यह ख़बर 06 मार्च, 2011 को प्रकाशित हुई थी

आईबी, रॉ में काम करने के इच्छुक लोगों में बुद्धिमानी का अभाव

खास बातें

  • अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि इंटेलिजेन्स ब्यूरो और रॉ में नौकरी के लिए आकर्षित हो रहे अभ्यर्थियों में अपेक्षित बुद्धिमानी का अभाव है।
New Delhi:

अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि इंटेलिजेन्स ब्यूरो और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग :रॉ: में नौकरी के लिए आकर्षित हो रहे अभ्यर्थियों में अपेक्षित बुद्धिमानी का अभाव है। इस चिंताजनक प्रवृत्ति से बचने के लिए अनुसंधानकर्ताओं ने चयन प्रक्रिया में परिवर्तन करने का सुझाव दिया है। दिल्ली स्थित विचार समूह ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन :ओआरएफ: और इंस्टीट्यूट फॉर डिफेन्स स्टडीज एंड एनालिसिस :आईडीएसए: ने अपनी रिपोर्ट रिफॉर्मिंग इंडियाज इंटेलिजेन्स स्ट्रक्चर में यह बात कही है। यह रिपोर्ट साक्षात्कारों पर आधारित है। जिन लोगों से रिपोर्ट के लिए सवाल पूछे गए, उनके बारे में सवालकर्ताओं का कहना है कि इन लोगों को न तो सामान्य ज्ञान था और न ही सामयिक विषयों की जानकारी थी। एक अनुसंधानकर्ता ने नाम जाहिर न करने के अनुरोध पर बताया कि एक अभ्यर्थी ने कर्नाटक की राजधानी बेंगलूर के बजाय हैदराबाद बताया। एक अन्य अभ्यर्थी से जब कश्मीर में हालात और सीमा पार से घुसपैठ के बारे में पूछा गया तो उसके लिए एक वाक्य बोलना भी मुश्किल हो रहा था। रिपोर्ट के अनुसार, यह विडंबना ही है कि देश की खुफिया एजेंसियों की ओर ऐसे अभ्यर्थी आकर्षित हो रहे हैं जिन्हें सिविल सेवा परीक्षाओं में कम अंक मिले हों। अनुसंधानकर्ताओं ने रिपोर्ट में व्यापक सुधारों, भर्ती प्रक्रिया में बदलाव, नयी भर्ती के लिए परिवीक्षा, पदोन्नति, प्रशिक्षण में सुधार, खुफिया एजेंसियों में अभियानों के दौरान स्तरीय निगरानी आदि की जरूरत पर जोर दिया है ताकि बेहतर परिणाम मिल सकें। रिपोर्ट में कहा गया है राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बढ़ते खतरे के साथ ही एक मजबूत और कारगर खुफिया ढांचे की जरूरत है जिसे तैयार किया जा सकता है। इसमें खुफिया सूचनाएं जुटाने के लिए विशेष कर्मचारियों का अभाव, विश्लेषण और आधुनिक उपकरणों का अभाव सहित कई खामियां भी हैं। रिपोर्ट पर हाल ही में आयोजित एक बहस में भाग लेने वाले एक पूर्व नौकरशाह ने कहा कि साक्षात्कार बोर्ड को अक्सर ऐसे अभ्यर्थियों की सूची मिलती है जो अन्य सेवाओं के लिए खारिज कर दिए गए हों या सिविल सेवा परीक्षाओं में जिन्हें कम अंक मिले हों। अनुसंधानकर्ताओं ने राजस्व खुफिया निदेशालय और राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान जैसी खुफिया यूनिटों में रिक्त पदों को लेकर भी चिंता जताई है। रिपोर्ट में, प्रधानमंत्री की निगरानी और नियंत्रण में गृह, रक्षा और विदेश मंत्रियों और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकर के साथ मामलों पर सीधे चर्चा करने के लिए केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों के साथ समन्वय करने की खातिर एक राष्ट्रीय खुफिया समन्वयक :एनआईसी: की अवधारणा का प्रस्ताव दिया गया है। इसमें त्वरित और सुरक्षित संवाद के लिए नेशनल ग्रिड और एनआईसी की प्रस्तावित अवधारणा के अंतर्गत राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की भूमिका को एक मुख्य कूटनीतिक सलाहाकर के तौर पर बताया गया है।


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