न्यू यॉर्क: क्या आप सोच सकते हैं कि जिस देश यानी अमेरिका को हम आधुनिकता का अगुवा मानते हैं, वहां परदेसियों को नौकरी हासिल करते समय अपनी त्वचा के रंग के चलते भी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता होगा? एक नई स्टडी में कहा गया है कि त्वचा का रंग प्रवासियों के यूएस में नौकरी प्राप्त करने में अहम भूमिका निभाता है।
एशियाई मूल के पुरुषों पर अधिक लागू...
अमेरिका में सांवली/काली त्वचा पुरुषों को नौकरी मिलने के मामले में निगेटिव रोल अदा करती है। एशियाई मूल के प्रवासियों के मामलों में यह बात खासतौर से लागू होती है। रिसर्चर्स का कहना है कि ये खोज इसलिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिकी जनसंख्या में नस्ली सरंचना ब्लैक और वाइट से इतर होती जा रही है। यूएस में आज की तारीख में नए प्रवासियों में ज्यादातर एशियाई और लैटिन अमेरिकी हैं। इनके वशंज भी अमेरिकी जनसंख्या में तेजी से बढ़ रहे हैं।
महिलाओं पर यह बात लागू नहीं..
स्टडी के मुताबिक, महिला प्रवासियों के मामले में स्किन कलर को लेकर ऐसा कोई भेदभाव नहीं है कि नौकरी मिलने में दिक्कत आए। पर हां, नस्ली भेदभाव तो महत्वपूर्ण कारक साबित होता ही है। लैटिन अमेरिकी महिलाएं काली और एशियाई महिलाओं के मुकाबले ज्यादा बेहतर स्थिति में थीं।
2050 तक जनसंख्या में हिस्सेदारी का होगा बड़ा फेरबदल...
रिसर्च में जो डाटा इकट्ठा किए गए, वे 2003 के उन सैंपल पर आधारित थे जो न्यू इमीग्रेंट सर्वे से लिए गए थे। सेंसस के जानकार यह भविष्यवाणी पहले ही कर चुके हैं कि 2050 तक अमेरिकी जनसंख्या का 46.6 फीसदी हिस्सा गोरों का होगा और नस्ली रूप से अल्पसंख्यक जनसंख्या वर्तमान जनसंख्या का दोगुना हो चुकी होगी।
यूनिवर्सिटी ऑफ कानसस से सह-शोधकर्ता एंड्रिया गोमेज सर्वांट्स ने बताया, 'सामाजिक विभाजन को समझने में केवल नस्लीय ढांचा ही काफी नहीं है।' यह स्टडी शिकागो में अमेरिकन सोशियॉलिजकल असोसिएशन की 110वीं सालाना बैठक में पेश की जानी है।