राजस्थान में राजपूत वोट बैंक पर बीजेपी की नजर, गौरवशाली इतिहास की याद दिलाने में जुटीं वसुंधरा राजे

राजस्थान में विधानसभा चुनाव में महज कुछ महीने शेष हैं और इधर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे गौरव यात्रा के बहाने तैयारियां शुरू कर चुकी हैं.

राजस्थान में राजपूत वोट बैंक पर बीजेपी की नजर, गौरवशाली इतिहास की याद दिलाने में जुटीं वसुंधरा राजे

वसुंधरा राजे और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह

खास बातें

  • राजपूत वोट बैंकर पर बीजेपी की नजर.
  • गौरवशाली इतिहास याद दिलाने में जुटीं वसुंधरा राजे.
  • उपचुनाव में राजपूतों के नाराजगी का सामना करना पड़ा था.
जयपुर:

राजस्थान में विधानसभा चुनाव में महज कुछ महीने शेष हैं और इधर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे गौरव यात्रा के बहाने तैयारियां शुरू कर चुकी हैं. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की गौरव यात्रा अब राजस्थान के पश्चिमी धोरों से गुज़र रही हैं. इसका दूसरा चरण अब जोधपुर में 2 सितंबर को को समाप्त होगा. लेकिन गौरव यात्रा और चुनावी अभियान के साथ-साथ वसुंधरा राजे इतिहास को भी याद कर रही हैं और ऐतिहासिक स्मारकों का लोकर्पण भी कर रही हैं, ताकि राजपूतों को लुभाया जा सके. 

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वसुंधरा राजे ने एक ऐसे ही गांव में इतिहास की झांकी का लोकार्पण किया, जो अपने आप में नायाब है. ये गांव है आऊवा. दरअसल, आऊवा के लोगों ने 1857 की लड़ाई में भाग लिया था. लेकिन आज तक स्वंत्रता संग्राम के पहले युद्ध में इनके योगदान को पहचान नहीं मिली है. मगर 5 करोड़ के खर्च से अब आऊवा में 1857 को लड़ाई को समर्पित एक समारक बनाया गया है. लेकिन चुनाव के ठीक पहले इसके लोकार्पण से भाजपा सरकार एक राजनीतिक सन्देश भी देना चाहती है. 

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दरअसल, वसुंधरा राजे की सरकार राजपूत वोट बैंक की नाराज़गी से जूझ रही है. वसुंधरा राजे को पिछले उप चुनावों में भारी पड़ी थी. अब आऊवा के ठाकुरों के नेतृत्व में लड़ी गयी 1857 की लड़ाई की यादों को संजोने से भाजपा अपने पारम्परिक राजपूत वोट बैंक को लुभाना चाहती है. राजपूत राजस्थान में करीब  9 से 11 फीसदी है और 50-60 सीटों पर असर डालते हैं. यही वजह है कि वसुंधरा राजे ने 1857 के लड़ाई में ब्रिटिश सरकार से लोहा लेने वाले आऊवा के ठाकुर कुशल सिंह की मूर्ति का लोकार्पण किया और यहां 1857 के युद्ध में खंडित हुई सुगाली माता, जो काली का रूप है, उनकी मूर्ति को पुनर्स्थापित किया गया.

राजस्थान के मारवाड़ में आज भी आऊवा के योगदान को लेकर गीत गाए जाते हैं, जिसमें आऊवा का अंग्रेज़ों से लोहा लेना और गांव के पूरे तरह नष्ट हो जाने का वर्णन है. लेकिन ये पहली बार है कि सरकारी तर्ज़ पर आऊवा को एक पहचान मिली है. वसुंधरा राजे ने यहां 1857 और उसमें आऊवा के भागीदारी को लेकर एक विशाल झांकी का लोक अर्पण भी किया. 

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वसुंधरा राजे ने कहा कि "आज कितने लोग हैं, कितने सामाज हैं, जिनकी वजह से राजस्थान का गौरव, राजस्थान का इतिहास सुरक्षित है. उनको याद रखा ज़रूरी है. नहीं तो आने वाली पीढ़ी उन्हें भूल जाएगी. लेकिन सवाल ये भी है कि क्या चुनाव के ठीक पहले लोकार्पण से भाजपा कोई राजनीतिक सन्देश देना चाहती है?

हेरिटेज डेवलपमेंट के चेयरमैन ओंकार सिंह लाखावत ने कांग्रेस की ओर इशारा करते हुए कहा कि " ये सामन्त हैं, वो जागीरदार हैं, इसलिए इनका वोट बैंक बनाने को कोशिश हुई और नेशनल हीरोज की  उपेक्षा हुई. आज आऊवा के बलिदान को सही जगह मिली है ". आऊवा के जागीरदारों की प्रतिष्ठा पूरे पाली ज़िले में हैं और उनका सम्मान ज़िले का सम्मान है. जिसे भाजपा को उम्मीद है कि मतदाता प्रभावित होंगे. 

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बहराहल, राजपूत वोट को मनाना वसुंधरा राजे के लिए जरूरी है. राजपूत वोट बैंक की नाराज़गी वसुंधरा राजे को पिछले उप चुनाव में भारी पड़ी थी. जब बीजेपी के हाथ से तीनों सीटें चली गयीं थीं. 

वाहन आये प्रेम प्रकाश माली ने कहा कि " हमें लगता है की हमें आत्मसम्मान मिला है. "  वहीं, कुशल सिंह के वंशज पुष्पेंद्र सिंह ने कहा " आज 160 साल बाद आऊवा को याद किया गया है,  आज़ादी के 70  साल बाद हमें पहचान मिली है. यहां के लोग आऊवा की गौरव गाथाएं तो गाते आये हैं किन इतिहास के पन्नों को पलट कर शायद बीजेपी अपना राजनीतिक भविष्य भी संजोना चाहती है. 

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