जयललिता के बाद एआईएडीएमके ही नहीं, मुख्य प्रतिद्वंद्वी डीएमके में भी होगा नेतृत्व परिवर्तन

जयललिता के बाद एआईएडीएमके ही नहीं, मुख्य प्रतिद्वंद्वी डीएमके में भी होगा नेतृत्व परिवर्तन

शशिकला नटराजन (बाएं) तथा एमके स्टालिन (फाइल फोटो)

चेन्नई:

तमिलनाडु की भूतपूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता के निधन की वजह से न सिर्फ उनकी पार्टी ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) नेतृत्व परिवर्तन के लिए मजबूर हो गई है, बल्कि उनकी चिर-प्रतिद्वंद्वी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) को भी नए नेतृत्व का सहारा लेना पड़ रहा है. नए साल की शुरुआत के साथ ही एक ही हफ्ते के भीतर दोनों पार्टियां अपनी-अपनी निर्णय लेने वाली शीर्ष इकाइयों, जनरल काउंसिल, की बैठकें आयोजित करने जा रही हैं, जिनमें एआईएडीएमके को जे. जयललिता का उत्तराधिकारी तलाश करना है, जबकि डीएमके द्वारा पार्टी प्रमुख एम. करुणानिधि के पुत्र एमके स्टालिन को कार्यवाहक अध्यक्ष बनाए जाने की संभावना है.

92-वर्षीय करुणानिधि को इसी महीने अस्पताल से छुट्टी मिली है, और पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि वह 4 जनवरी को पार्टी की जनरल काउंसिल बैठक में शिरकत कर पाएंगे, और अपने पुत्र को कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करेंगे. तमिलनाडु की मुख्य विपक्षी पार्टी डीएमके इस वक्त को जे. जयललिता के निधन के चलते नेतृत्वविहीन लगने लगी एआईएडीएमके के मुकाबले राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करने का सुनहरा मौका मान रही है.

इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में जे. जयललिता ने अपनी पार्टी को लगातार दूसरी बार सत्ता दिलवाई थी, जो राज्य के चुनावी इतिहास में एक रिकॉर्ड रहा, क्योंकि उससे पहले दोनों दलों को बारी-बारी से सत्ता हासिल होती रही थी. लेकिन इस बार डीएमके के खिलाफ एआईएडीएमके को मिली जीत का अंतर पिछली बार के मुकाबले कुछ कम था.

डीएमके का मानना है कि पार्टी की कमान 63-वर्षीय स्टालिन के हाथों में सौंपकर वह तमिलनाडु में सर्वश्रेष्ठ विकल्प के रूप में खुद को पेश कर पाएंगे. पार्टी नेताओं का यह भी मानना है कि इस कदम से पार्टी कार्यकर्ताओं में भी उत्साह का संचार होगा.

उधर, एआईएडीएमके भी बेहद मेहनत से हासिल किए गए समर्थन को गंवाना नहीं चाहेगी, और उसे उस खाई को पाटना होगा, जो लाखों समर्थकों के लिए 'अम्मा' रहीं जयललिता के निधन के बाद पैदा हो गई लगती है. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने जे. जयललिता की लंबे समय तक सहयोगी रहीं शशिकला नटराजन से पार्टी का महासचिव पद संभालने का आग्रह किया है, और वे शशिकला को 'चिन्नम्मा', यानी 'छोटी मां' कहकर पुकारते हैं.

शशिकला नटराजन ने फिलहाल हामी नहीं भरी है, और वह अपने नेतृत्व को लेकर पार्टी में मतैक्य बन जाने का इंतज़ार कर रही हैं. आमतौर पर शशिकला के विरोध को लेकर चुप्पी साधे रहने वाले पार्टी में मौजूद आलोचकों ने इस ओर इशारा किया है कि राज्यभर में लगे उनके पोस्टरों पर रंग पोता गया है, जिसका अर्थ है कि लोग उनके विरोध में हैं, जबकि शशिकला के समर्थक इसे 'विपक्षी दलों की शरारत' बताकर खारिज कर रहे हैं.

एआईएडीएमके में पार्टी महासचिव ही सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री बनता रहा है - और जे. जयललिता पार्टी की जीत की स्थिति में हमेशा इन दोनों पदों पर बनी रहीं. हालांकि अब सत्तासीन पार्टी को यह तय करना होगा कि शशिकला के पार्टी महासचिव पद संभाल लेने की स्थिति में भी जयललिता के निधन के कुछ ही घंटों बाद मुख्यमंत्री बनाए गए ओ. पन्नीरसेल्वम अपने पद पर बने रहेंगे या नहीं. जब तक जयललिता जीवित रहीं, शशिकला को पार्टी तथा सरकार के कामकाज से दूर ही रखा गया था, परन्तु उनके निधन के बाद से चल रही राजनैतिक गतिविधियों में शशिकला की भूमिका महत्वपूर्ण रही है.

मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम, जिन्हें आमतौर पर ओपीएस के नाम से पुकारा जाता है, ने अब तक के घटनाक्रम पर किसी तरह की कोई टिप्पणी नहीं की है. सूत्रों का कहना है कि ओपीएस अपना कार्यकाल पूरा करना चाहते हैं, और केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भी स्पष्ट रूप से कह चुकी है कि वह भी एआईएडीएमके के विधायकों द्वारा मुख्यमंत्री चुने गए शख्स का समर्थन करती है.


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