बहुत-से हिन्दुस्तानियों को फख्र होगा IIM डिग्री लेकर 'कबाड़ी' बने मुकुंद पर...

बहुत-से हिन्दुस्तानियों को फख्र होगा IIM डिग्री लेकर 'कबाड़ी' बने मुकुंद पर...

जिस समय बीएस मुकुंद भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम), कोलकाता से डिग्री लेने के बाद बेंगलुरू आकर बसे थे, उनके दिमाग में एक ही सवाल घुमड़ रहा था - "तुम आईआईएम ग्रेजुएट हो, फिर भी 'कबाड़ीवाले' का काम क्यों कर रहे हो...?"

खैर, वह नौ साल पहले की बात है, और अब बीएस मुकुंद के पास सभी सवालों के जवाब हैं... 33-वर्षीय मुकुंद द्वारा शुरू किया काम उस मुकाम तक पहुंच चुका है, जहां पहुंचाने का ख्वाब उन्होंने देखा था... उनका कहना है, "90 फीसदी भारतीयों की पहुंच कम्प्यूटर तक नहीं है... सो मैंने सोचा, हम चालू हालत में कम्प्यूटरों को खरीदकर उन्हें स्क्रैप क्यों करें (टुकड़े-टुकड़े करना, रद्दी में फेंकना)... इसके बजाए हम उन्हें अपग्रेड कर सकते हैं, री-फर्बिश कर सकते हैं, और किफायती कीमत पर भारतीयों को दे सकते हैं..."

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उनकी फर्म ReNewIT (रीन्यूइट), जिसका मुख्यालय बेंगलुरू में है, सस्ते कम्प्यूटर तैयार करती है, और देशभर के विद्यार्थियों, गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) तथा सरकारी स्कूलों को उपलब्ध कराती है... बीएस मुकुंद के इस काम में लगने के कुछ ही समय बाद उनके चचेरे भाई राघव बोगोराम भी उनके साथ शामिल हो गए, जो मैनचेस्टर से एमबीए कर लौटे थे... आज तक ReNewIT ने देशभर में कुल 10,000 से ज़्यादा कम्प्यूटर बेचे हैं, जिसकी औसत कीमत 4,500 रुपये रही, और इस साल वे इससे दोगुने कम्प्यूटर बेचने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं...
 


मुकुंद का कहना है, "इसके बावजूद क्वालिटी से समझौता नहीं किया जाता... हम सिर्फ कॉरपोरेट से कम्प्यूटर खरीदते हैं, क्योंकि उनकी देखभाल अच्छी तरह की गई होती है, और उनमें लगभग चार-पांच साल की  ज़िन्दगी बाकी होती है... वे (कॉरपोरेट कंपनियां) हर पांच-छह साल में नई तकनीक पाने के लिए अपने कम्प्यूटरों को अपग्रेड करते ही हैं, और हम भी इस बात का ध्यान रखते हैं कि उन्हें दोबारा बेचने से पहले उसमें मौजूद कोई भी डेटा निकाल दें..."

मुकुंद की कंपनी सिर्फ दो लोगों से शुरू हुई थी, लेकिन अब वे 10 हैं, और इसके अलावा देश के सभी बड़े शहरों में उनके सर्विस पार्टनर हैं... बीएस मुकुंद खुशी से बताते हैं, "अब लोग हमें 'कबाड़ीवाला' कहने की जगह भविष्यदृष्टा कहने लगे हैं, जिन्होंने वह मौका देखा और इस्तेमाल किया, जो दरअसल था ही नहीं..."