'द फाइनल एग्जिट' के एक सीन में कुणाल रॉय कपूर.
खास बातें
- हैलुसिनेशन का शिकार हुए फोटोग्राफर पर बेस्ड कहानी
- फिल्म का कॉन्सेप्ट निराला, थ्रिल एलिमेंट बेहतरीन
- सीरियस रोल में जचे हैं कुणाल रॉय कपूर
डायरेक्टर: ध्वनिल मेहता
स्टारकास्ट: कुणाल रॉय कपूर, अनन्या सेन
जॉनर: हॉरर
रेटिंग: 3 स्टार
कहानी
फिल्म 'द फाइनल एग्जिट' की कहानी है एक फोटोग्राफर की जो हैलुसिनेशन का शिकार हो जाता है और ऐसी-ऐसी चीजें देखने लगता है जो असल में है ही नहीं. वो कभी सपने में जाता है और कभी सपने से बाहर आता है. ये एक सुपर नेचुरल थ्रिलर फिल्म है जो जीवन, मृत्यु और आत्माओं के बीच घूमती रहती है, जिंदगी-मौत और अधूरी इच्छाओं की बात करती है. फिल्म का कॉन्सेप्ट बहुत ही निराला है, थ्रिल एलिमेंट अच्छा है. कहीं कहीं फिल्म डराती भी है.
एक्टिंग और डायरेक्शन
'द फाइनल एग्जिट' का दूसरा भाग अच्छा है. कैमरा वर्क और बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म के कॉन्सेप्ट को सूट करता है. फिल्म की लोकेशन अच्छी है जो कहानी से मेल खाती है. लेखक और निर्देशक ध्वनिल मेहता सुपरनैचरल थ्रिलर में जीवन, मृत्यु और इच्छाओं को बुनकर भारतीय कहानी बनाने में सफल हुए हैं. फिल्म का क्लाइमेक्स खास तौर से बेहतर है जहां कहानी की परतें खुलती हैं तो कहानी दिलचस्प लगती है. अक्सर कॉमेडी रोल करने वाले कुणाल रॉय कपूर ने इस भूमिका को भी अच्छे से निभाया है. अनन्या सेन गुप्ता का काम भी बेहतरीन है.
कमजोरी
फिल्म 'द फाइनल एग्जिट' की कमजोरियों की बात करें तो इसकी कमजोर कड़ी है इसका पहला भाग है, जहां फिल्म लम्बी और खींची हुई लगने लगती है. कहानी कहने का तरीका भले ही फिल्म में नयापन लाता हो मगर शायद ये आम दर्शकों को जल्दी समझ में नहीं आएगा कि कहानी कब कौन से करवट ले रही है. फिल्म में मनोरंजन ना के बराबर है.
देखें या न?
अगर आपको हॉरर या सुपरनैचरल थ्रिलर फिल्में अच्छी लगती हैं तो आप इसे एक बार देख सकते हैं. फिल्म 'द फाइनल एग्जिट' के कॉन्सेप्ट और कुछ नया करने की अच्छी कोशिश के लिए हम इसे देते हैं
3 स्टार...
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