एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल लगातार गुजरात के दौरे कर रहे हैं. एनसीपी गुजरात विधानसभा चुनाव में अधिकांश सीटों पर लड़ने की तैयारी कर रही है.
खास बातें
- गुजरात में गुटबाजी में फंसी कांग्रेस के सामने नई चुनौती
- राज्य की ज्यादातर सीटों पर लड़ने की इच्छुक है एनसीपी
- अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी की रणनीति का अंदेशा
अहमदाबाद: गुजरात में चुनावों की चर्चा जोरशोर से शुरू होते ही कांग्रेस ने अपने संभावित उम्मीदवारों के साथ बैठक कर तैयारी शुरू कर दी है. लेकिन अपनी पुरानी सहयोगी एनसीपी का रुख उसे चिंता में डाल रहा है. एनसीपी राज्य की ज्यादातर सीटों पर लड़ने की बात कह रही है. जाहिर है बीजेपी विरोधी वोट इससे बंट सकते हैं. जहां एक तरफ गुटबाजी में फंसी कांग्रेस के सामने एकजुट होने की चुनौती है वहीं अब एनसीपी का रुख उसके सामने नई चुनौती बनकर आ रहा है. एनसीपी की रणनीति के पीछे अमित शाह और नरेंद्र मोदी की चाल भी बताई जा रही है.
एनसीपी के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल लगातार गुजरात के दौरे कर रहे हैं. उनका कहना है कि उनकी पार्टी महाराष्ट्र के बाहर गुजरात में भी अपने पांव जमाने की तैयारी में है. गठबंधन की बजाय उन्होंने गुजरात की ज्यादातर सीटों पर लड़ने का फैसला कर लिया है. कांग्रेस के नुकसान के अंदेशे को वे दरकिनार कर रहे हैं. वे कहते हैं कि पिछले 22 सालों से उनकी पार्टी का कांग्रेस के साथ गठबंधन है लेकिन फिर भी कांग्रेस भाजपा को रोक नहीं पाई है. जब कांग्रेस कुछ नहीं कर पा रही है तो वे अपने राष्ट्रीय मनसूबों को आगे क्यों न बढ़ाएं? आखिर महाराष्ट्र के बाहर भी एनसीपी के सांसद हैं. एनसीपी के इन तेवरों से कांग्रेस चिंतित है.
इस बीच कांग्रेस के एक प्रमुख नेता शंकरसिंह वाघेला अकेले एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार से मिले तो अटकलों का दौर चल पड़ा कि कांग्रेस से नाराज नेता एनसीपी की राह पकड़ सकते हैं. हालांकि वाघेला ने इन खबरों का खंडन किया और बताया कि वे पवार से मिले तो थे लेकिन साथ में यह भी कहा कि ''पता नहीं नाराजगी की बात कौन उड़ाता है. पवार साहब मेरे पुराने दोस्त हैं तो उनको भोजन के लिए बुलाया था. लेकिन वे व्यस्त थे तो मैं चला गया और साथ चाय-नाश्ता किया था, इतना ही.''
कुछ राजनीति के जानकार एनसीपी की रणनीति के पीछे अमित शाह और नरेंद्र मोदी की चाणक्य चाल भी मान रहे हैं. इसे बीजेपी विरोधी वोट बांटने के खेल की तरह देखा जा रहा है. गुजरात में जहां जल्द चुनावों की सुगबुगाहट है तो राजनीतिक दांवपेच भी जमकर खेले जा रहे हैं. वैसे तो गुजरात में इस साल दिसम्बर में चुनाव होने हैं लेकिन राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि उत्तर प्रदेश की जीत को भुनाने के लिए भाजपा राज्य में जल्द चुनाव करवा सकती है.