Movie Review: चाइल्ड रेप पर सनसनीखेज रिवेंज ड्रामा है Ajji

फिल्म ‘अज्जी’ की कहानी मुंबई की झोपड़पट्टी में रहने वाली एक बुजुर्ग महिला की है जिसकी एक दस साल की मंदा नाम की पोती है.

Movie Review:  चाइल्ड रेप पर सनसनीखेज रिवेंज ड्रामा है Ajji

अज्जी फिल्म का पोस्टर

खास बातें

  • डार्क फिल्म है अज्जी
  • विचलित कर देते हैं कई सीन
  • बदले की जबरदस्त कहानी है
नई दिल्ली:

रेटिंगः 3.5 स्टार
डायरेक्टरः देवाशीष मखीजा
कलाकारः सुषमा देशपांडेय, श्रावणी सूर्यवंशी, सादिया सिद्दीकी, मनुज शर्मा, सुधीर पांडेय और स्मिता तांबे

फिल्म ‘अज्जी’ की कहानी मुंबई की झोपड़पट्टी में रहने वाली एक बुजुर्ग महिला की है जिसकी एक दस साल की मंदा नाम की पोती है. उससे वो बेहद प्यार करती है. एक रात एक नेता के बेटे ने मंदा का बलात्कार कर उसे फेंक दिया. पुलिस तो आती है, मगर मंदा को इंसाफ कहां मिलना है पुलिस की तरफ से, अज्जी ये बात अच्छे से जानती है, इसलिए वो मंदा पर हुए अत्याचार का बदला लेने के लिए खुद खड़ी होती है.

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पिछले कुछ साल से महिलाओं पर अत्याचार और बलात्कार का मुद्दा खूब उछल रहा है. बॉलीवुड में फिल्में भी बलात्कार जैसे मुद्दे पर बन रही हैं. इस साल भी रवीना टंडन की फिल्म ‘मातृ’ और श्रीदेवी की फिल्म ‘मॉम’ इसी बलात्कार के मुद्दे पर बनी है तो फिर क्या है खास अज्जी में? आपको बता दें कि ये फिल्म खास है अपनी मेकिंग और कहानी कहने के अंदाज से. इस फिल्म में कोई शोरशराबा नहीं है. रिवेंज ड्रामा है लेकिन बदला लेने के लिए बहुत उछल कूद या जल्दबाज़ी नहीं है. 



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एक एक फ्रेम देख कर लगता है कि हम कोई फिल्म नहीं देख रहे हैं, हम एक घटना को अपनी आंखों से देख रहे हैं. बदला लेने के लिए अज्जी की तैयारी हो या अपनी पोती को दर्द से छुटकारा दिलवाने के लिए जड़ी बूटियों की दवाई लाना हो, ये सब रियल लगता है. इस फिल्म में एक बात और बहुत अच्छे तरीके से कही गई है और वो यह है कि सारे कानून और सिस्टम गरीबों के लिए बनाए गए हैं. निर्देशक देवाशीष मखीजा ने झोपड़पट्टी की जिंदगी को बहुत ही सुंदरता से पर्दे पर पेश किया है. अज्जी की भूमिका में सुषमा देशपांडे ने जान डाल दी है.

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फिल्म ‘अज्जी’ डार्क सिनेमा है जहां कई जगह ऐसा लगता है कि फिल्म को छोड़ कर बाहर निकल जाएं. जिस तरह पुलिस इंस्पेक्टर बलात्कारी को बचाने के लिए पीड़ित और उसके परिवार से पूछताछ करता है और उस परिवार को ही गुनाहगार साबित करता है. ये फिल्म गरीबी और उनकी लाचारी को बड़े ही अलग तरह से या यूं कहें कि आर्ट सिनेमा कि शक्ल में पेश करती है.

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