अनसूया साराभाई को इस अंदाज में गूगल ने किया याद, मजदूरों के हित में लड़ी थी लंबी लड़ाई

प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अनसूया साराभाई का आज 132वां जन्मदिवस है. इस मौके पर गूगल ने एक खास डूडल बनाकर उनको समर्पित किया है.

अनसूया साराभाई को इस अंदाज में गूगल ने किया याद, मजदूरों के हित में लड़ी थी लंबी  लड़ाई

अनसूया साराभाई को इस अंदाज में गूगल ने किया याद

खास बातें

  • अनसूया साराभाई को गूगल ने डूडल बनाकर किया याद
  • प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता थीं अनसूया साराभाई
  • मजदूरों के हित में लड़ी थी लंबी लड़ाई
नई दिल्ली:

प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अनसूया साराभाई का आज 132वां जन्मदिवस है. इस मौके पर गूगल ने एक खास डूडल बनाकर उनको समर्पित किया है. अनसूया साराभाई का जन्म 11 नवंबर 1885 को अहमदाबाद में साराभाई परिवार में हुआ, जो कि एक उद्योगपति और व्यापारिक लोगों के एक धनी परिवार में से था. लंदन से पढ़ाई कर भरत लौटने के बाद गरीबों की भलाई के लिए काम करना शुरू किया. उन्होंने 36 घंटे की शिफ्ट खत्म करने के बाद थक कर घर लौट रहीं महिला मिल के मजदूरों की दयनीय स्थिति देखा, जिसके बाद उन्होंने मजदूर आंदोलन में करने का फैसला किया. सन 1918 में उन्होंने हड़ताल में कपड़ा कामगारों को संगठित करने में मदद की और महीने भर चली इस हड़ताल में वो शामिल रहीं. सन 1920 में उन्होंने मजदूर महाजन संघ की स्थापना की, जो भारत के टेक्सटाइल श्रमिकों का सबसे पुराना संघ है.

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अनसूया साराभाई का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा 
अनसूया साराभाई जब नौ साल की थी, तभी उनकी माता-पिता दोनों की मृत्यु हो गई थी. इसलिए उन्हें और उनके छोटे भाई अंबलाल साराभाई और एक छोटी बहन को उनके चाचा के साथ रहने के लिए भेजा गया था. अनसूया साराभाई की शादी 13 साल की उम्र में ही हो गई थी. उनका विवाहित जीवन बेहद अल्पकालिक और दुःखद था. सन 1912 में अपने भाई की सहायता से मेडिकल डिग्री के लिए इंग्लैंड चली गईं, लेकिन जब उन्हें पता चला कि एक मेडिकल डिग्री प्राप्त करने में उन्हें पशु विच्छेदण जैसे क्रिया-कलापों को गुजरना पड़ेगा जो उनके जैन विश्वासों का भी विपरीत था, तभी उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई छोड़ दी है और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रवेश किया. इंग्लैंड में प्रवास के दौरान वे फेबियन सोसाइटी से प्रभावित हुए और वे सहृगेट आंदोलन में शामिल हो गई थी

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अनसूया साराभाई का राजनीतिक जीवन 
भारत आने के बाद उन्होंने महिलाओं और गरीबों का भलाई के लिए काम करना शुरू किया. उन्होंने इस दिशा में एक स्कूल भी खोला. अहमदाबाद में सन 1914 में श्रम आंदोलन में शामिल होने का फैसला किया. इस दौरान वह एक महीने लंबी चली हड़ताल में भी शामिल रहीं. बुनकर मजदूरी में 50 प्रतिशत वृद्धि की मांग कर रहे थे, लेकिन उनको 20 प्रतिशत की वृद्धि ही मिल रही थी, जिसके बाद उन्होंने हड़ताल की थी. इस दौरान महात्मा गांधी साराभाई के गुरू के रूप में उनका मार्गदर्शन कर रहे थे. गांधी जी ने भी श्रमिकों की ओर से भूख हड़ताल शुरू कर दी, तब जाकर श्रमिकों को 35 प्रतिशत वृद्धि हासिल हुई थी. इसके बाद सन 1920 मजदूर महाजन संघ स्थापना हुई थी.

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साराभाई को मोटाबेन भी कहा जाता था, जो कि गुजराती में बड़ी बहन को संबोधित करता है. साराभाई भारतीय स्वयं-रोजगार महिला संगठन के संस्थापक एला भट्ट के परामर्शदाता की भूमिका में भी रहीं. साराभाई की मृत्यु 1972 में 87 वर्ष की आयु में हुई थी.


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