यह ख़बर 09 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

कोर्ट का नंबर पता नहीं था, खाई दो-दो जेलों की हवा...

नई दिल्ली:

कोर्ट-कचहरी को हल्के में लेना कितना महंगा पड़ सकता है, यह बात आगरा के विजय कुमार अग्रवाल से बेहतर कौन बता सकता है। एक मामूली-सी गलती की वजह से विजय ने चार दिन आगरा जेल में बिताए, और पांचवीं रात दिल्ली की तिहाड़ जेल में, हालांकि उसके कन्फ्यूजन को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उसे फौरन रिहा करा दिया।

दरअसल, मामला मकान मालिक के डेढ़ लाख रुपये न देने का है। विजय कुमार अग्रवाल का आगरा में उसके मकान मालिक के साथ विवाद चल रहा है, और सुप्रीम कोर्ट ने विजय को आदेश दिया था कि वह मकान मालिक को डेढ़ लाख रुपये दे। इसके बाद उसे 10 नवंबर को कोर्ट में पेश होने के लिए कहा गया था, लेकिन तारीख पर विजय सुप्रीम कोर्ट नहीं पहुंचा और कोर्ट ने उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी कर दिए, और साथ ही आगरा पुलिस को 8 दिसंबर को कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया।

5 दिसंबर को आगरा पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और आगरा कोर्ट ने उसे जेल भेज दिया। 8 दिसंबर को आगरा पुलिस उसे लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची, लेकिन देरी की वजह से कोर्ट ने उसे अदालत की अवमानना में तिहाड़ जेल भेज दिया।

मंगलवार को दिल्ली पुलिस ने जब विजय को सुप्रीम कोर्ट में पेश किया, तो जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस यूयू ललित ने उससे पूछा कि आखिर वह 10 नवंबर को कोर्ट क्यों नहीं आया। विजय ने कोर्ट को बताया कि वह उसी तारीख पर कोर्ट आया था और उसने कोर्ट नंबर आठ का पास भी बनवाया था, लेकिन बाद में उसे पता चला कि यह बेंच कोर्ट नंबर छह में शिफ्ट हो गई है, और फिर उसने कोर्ट नंबर छह का पास बनवाया, लेकिन तब तक उसका मामला निकल चुका था। वैसे, वह शाम चार बजे तक कोर्ट में ही रहा और बाद में उसने कोर्ट मास्टर से बात भी की। जस्टिस यूयू ललित ने उसके दोनों पास चेक किए और उसकी बात को सही माना।

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इसके बाद कोर्ट ने उसे सोमवार तक 50 हजार रुपये जमा कराने के आदेश दिए। कोर्ट ने पुलिस को फौरन उसे रिहा करने के आदेश भी दिए, लेकिन कोर्ट में मौजूद पुलिसकर्मी ने विजय से कहा कि वह लिखित ऑर्डर के बिना उसे रिहा नहीं करेगा। विजय ने फौरन इसकी जानकारी बेंच को दी, जस्टिस यूयू ललित ने पुलिसकर्मी से कहा कि उसे वहीं से रिहा किया जाए। जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि इस तरह लोगों को जेल भेजना कोर्ट को अच्छा नहीं लगता। कोर्ट ने अपने आदेश में खासतौर पर लिखवाया है कि कोर्ट की कन्फ्यूजन की वजह से विजय तारीख पर नहीं पहुंचा और जांच के बाद कोर्ट उसकी बात से सहमत है। बाद में पुलिस ने कोर्ट से ही विजय को रिहा कर दिया।