हॉलीवुड का समय पिछले कुछ समय से अच्छा नहीं चल रहा था. उसके कई सीक्वल और रीमेक बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे थे और क्रिटिक्स तथा ऑडियंस के गले भी नहीं उतर पा रहे थे.
सैफ अली खान की ‘शेफ’ फूड, एम्बीशन और फैमिली को लेकर बुनी गई मॉडर्न फैमिली ड्रामा है, जिसमें एक प्यारी-सी कहानी है. इसमें एक महत्वकांक्षी शेफ है, अपने बेटे को प्यार करने वाला पिता है और एक सिंगल मदर है.
इस फिल्म की कहानी वही पुरानी ‘जुड़वां’ वाली है. प्रेम और राजा (वरुण धवन) दो भाई हैं और वे दोनों एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं. लेकिन फिर भी वे एक-दूसरे से जुड़े हैं. एक टपोरी टाइप का है जबकि दूसरा डिसेंट. एक कमजोर है दूसरा ताकतवर. इसी बीच में ग्लैमरस का छौंक लगाने के लिए एंट्री होती है तापसी और जैक्लिन की.
हसीना पारकर के डायरेक्टर अपूर्वा लाखिया ने 2003 में फिल्में बनानी शुरू की थीं लेकिन अभी तक वे सिर्फ एक ही हिट फिल्म दे सके हैं और वह ‘शूटआउट एट लोखंडवाला’. ‘हसीना पारकर’ अपूर्वा की सातवीं फिल्म है, और यह फिल्म भी बुरी तरह से निराश करती है.
फ़िल्म 'भूमि' की कहानी है एक बाप और बेटी की जो अपनी ज़िंदगी में खुश हैं. संजय दत्त की बेटी भूमि यानी अदिति राव हैदरी की शादी होने वाली है मगर शादी से ठीक पहले भूमी के एक पुराने आशिक़ ने, जो एकतरफा प्यार करता था, अपने साथियों के साथ मिलकर उसका बलात्कार करता है
राजकुमार राव तेजी के साथ अपने पीढ़ी के कलाकारों को पीछे छोड़ते जा रहे हैं. हर फिल्म के साथ वे एक्टिंग की कुछ पायदानों की छलांग लगा जाते हैं. कुछ दिन पहले ही उनकी ‘बरेली की बर्फी’ आई थी, और फिल्म हिट रही थी. इसमें सबसे सशक्त कैरेक्टर राजकुमार राव का ही था और उनकी काफी तारीफ भी हुई थी.
बॉलीवुड की यह खासियत बन चुकी है कि उसे अच्छे-खासे विषय का बंटाधार करना आता है. 'लखनऊ सेंट्रल' भी इसी की मिसाल है. फरहान अख्तर की बतौर एक्टर कुछ सीमाएं हैं और लखनऊ सेंट्रल के इस किरदार में वे सीमाएं नजर आ जाती हैं.
कंगना रनोट ‘सिमरन’ के रिलीज होने से काफी पहले से ही सुर्खियों में थीं. वजह कंगना रनोट की फिल्म 'सिमरन' नहीं बल्कि ऋतिक रोशन के साथ उनका अफेयर और आदित्य पंचोली के साथ उनका विवाद रहा. कंगना रनोट हर मामले पर बड़ी बेबाकी से बात कर रही थीं, लेकिन इस सब के चक्कर में उनकी फिल्म कहीं पीछे छूट गई थी.
आज बॉक्स ऑफिस पर दो बड़ी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर टकरा रही हैं. एक है हंसल मेहता की 'सिमरन' और दूसरी है निर्देशक रंजीत तिवारी की 'लखनऊ सेंट्रेल'. 'लखनऊ सेंट्रल' किशन गिरहोत्रा (फरहान अख्तर) की कहानी है, जो उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर मुरादाबाद का रहने वाला है.
शुक्रवार को रिलीज हुई फिल्म 'डैडी' कहानी है गैंगस्टर से एक राजनीजिज्ञ बनने वाले अरुण गवली की. इसमें अरुण गवली (अर्जुन रामपाल) की 1976 से 2012 तक की जिंदगी को समेटने की कोशिश की गयी है, फिल्म में दिखाया गया है की कैसे एक गरीब मिल मजदूर का बेटा गरीबी के चलते अपराध जगत की राह पकड़ लेता है और फिर उस दौर के भाई से भिड़ जाता है, जिसका राज पूरी मुंबई पर था
डैडी अरुण गवली की ज़िंदगी पर बनी फ़िल्म है. फ़िल्म में अरुण गवली की ज़िंदगी को कई किरदारों के माध्यम से दिखाया गया है. फ़िल्म पूरी तरह से एक गैंगस्टर मूवी है. फ़िल्म की कहानी कुछ भी एक्सेप्शनल नहीं है. 1976 से फ़िल्म की शुरुआत होती है और 2012 तक जाती है. डैडी में एक गैंगस्टर के रॉबिनहुड बनने तक की कहानी है. डैडी कुल मिलाकर एक रूटीन गैंगस्टर मूवी है जिसमें कुछ भी याद रखने लायक नहीं है.
आज जब अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर सवाल उठ रहे हैं, ऐसे में 'समीर' जैसी फिल्म का आना अच्छी बात है. फिल्म कई तरह के सवाल उठाती है जो आज के दौर में पूरी तरह से प्रासंगिक हैं.
फिल्म 'शुभ मंगल सावधान' कहानी है मुदित( आयुष्मान) और सुगन्धा (भूमि पेडणेकर) के प्रेम की और ये दोनों शादी भी करना चाहते हैं. यहां तक तो सब ठीक है लेकिन फिर इन दोनों के शादीशुदा जीवन की शुरुआत से पहले आड़े आती है एक चिंता कि कहीं आयुष्मान शादी में अपने कर्तव्य पूरी तरह निभा पायेगे या नहीं.
मिलन लूथरिया और अजय देवगन की जोड़ी जब भी साथ आती है, तो दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब रही है. फिर वह चाहे ‘कच्चे धागे’ हो या फिर ‘वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई'.
बॉलीवुड में इस समय देसी कहानियों का दौर चल रहा है. हर हफ्ते एक न एक ऐसी फिल्म आ रही है जो देसीपन के रंग में रंगी हैं और हमें असली भारत के करीब लेकर आती है. यह सफर अक्षय कुमार की ‘टॉयलेटः एक प्रेम कथा’से होते हुए 'बरेली की बर्फी', ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज' से होता हुआ इस हफ्ते रिलीज हुई ‘शुभ मंगल सावधान’ तक आ गया है.