में 6 मई, 12 मई व 19 मई को मतदान होगा, जिससे देश के करोड़ों रोजेदारों को परेशानी होगी. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को देश के मुसलमानों का ख्याल रखते हुए चुनाव कार्यक्रम तय करना चाहिए था. उन्होंने चुनाव आयोग से मांग की है कि वह 6, 12 व 19 मई को होने वाले मतदान की तिथि बदलने पर विचार करे.

फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम डॉक्टर मुफ़्ती मुकर्रम अहमद ने कहा कि रमजान के दौरान चुनाव की तारीख पर मुझे एतराज़ है. अगर मुनासिब हो तो करोड़ों मुसलमानों के जज़्बात को समझते हुए चुनाव की 6 मई से 19 मई की तारीख पर दोबारा गौर करना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि मुझे शक है कि इसमें सियासी दांव पेंच शामिल हो सकता है क्योंकि ये फैसला कोई अचानक नहीं किया गया है बल्कि इसकी प्लानिंग पहले से की गयी होगी.

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा सच्चर कमेटी के ओएसडी एवं ज़कात फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. सैयद ज़फ़र महमूद ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि चुनाव रमज़ान में न होते तो अच्छा था. अब जब तारीख़ों का ऐलान हो चुका है, इसलिए अब तारीख के बदलाव की गुंजाइश भी नहीं है. हम लोग कोशिश करेंगे कि सौ फ़ीसद लोग वोट दें. मिल्लत का वोट बंट कर ख़राब नहीं होना चाहिए क्योंकि उनके वोट से ही धर्मनिरपेक्ष उम्मीदवारों की जीत निर्भर है.

ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड, अध्यक्ष शाइस्ता अम्बर ने कहा कि निर्वाचन आयोग का रमज़ान के महीने में चुनाव की तारीख का ऐलान  मुनासिब नहीं है. रमज़ान के महीने का इंतजार हर मुसलमान करता है, यहां तक कि सरकारी कर्मचारी पूरे साल अपनी छुट्टियां बचाते हैं कि सुकून से इबादत के महीने में रोज़े रखेंगें. रमज़ान के महीने में रोज़ा रखकर वोट देने जाना कष्टों को सहन करना पड़ेगा, नमाज़ और रोज़ा जैसी इबादत में बहुत बाधाएं आएंगी. अपने मताधिकार का भी पर्व है, अगर सभी समुदाय की भावनाओं को भी ध्यान मे रखा जाता तो ख़ुशी होती.

मौलाना अतहर देहलवी ने कहा कि आज़ादी कि लड़ाई में अनेकों बार रमजान आए. यहां तक कि लाल किले पर 15 अगस्त को जब तिरंगा फहराया गया वो पवित्र रमजान का आखिरी जुमा था. अब अगर वोटिंग रमजान में है तो दिक्कत क्‍या है. अगर इस पर कुछ को आपत्ति है तो इस पर इतना शोर क्यों है. लोकतंत्र का पर्व जोश से मनाएं.

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मेंबर क़ासिम रसूल इलियास ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा, 'चुनाव का मतलब ये है कि हर नागरिक को अपने वोट के इस्तेमाल का पूरा हक़ मिलना चाहिए. लेकिन ये चुनाव की तारीख से देश के 15 प्रतिशत मुसलमानों की सुविधाओं को सामने नहीं रखा गया. 6 मई से मुसलमानों का पवित्र महीना शुरू हो रहा है जिसमें बालिग औरत, मर्द रोज़ा रखते हैं. रोज़ा रखने से खाने और पीने से वंचित रहना पड़ता है. 6 मई से 19 मई के दौरान चुनाव में वोट डालने के लिए लाइन में लगने से मुसलमानों के लिए बहुत मुश्किल हो जाएगी. उन्होंने चुनाव आयोग से गुज़ारिश के साथ उम्मीद जताई कि आयोग देश के एक बड़े समुदाय की विनती को कबूल करेगा.

मोहम्मद अजहर मदनी, चेयरमैन, जामिया अबू बकर सिद्दीक अल इस्लामिया, डायरेक्टर इकरा गर्ल्स इंटरनेशनल स्कूल ने कहा कि हमारा वतन दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और उसकी खूबी यह है कि उसमें सभी धर्मों के लोग मिल जुलकर रहते हैं. एक तरफ रोज़ा रखना ज़रूरी है वहीं दूसरी तरफ देश का चुनावी पर्व भी अहम है. दोनों में कोई टकराव भी नहीं है. लेकिन अगर मुल्क के बुद्धिजीवी लोग अगर रमजान का ख्याल करते तो बेहतर होता. वैसे अब जब चुनाव का ऐलान हो गया है तो मुसलमानों को बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिए.

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