
महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग लगा है.
संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि महाराष्ट्र की राजनीतिक पार्टियां राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बावजूद सरकार बनाने का अपना दावा पेश कर सकती हैं. लोकसभा के पूर्व प्रधान सचिव पी.डी.टी. आचारी ने कहा, "राष्ट्रपति ने अभी विधानसभा को भंग नहीं किया है, इसलिए राजनीतिक पार्टियां संख्या बल जुटाकर सरकार बनाने का दावा अभी भी पेश कर सकती हैं." सुप्रीम कोर्ट 1994 के एस.आर. बोम्मई मामले के फैसले में उन परिस्थियों के बारे में व्यवस्था दे चुका है, जहां अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू करना जरूरी होता है.
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राज्यपाल के फैसले को शिवसेना द्वारा एकतरफा बताए जाने और समर्थन जुटाने के लिए पर्याप्त समय न दिए जाने की शिकायत पर टिप्पणी करते हुए आचारी ने कहा, "अगर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर राष्ट्रपति शासन को चुनौती दी जाए, तब राज्य में सरकार बनाई जा सकती है." वहीं, लोकसभा के एक और पूर्व प्रधान सचिव सुभाष कश्यप ने कहा, "राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद दो परिदृश्य बन सकते हैं, राष्ट्रपति विधानसभा भंग सकते हैं और जल्द चुनाव कराने के लिए कह सकते हैं या विधानसभा को निलंबित रखकर राजनीतिक पार्टियों को सरकार बनाने के लिए राज्यपाल के समक्ष दावा पेश करने की अनुमति दे सकते हैं." कश्यप ने कहा कि राज्यपाल की प्राथमिकता है कि वह राज्य में सरकार का गठन होने दें.
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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)