
बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं पर तेजस्वी यादव लगातार हमले बोल रहे हैं. (फाइल फोटो)
खास बातें
- बिहार में भिड़े हुए हैं पक्ष-विपक्ष
- तेजस्वी ने स्वास्थ्य सेवाओं के लेकर नीतीश पर बोला हमला
- संजय झा ने किया लंबा-चौड़ा ट्वीट
बिहार में स्वास्थ्य सेवा बीमार है. इसका उदाहरण पिछले तीन महीने से कोरोना महामारी के दौरान हर दिन देखने को मिल रहा है. नीति आयोग के अनुसार, जहां टेस्टिंग की सुविधा आबादी के अनुपात में देश में सबसे कम हैं, वहीं संक्रमित होने पर ये सच है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अपने संबंधी का इलाज हो या उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी हों या सांसद या फिर पूर्व सांसद या खुद जिला अधिकारी हों, सब नीतीश कुमार के सरकारी अस्पतालों के बजाय AIIMS पटना में अपना इलाज कराना बेहतर समझते हैं.
अब इसी स्वास्थ्य सेवा को आधार बनाकर विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव सरकार के खिलाफ़ हमलावर हैं. उनके अनुसार माननीय नीतीश कुमार और सुशील मोदी ने 15 वर्षों में बिहार की शिक्षा व्यवस्था ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य व्यवस्था को भी आईसीयू में पहुंचा दिया है. केंद्र सरकार की रिपोर्ट और मानक संस्थानों की जांच में बिहार सबसे फिसड्डी है. स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा तय मानक प्रति हज़ार आबादी पर स्वास्थ्य केंद्र में बिहार सबसे आखिरी पायदान पर है. बिहार में डॉक्टर- मरीज अनुपात पुरे देश में सबसे ख़राब है. जहां विश्व स्वास्थ्य संगठन के नियमों अनुसार, प्रति एक हज़ार आबादी एक डॉक्टर (1:1000) होना चाहिए, बिहार में ये 1:3207 है. ग्रामीण क्षेत्रों में तो और भी दयनीय स्थिति है, जहां प्रति 17,685 व्यक्ति पर महज 1 डॉक्टर है. आर्थिक उदारीकरण के 15 वर्षों में नीतीश सरकार ने इस दिशा में क्या कार्य किया है, यह सरकारी आंकड़े बता रहे हैं.
तेजस्वी ने लगाए हैं ये आरोप
तेजस्वी के अनुसार, 'राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन द्वारा जारी रिपोर्ट कार्ड में पिछले 15 सालों में बिहार का सबसे ख़राब प्रदर्शन रहा है. बिहार को जो राशि आवंटित हुई उसका सरकार आधा भी खर्च नहीं कर पाई. कुपोषण भी सबसे अधिक बिहार में है. आयुषमान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के अंतर्गत सबसे ख़राब प्रदर्शन बिहार का रहा है, जिसकी वजह से केंद्र सरकार ने एक भी पैसा इस साल आवंटित नहीं किया है अभी तक 75% आबादी का ई-कार्ड नहीं बन पाया है. चाहे नीति आयोग की रिपोर्ट हो या राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसे संस्थानों के सारे मानकों पर बिहार नीतीश राज के 15 सालों में साल-दर -साल फिसड्डी होता चला गया. ऐसा होना भी लाज़िमी है जिस प्रदेश के मुख्यमंत्री को अपनी कुर्सी के स्वास्थ्य चिंता हो उसे प्रदेश वासियों के स्वास्थ्य की चिंता क्यों होगी?'
नीतीश के मंत्रियों ने किए हैं जवाबी हमले
वहीं तेजस्वी के इस बयान के जवाब में उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय और जल संसाधन मंत्री संजय झा ने जवाब दिया है. मंगल पांडेय ने कहा कि 'जहाँ सुशील मोदी के अनुसार विपक्ष रोज बयान देकर पीड़ित परिवारों का मनोबल तोड़ रहा है और स्वास्थ्य सेवाओं के ICU में होने का अनर्गल आरोप लगा रहा है, लेकिन उन्हें कोरोना और चमकी बुखार से निपटने में सरकार की तत्परता दिखाई नहीं पड़ती.'
उन्होंने कहा, 'बयान देने वालों को आज तक मुजफ्फरपुर जाने का समय क्यों नहीं मिला? मुजफ्फरपुर में इस वर्ष एइएस हॉस्पिटल में भर्ती चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों को देखने आज तक क्यों नहीं गए? चमकी बुखार से पीड़ित बच्चों से मिलने का उनके पास एक मिनट का भी समय नहीं है, लेकिन पटना में कमरे में बंद होकर बेफजूल की बयानबाजी से बाज नहीं आते हैं. राजद शासनकाल में स्वास्थ्य सेवा का यह हाल था कि मेडिकल काॅलेज अस्पताल में रोगियों की संख्या शतक भी नहीं लगा पाती थी.'
लेकिन पटना में कमरे में बंद होकर बेफजूल की बयानबाजी से बाज नहीं आते हैं। राजद शासनकाल में स्वास्थ्य सेवा का यह हाल था कि मेडिकल काॅलेज अस्पताल में रोगियों की संख्या शतक भी नहीं लगा पाती थी।
— Mangal Pandey (@mangalpandeybjp) July 13, 2020
लेकिन सबसे विस्तार से तेजस्वी के बयान का जवाब जल संसाधन मंत्री संजय झा ने दिया है. झा ने एक साथ कई सारे ट्वीट किए, जिसमें उन्होंने कहा है कि पिछले 15 सालों से नीतीश कुमार की सरकार में स्वास्थ्य और शिक्षा पर बहुत तेजी से काम हुआ है.
Bihar has witnessed unprecedented development in last 15 years under CM Sri @NitishKumar. Yet there are agencies & individuals who wish to live in a time warp. They wish to gloriously ignore the fact that our focus on development and sectors like health & education has sharpened.
— Sanjay Kumar Jha (@SanjayJhaBihar) July 13, 2020
उन्होंने कहा, '2004-05 में बिहार का कुल बजट 23,885 था, जो 2020-21 में हमारा बस शिक्षा बजट ही इससे 150 फीसदी ज्यादा 35,191 करोड़ है. क्या नीति आयोग और दूसरे संस्थान इसका आकलन करेंगे? क्या बिहार के 38 जिलों में पिछले 15 सालों में इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थापना करना, दैवीय चमत्कार है या फिर नीतीश कुमार के नेतृत्व में NDA की सरकार की मेहनत का नतीजा है? क्या नीति आयोग अपने आंकड़ों और आकलन में इसको शामिल करेगा?'
In 2005, an average 39 patients visited Bihar government's hospitals and healthcare facilities. Today the average figure stands at 10,000. Is this owing to some wizardry or an act of conscious state intervention? Will @NITIAayog take note?
— Sanjay Kumar Jha (@SanjayJhaBihar) July 13, 2020
झा ने आगे लिखा, '2005 में महज 12 फीसदी बच्चे स्कूल जा सकते थे , शिक्षा हासिल कर सकते थे. अब गरीब और निचले तबके के 1 फीसदी से भी कम बच्चे हैं, जिनकी अभी शिक्षा तक पहुंच नहीं है. क्या बड़े-बड़े अर्थशास्त्री और विश्लेषक इसके पीछे राज्य सरकार की मेहनत को स्वीकार करेंगे? या फिर यह जादू है?' उन्होंने कहा, '2005 में औसतन 39 फीसदी मरीज बिहार सरकार के सरकारी अस्पतालों में जाते थे. आज यह आंकड़ा औसतन 10,000 के पार है. क्या नीति आयोग यह देखेगा?'
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