World Wrestling Championship: यह बड़ा लालच Deepak Punia को कुश्ती वर्ल्ड में ले आया..और बन गए "केतली पहलवान"

World Wrestling Championship: यह बड़ा लालच Deepak Punia को कुश्ती वर्ल्ड में ले आया..और बन गए

World wrestling Championship में रजत पदक जीतने वाले Deepak Punia

खास बातें

  • सुशील कुमार ने काफी मदद की दीपक की
  • जूनियर वर्ग में विश्व चैंपियन बनने वाले सिर्फ चौथे पहलवान बने
  • पिछले तीन साल जमकर मेहनत की दीपक ने
नई दिल्ली:

वर्ल्ड कश्ती चैंपियनशिप (World Wrestling Championship) में रजत पदक जीतने के साथ ही ओलिंपिक कोटा हासिल करने वाले पहलवान दीपक पूनिया (Deepak Punia) के साथ जो फाइनल में घटित हुआ, उससे पूरा देश दुखी है. हर भारतवासी यह उम्मीद कर रहा था कि दीपक देश को स्वर्ण पदक से नवाजेंगे, लेकिन फाइनल से पहले घुटने की चोट ने उनके साथ ही कुश्ती के चाहने वालों को दिल तोड़ दिया. बहरहाल, आपको बता दें कि कुश्ती में झंडे गाड़ने वाले दीपक पूनिया एक लालच के चलते इस खेल में आए थे. 

दरअसल दीपक काम की तलाश में थे और 2016 में उन्हें भारतीय सेना में सिपाही के पद पर काम करने का मौका मिला. लेकिन ओलिंपिक पदक विजेता पहलवान सुशील कुमार ने उन्हें छोटी चीजों को छोड़कर बड़े लक्ष्य पर ध्यान देने का सुझाव दिया और फिर दीपक ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. दरअसल दीपक पूनिया ने जब कुश्ती शुरू की थी तब उनका लक्ष्य इसके जरिए नौकरी पाना था, जिससे वह अपने परिवार की देखभाल कर सकें. दो बार के ओलंपिक पदक विजेता सुशील ने दीपक को प्रायोजक ढूंढने में मदद की और कहा, ‘कुश्ती को अपनी प्राथमिकता बनाओ, नौकरी तुम्हारे पीछे भागेगी.'दीपक ने दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम के अपने सीनियर पहलवान की सलाह मानी और तीन साल के भीतर आयु वर्ग के कई बड़े खिताब हासिल किए. 

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वह 2016 में विश्व कैडेट चैंपियन बने थे और पिछले महीने ही जूनियर विश्व चैंपियन बने. वह जूनियर चैंपियन बनने वाले सिर्फ चौथे भारतीय खिलाड़ी है जिन्होंने पिछले 18 साल के खिताबी सूखे को खत्म किया था. एस्तोनिया में हुई जूनियर विश्व चैम्पियनशिप में जीत दर्ज करने के एक महीने के अंदर ही उन्हें अपने आदर्श और ईरान के महान पहलवान हजसान याजदानी से भिड़ने का मौका मिला. उन्हें हराकर वह सीनियर स्तर के विश्व चैम्पियनशिप का खिताब भी जीत सकते थे. सेमीफाइनल के दौरान लगी टखने की चोट के कारण उन्होंने विश्व चैम्पियनशिप के 86 किग्रा वर्ग की खिताबी स्पर्धा से हटने का फैसला किया जिससे उन्होंने रजत पदक अपने नाम कर लिया. स्विट्जरलैंड के स्टेफान रेचमुथ के खिलाफ शनिवार को सेमीफाइनल के दौरान वह मैच से लड़खड़ाते हुए आये थे और उनकी बायीं आंख भी सूजी हुई थी. वह इस खेल के इतिहास के सबसे अच्छे पहलवानों में एक को चुनौती देने से चूक गए. 

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दीपक के लिए हालांकि पिछले तीन साल किसी सपने की तरह रहे हैं। दीपक की सफलता के बारे में जब भारतीय टीम के पूर्व विदेशी कोच व्लादिमीर मेस्तविरिशविली से पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘यह कई चीजों के एक साथ मिलने से हुआ है. हर चीज का एकसाथ आना जरूरी था.'दीपक के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस कोच ने कहा, ‘इस खेल में आपको चार चीजें चाहिए होती हैं, जो दिमाग, ताकत, किस्मत और मैट पर शरीर का लचीलापन हैं. दीपक के पास यह सब है. वह काफी अनुशासित पहलवान है जो उसे पिता से विरासत में मिला है. 'उन्होंने कहा, ‘नयी तकनीक को सीखने में एक ही चीज बार-बार करने से खिलाड़ी ऊब जाते हैं, लेकिन दीपक उसे दो, तीन या चार दिनों तक करता रहता है, जब तक पूरी तरह से सीख ना ले.' दीपक के पिता 2015 से रोज लगभग 60 किलोमीटर की दूरी तय करके उसके लिए हरियाणा के झज्जर से दिल्ली दूध और फल लेकर आते थे. उन्हें बचपन से ही दूध पीना पसंद है और वह गांव में ‘केतली पहलवान' के नाम से जाने जाते हैं. 

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‘केतली पहलवान' के नाम के पीछे भी दिलचस्प कहानी है. गांव के सरपंच ने एक बार केतली में दीपक को दूध पीने के लिए दिया और उन्होंने एक बार में ही उसे खत्म कर दिया. उन्होंने इस तरह एक-एक कर के चार केतली खत्म कर दी जिसके बाद से उनका नाम ‘केतली पहलवान'पड़ गया. दीपक ने कहा कि उनकी सफलता का राज अनुशासित रहना है. उन्होंने कहा, ‘मुझे दोस्तों के साथ घूमना, मॉल जाना और शॉपिंग करना पसंद है। लेकिन हमें प्रशिक्षण केंद्र से बाहर जाने की अनुमति नहीं है.  मुझे जूते, शर्ट और जींस खरीदना पसंद है, हालांकि मुझे उन्हें पहनने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि मैं हमेशा एक ट्रैक सूट में रहता हूं,'